eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 15

व्ाख्ा हेतु की गयी प्रलषिप्तता से नाराज थे डॉ आंबेडकर

हितों के लिए प्रलषिप्त किया था मनुस्मृति को

को जलाने से ्या दलित वर्ग का उदार हो गया है ? ्या मनु्मृसत को लेकर जिस तरह का दुष्प्रचार दशकों से किया जा रहा है , वह सही है ? ्या डॉ आंबेडकर हिन्दू धर्म ग्न्थ मनु्मृसत को सामाजिक वयवस्था के विरुद मानते थिे ? ्या इसीलिए उनहोंने मनु्मृसत को असनि के हवाले किया थिा ? या फिर सच कुछ और है ? ्या डॉ आंबेडकर ने हिन्दू धर्म ग्न्थ मनु्मृसत के उस प्रसक्पत ्वरूप को लेकर सार्वजनिक आलोचना की थिी , जिस ्वरुप को सरिटिश सत्ा
संचालकों ने अपने लाभ के लिए और अपने ढंग से जनम दिया थिा ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर डॉ आंबेडकर ने मनु्मृसत को आग के हवाले ्यों किया थिा ? ्या सतय वा्तव में वैसा ही है , जैसा दलित हितों की चिंता करने वाले कसथित दलित नेता और विचारक प्रचारित करने में दशकों से जुटे हुए हैं ? नहीं , ऐसा नहीं हैं । सच , वह नहीं हैं , जो दलित वर्ग की जनता को बताया और समझाया जा रहा है । सच को तो ्वयं डॉ आंबेडकर ने ही अपने जीवनकाल
में सार्वजनिक कर दिया थिा । परनतु उस सतय को देखने , समझने और बताने की जरुरत वर्तमान में कोई भी दलित नेता और विचारक नहीं करता है ।
इतिहास का सपूक्म अनवेषण करने पर ज्ात होता है कि गुलाम भारत में हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के प्रकाशन का निर्णय सरिटिश सरकार ने लिया थिा । इसके पीछे कारण यह थिा कि भारत के लिए नीतियों के निर्धारण का कार्य लनदन में बैठने वाले सरिटिश सत्ा के रणनीतिकारों द्ारा
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