eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 11

नेशन ’ आज भी सामयिक द्तावेज है । संविधान सभा में ्पूछे गये तमाम सवालों का
जवाब देने के लिए जब बाबा साहब 25 नवंबर ,
महत्वपूर्ण होता है । ’ वह चेतावनी भी देते हैं कि हजारों जातियों में बंटे भारतीय समाज का एक राष्ट्र बन पाना आसान नहीं होगा । सामाजिक
से न लेकर , बुद की शिक्ा या बौद परंपरा से लेते हैं । संसदीय प्रणालियों को भी वह बौद भिक्ु संघों की परंपरा से लेते हैं ।
1949 को खड़े होते हैं , तो वह इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारत ्वतनत्र हो चुका है , लेकिन उसका एक राष्ट्र बनना अभी बाकी है । बाबा साहब कहते हैं कि ‘ भारत एक बनता हुआ राष्ट्र है । अगर भारत को एक राष्ट्र बनना है , तो सबसे पहले इस वा्तसवकता से रूबरू होना आव्यक है कि हम सब मानें कि जमीन के एक टुकड़े पर कुछ या अनेक लोगों के साथि रहने भर से राष्ट्र नहीं बन जाता । राष्ट्र निर्माण में वयक्तयों का मैं से हम बन जाना बहुत
व आसथि्णक जीवन में घनघोर असमानता और कड़वाहट के रहते यह काम मुमकिन नहीं है । अपने बहुचर्चित , लेकिन कभी न दिये गये , भाषण ‘ एनिहिलेशन ऑफ का्ट ’ में बाबासाहब जाति को राष्ट्र विरोधी बताते हैं और इसके विनाश के महतव को रेखांकित करते हैं । बाबासाहब की संकल्ना का राष्ट्र एक आधुनिक विचार है । वह ्वतंत्रता , समानता और बंधुतव की बात करते हैं , लेकिन वह इसे पश्चमी विचार नहीं मानते । वह इन विचारों को फांसिसी रिांसत
्वतंत्रता और समानता जैसे विचारों की स्थापना संविधान में नियम कानपूनों के जरिये की गयी है । इन दो विचारों को मपूल अधिकारों के अधयाय में शामिल करके इनके महतव को रेखांकित भी किया गया है । लेकिन इन दोनों से महत्वपूर्ण या बराबर महत्वपूर्ण है बंधुतव का विचार । ्या कोई कानपून या संविधान दो या अधिक लोगों को भाईचारे के साथि रहना सिखा सकता है ? ्या कोई कानपून मजबपूर कर सकता है कि हम दपूसरे नागरिकों के सुख और दुख में
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