eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 17

हिन्दू धार्मिक ग्ंथयों में प्रशषिप्तता
इसे औचितयहीन कहना ्पूर्णतः उचित होगा । हिन्दू संस्कृति में सतयसनष्् वयवहार एवं मर्यादित आचरण ही सदैव ग्ाह्य रहे ।
हिन्दू लोकजीवन में वर्ण की अवधारणा कभी भी भेदभाव यु्त नहीं रही । ्वर्ण के साथि अवर्ण की अवधारणा थिी । जो वर्ण के साथि थिे , उनको सवर्ण कहा जाता थिा । रिाह्मण , क्सत्रय और वै्य के साथि शपूद्र भी सवर्ण थिा । इसी तरह ईसाई , मुस्लम एवं उस तरह के आरिामक समपूहों की श्रेणी को अवर्ण कहा गया थिा । शपूद्र वर्ण के नाम पर दलित वर्ग को भ्रमित करके उनहें अवर्ण कहकर मुस्लम एवं अनयानय हिन्दू विरोधी शक्तयों ने हिन्दू संस्कृति एवं हिन्दू समाज से उनको अलग करने के लिए हर तरह के ककृतय करने के साथि ही दुष्प्रचार किया । जातिविहीन ्वसर्णम वैदिक युग आज भी ्मृसत पटल पर आरेखित है । ्मरण रहे कि वेदों में मात्र वर्ण का उललेख है , किनतु वर्ण वयवस्था की कुचर्चा वेदों के लिए अनाव्यक होती है ।

हिन्दू धार्मिक ग्ंथयों में प्रशषिप्तता

हिन्दू धर्म ग्रंथों और समाज के अनयोनयासश्रत संबंधों को समझकर ही विदेशी शासकों ने हिन्दू समाज की एकता और समरसता को समापत करके उसे असंगठित करने हेतु सर्वप्रथिम हिन्दू संस्कृति एवं साहितय के साथि भयानक छेड़छाड़
की गयी । इस दुष्ककृतय का मुखय कारण थिा हिन्दू समाज को भेदभावयु्त बनाकर उसे विखंडित करना । हिन्दू समाज का भयंकर उत्ीड़न और उस पर असंखय अतयाचार किया । विदेशी शासकों के सैनिक लाखों-लाख हिन्दू ्त्री-पुरुष एवं बालकों को गुलाम बनाकर उनहें मातृभपूसम , परिवार एवं उनके अपने समाज से दपूर लेकर चले जाते थिे । उनके मन की तड़प , पीड़ा , वातसलय तथिा मनोभाव की अनदेखी करके उन पर लगातार नाना प्रकार के अतयाचार किये गए । देशभ्त और ्वासभमानी हिनदुओं को योजनाबद ढंग से आसथि्णक दृष्टि से दरिद्रता की चरम सीमा पर पहुंचाया और समाज की मुखय धारा से अलग करके हिन्दू समाज में दलित जातियों का निर्माण किया । वर्तमान अनुसपूसचत जातियां एवं जनजातियां क्सत्रय एवं रिाह्मण वर्ग की जातियां हैं । इनकी वंशावली एवं गोत्र वही है जो क्सत्रयों एवं रिाह्मणों के वंश और गोत्र हैं । अंग्ेजों से इस कार्य में आग में घी डालने का काम किया ।
हिनदुओं को बांटने और लमबे समय तक शासन करने के दुराग्ह विचार से उनहोंने अनाव्यक रूप से हिन्दू साहितय का संपादन और प्रकाशन कार्य प्रारमभ किया , जिसमें मनमाने ढंग से हिन्दू समाज को विखंडित करने वाले तथयों को मिश्रित करके लोगों को सदगभ्रमित किया और भेदभाव बढाकर हिन्दू समाज में प्राककृसतक रूप से स्थापित प्राककृसतक समरसता
को नष्ट किया गया । भारत का इतिहास आज जिस ्वरुप में सुलभ है उस पर हम इस दृष्टि से विचार करने पर निराश होंगे कि उसमें भावी पीढ़ी को मार्ग दर्शन प्रापत करने के लिए कुछ नहीं है । रोथि , बेबर , ककूहन जैसे विदेशी विद्रानो ने ककृत संककल्त होकर हिनदु्थिान के गौरवशाली इतिहास को नष्ट करने का कार्य किया । विदेशी शासकों के काल में ऐसे साहितय के प्रकाशन पर धयान दिया , जिससे समाज में मेल-मिलाप की भावना समापत हो गयी और लोगों में ईर्ष्या और द्ेष बढ़ता चला गया । पश्चमपर्त एवं ्वसहत की वैचारिकी वाले वामपंथिी एवं जनवादी लेखकों ने भी भ्रमातमक तथयों का योजनाबद प्रकाशन किया ।
कोलकाता संस्कृत कालेज के पंडित तारानाथि , जो एक भारतीय विद्ान थिे , ने ऊंचे दाम लेकर 1866 में अंग्ेजों के लिए एक " वाच््तयम " श्दकोष लिखा । इस श्दकोष में अथि्ण का अनथि्ण बड़ी ही बेशमटी के साथि किया गया । गोध्न श्द का अथि्ण गो-हतया यानी कि बलि से समप्रेसषत करके उनहोंने सरिटिश इतिहासकारों को यह बल दे दिया कि वह लेख लिख सके कि प्राचीन काल में गाय की बलि होती थिी । यहां गोध्न का अथि्ण है- इकनद्रयों पर नियंत्रण रखना । गो श्द का अथि्ण होता है- इकनद्रय । जिस प्रकार से गो्वामी का अथि्ण अपनी इकनद्रयों का ्वामी होता है । घड़ियाली आंसपू जैसे थिोथिे-छिछले चिंतन वाले दलित साहितयकारों की चिंतन धरा ्वा्णग्हयु्त रही । इस प्रकार हिन्दू समाज की सामाजिक समरसता को समापत कर उसे विखंडित करने के लिए हिन्दू विरोधियों ने हिन्दू संस्कृति एवं धर्म साहितय के साथि ्वलाभ एवं खयासत के लिए शर्मनाक छेड़छाड़ की । इसी प्रकार हिन्दू धर्मशा्त्र मनु्मृसत का सर विलियम जोंस द्ारा ने 1776 में अंग्ेजी में अनुवाद करके विककृत ्वरूप को सामने रखा और उसका उपयोग सरिटिश औपनिवेशिक सरकार के लाभ के लिए किया गया ।
मधयकाल एवं ्पूव्ण आधुनिक काल में बने दलित समाज को हिन्दू संगठन से अलग करने एवं हिनदुओं को बांटकर अंग्ेजों द्ारा अपने
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