eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 12

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साझीदार बनें और साझा सपने देखें ? ्या इस देश में दलित उत्ीड़न पर ्पूरा देश दुखी होता है ? ्या आदिवासियों की जमीन का जबरन असधग्हण राष्ट्रीय चिंता का कारण हैं ? दुख के क्रों में अगर नागरिकों में साझापन नहीं है , तो जमीन के एक टुकड़े पर बसे होने और एक झंडे को जिंदाबाद कहने के बावजपूद हम लोगों का एक राष्ट्र बनना अभी बाकी है । राष्ट्र बनने के लिए यह भी आव्यक है कि हम अतीत की कड़वाहट को भपूलना सीखें । अमपूमन किसी भी बड़े राष्ट्र के निर्माण के रिम में कई अप्रिय घटनाएं होती हैं , जिनमें कई की श्ल हिंसक होती है और वे ्मृसतयां लोगों में साझापन पैदा करने में बाधक होती हैं । इसलिए जरूरी है कि खासकर विजेता समपूह , उन घटनाओं को भपूलने की कोशिश करे । राष्ट्र जब लोगों की सामपूसहक चेतना में है , तभी राष्ट्र है । बाबा साहब चाहते
थिे कि भारत के लोग , तमाम अनय पहचानों से ऊपर , खुद को सिर्फ भारतीय मानें . राष्ट्रीय एकता ऐसे स्थापित होगी । वर्तमान विवादों के आलोक में , बाबा साहब के राष्ट्र संबंधी विचारों को दोबारा पढ़े जाने और आतमसात किये जाने की जरूरत है ।
बाबा साहब ने कहा थिा कि अनपू्े हैं भारत के राष्ट्रवादी और देशभ्त भारत एक अनपू्ा देश है । इसके राष्ट्रवादी एवं देशभ्त भी अनपू्े हैं । भारत में एक देशभ्त और राष्ट्रभ्त वह वयक्त है जो अपने समान अनय लोगों के साथि मनुष्य से कमतर वयवहार होते हुए अपनी खुली आंखों से देखता है , लेकिन उसकी मानवता विरोध नहीं करती । उसे मालपूम है कि उन लोगों के अधिकार अकारण ही छीने जा रहे हैं , लेकिन उसमें मदद करने की सभय संवेदना नहीं जगती । उसे पता है कि लोगों के एक समपूह को
सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया गया है , लेकिन उसके भीतर नयाय और समानता का बोध नहीं होता । मनुष्य और समाज को चोटिल करनेवाले सैकड़ों निंदनीय रिवाजों के प्रचलन की उसे जानकारी है , लेकिन वे उसके भीतर घृणा का भाव पैदा नहीं करते हैं । देशभ्त सिर्फ अपने और अपने वर्ग के लिए सत्ा का आकांक्ी होता है । मुझे प्रसन्नता है कि मैं देशभ्तों के उस वर्ग में शामिल नहीं हपूं । मैं उस वर्ग में हपूं , जो लोकतंत्र के ्क् में खड़ा होता है और जो हर तरह के एकाधिकार को धव्त करने का आकांक्ी है . हमारा लक्य जीवन के हर क्ेत्र ' राजनीतिक , आसथि्णक और सामाजिक ' में ' एक वयक्त-एक मपूलय ' के सिदांत को वयवहार में उतारना है ।
19वीं सदी और 20वीं सदी के पहले दो दशकों तक हुए सामाजिक परिवर्तन की
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