व्ाख्ा हेतु की गयी प्रलषिप्तता से नाराज थे डॉ आंबेडकर
हितों के लिए प्रलषिप्त किया था मनुस्मृति को
को जलाने से ्या दलित वर्ग का उदार हो गया है ? ्या मनु्मृसत को लेकर जिस तरह का दुष्प्रचार दशकों से किया जा रहा है , वह सही है ? ्या डॉ आंबेडकर हिन्दू धर्म ग्न्थ मनु्मृसत को सामाजिक वयवस्था के विरुद मानते थिे ? ्या इसीलिए उनहोंने मनु्मृसत को असनि के हवाले किया थिा ? या फिर सच कुछ और है ? ्या डॉ आंबेडकर ने हिन्दू धर्म ग्न्थ मनु्मृसत के उस प्रसक्पत ्वरूप को लेकर सार्वजनिक आलोचना की थिी , जिस ्वरुप को सरिटिश सत्ा
संचालकों ने अपने लाभ के लिए और अपने ढंग से जनम दिया थिा ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर डॉ आंबेडकर ने मनु्मृसत को आग के हवाले ्यों किया थिा ? ्या सतय वा्तव में वैसा ही है , जैसा दलित हितों की चिंता करने वाले कसथित दलित नेता और विचारक प्रचारित करने में दशकों से जुटे हुए हैं ? नहीं , ऐसा नहीं हैं । सच , वह नहीं हैं , जो दलित वर्ग की जनता को बताया और समझाया जा रहा है । सच को तो ्वयं डॉ आंबेडकर ने ही अपने जीवनकाल
में सार्वजनिक कर दिया थिा । परनतु उस सतय को देखने , समझने और बताने की जरुरत वर्तमान में कोई भी दलित नेता और विचारक नहीं करता है ।
इतिहास का सपूक्म अनवेषण करने पर ज्ात होता है कि गुलाम भारत में हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के प्रकाशन का निर्णय सरिटिश सरकार ने लिया थिा । इसके पीछे कारण यह थिा कि भारत के लिए नीतियों के निर्धारण का कार्य लनदन में बैठने वाले सरिटिश सत्ा के रणनीतिकारों द्ारा
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