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मनुस्मृति को क्ों जलाया
डॉ आंबेडकर ने ?
मनुस्मृति के मदूल स्वरूप में हिन्दू समाज विरोधी
तरिटिश सत्ा एवं हिन्दू धर्म विरोधियों ने अपने
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सं राजनीतिक वयवस्थाओं के विषय में
विधान प्रणेता बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने भारत की सामाजिक-
गंभीरता से चिंतन करने के बाद सम्पूर्ण हिन्दू समाज में परिवर्तन की राह प्रश्त की । हिन्दू समाज में जातिवाद के दुष्चरि को समापत करने के लिए बाबा साहब ने अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर दिया । एक सार्वजनिक तालाब से दलित वर्ग की जनता को जल पीने का अधिकार दिलाने के उद्े्य से बाबा साहब ने 25 दिसमबर 1927
को कुछ चुने हुए सह्सों के विरोध में मनु्मृसत को आग के हवाले करके ततकालीन जातियु्त सामाजिक वयवस्था के प्रति अपना रोष जाहिर किया । परनतु दशकों के बाद आज भी दलित वर्ग के कलयार के नाम पर ्वयंभपू दलित नेता-विचारक के नाम पर हिन्दू धर्म ग्न्थ मनु्मृसत के विरुद विषवमन करते हुए उसे जलाकर अपने हितों और ्वाथिषों को ्पूरा करने में जुटे हुए हैं ।
प्रश्न यह है कि हिन्दू धर्म ग्न्थ मनु्मृसत
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