Dec 2024_DA | Page 9

अथ्वा अनुबंध करार करनदे की स्वतंत्ता निरर्थक है । समतात्वहीन स्वतंत्ता का अर्थ है , ' जमींदारों को किराए बढ़ानदे की स्वतंत्ता , पूंजीपतियों को काम का समय बढ़ा िदेनदे और मजदूरी घटा िदेनदे की स्वतंत्ता ' ऐसी शसथति में गरीब , निरक्र , बदेरोजगार लोगों को जो समाज का निचला ्वगमा कहलातदे हैं अपना पदेट पालनदे के लिए आर्थिक स्वतंत्ता गिर्वी रख िदेनी पडती है । इसीलिए डा . आंबदे््र नदे आर्थिक त्वरयों में सरकारी हसतक्षेप का समर्थन किया । उनहोंनदे इस बात पर बल दिया कि समाज के गरीब , दलित और दुर्बल ्वगमा की आर्थिक स्वतंत्ता बनाए रखनदे के लिए सरकार समान आर्थिक अ्वसर उपलबध
करानदे का पूर्ण आश्वासन िदे ।
लोकतंत् को सफलतापू्वमा् सथातपत करनदे के लिए अतया्व्य् बातों की चर्चा करतदे हुए डा . आंबदे््र कहतदे हैं कि पहली शर्त यह है कि ' समाज में ऊंच-नीच की भा्वना नहीं रहनी चाहिए । समाज में उतपीतडत ्वगमा नहीं होना चाहिए , शोषित ्वगमा नहीं होना चाहिए । सभी सुख-सुत्वधा प्रापत एक ्वगमा और के्वल दुःखों , अभा्वों को भोगनदे ्वाला एक ्वगमा , ऐसी शसथति नहीं होनी चाहिए । रकतरंजित रिांति के बीज इस प्रकार त्वभाजित समाज में मौजूद होतदे हैं और लोकतंत् ऐसी रिांति को रोक नहीं सकेगा ।'
इसी भाषण में डा . आंबदे््र नदे भत्वष्य्वाणी
की- ' समाज के भिन्न- भिन्न वर्गों के बीच की यह गहरी खाई लोकतंत् की सफलता के मार्ग में सबसदे बडी बाधा सिद्ध होगी । लोकतंत् में सभी को समान मतदान करनदे का अधिकार हो , चाहदे ्वह उतपीतडत हो या दलित , उसके अधिकार छिन गए हों या ्वह बोझ ढोता हो , चाहदे ्वह सधन हो या निर्धन । और संभ्वतः सधनों की अपदेक्ा निर्धनों की संखया कहीं अधिक होती है । अगर हमनदे बहुतों की आ्वाज को निर्णायक नियुकत किया है तो ऐसा भी संभ्व है कि यदि अ्पसंखय् ' सधन ' ्वगमा स्वदेचछा सदे अपनदे आप अपनी त्वशदेर सुत्वधाएं नहीं छोड िदे तो उसमें और समाज के निचलदे सतर के ्वगमा में अंतर बढ़ता जाएगा , जिससदे लोकतंत् नष्ट होकर उसके सथान पर कुछ और ही खडा हो जाएगा । यदि आप त्व््व के अलग-अलग सथानों में लोकतंत् के इतिहास का निरीक्ण करें तो यह ज्ात होगा कि इन सामाजिक शतगों की पूर्ति न होनदे के कारण ्वहां लोकतंत् का त्वनाश हुआ है । इस संबंध में मदेरदे मन में रतिीभर भी संिदेह नहीं है ।'
्वह त्व््व के अनय भागों में संसदीय लोकतंत् की असफलता के कारणों की मीमांसा करतदे हुए कहतदे हैं कि ' अनुबंध करनदे की स्वतंत्ता अनदे् कारणों में सदे एक है । इस धारणा नदे आगदे चलकर एक पवित्रता प्रापत कर ली , जिसदे स्वतंत्ता के रूप में समर्थन प्रापत हुआ । न तो अनुबंध करनदे्वालदे दोनों पक्ों की आर्थिक शसथति और सौदा करनदे के सामरयमा को संसदीय लोकतंत् नदे त्वचार में लिया और न ही अनुबंध स्वतंत्ता सदे इन दो पक्ों पर होनदे ्वालदे परिणामों पर ही धयान िदेनदे का कष्ट किया । अनुबंध की स्वतंत्ता सदे दुर्बल पक् को ्ठगनदे का सबल पक् को अ्वसर मिलता है , इसका भी खयाल उसनदे नहीं रखा । परिणामस्वरूप , संसदीय लोकतंत् नदे स्वतंत्ता को पुष्ट तो किया , लदेत्न इसके साथ-साथ गरीब , दलित तथा ्वंचित लोगों की आर्थिक ्त्ठनाइयों में ्वृद्धि की । अनदे् िदेशों में स्वतंत्ता की आशा जाग्रत हुई । परंतु समता का महत्व समझनदे में ्वह असफल रहदे तथा समता और स्वतंत्ता का तालमदेल नहीं तब्ठा पाए । इसीलिए स्वतंत्ता समता पर हा्वी हो गई और लोकतंत्
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