iq .; frfFk ij fo ' ks " k
सामाजिक और आर्थिक लोकतंत् न रहनदे पर राजनीतिक लोकतंत् सफल हो ही नहीं सकता । डा . आंबदे््र कहतदे हैं कि इस सिद्धांत को न समझ पानदे के कारण अनदे् सथानों पर संसदीय लोकतंत् को वयथमा माना गया है । बाद में 20 मई 1956 को डा . आंबदे््र नदे ' ्वलॉयस ऑफ अमदेरिका ' द्ारा आयोजित एक ्वार्ता में ' भारतीय लोकतंत् का भत्वष्य ' पर भाषण दिया । इसमें उनहोंनदे कहा ' लोकतंत् का अर्थ मात् गणराजय अथ्वा संसदीय सरकार नहीं है । लोकतंत् का मूल शासन प्रणाली अथ्वा संसदीय या किसी अनय प्रणाली में नहीं है ।' ्वह कहतदे हैं , ' लोकतंत् का अर्थ है साथ-साथ जी्वन बितानदे की एक
प्रणाली । लोकतंत् की जडें उन लोगों के सामाजिक संबंधों में ही नजर आती हैं जो एक समाज में साथ-साथ जी्वन बितातदे हों ।' लोकतंत् के प्रबल समर्थक डा . आंबदे््र की दृष्टि में एक त्वशाल तचत् था , जिसमें मनुष्य-मनुष्य के बीच के राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक संबंधों के त्वत्वध रंग एकरूप होकर एक परिपूर्ण सामाजिक-आर्थिक दृ्य निर्मित करतदे हैं ।
सामाजिक आर्थिक लोकतंत्र के लिए अतयाि्यक बिंदु
राजनीतिक समता तथा त्वचार और कार्य करनदे की स्वतंत्ता किसी भी लोकतंत् की
आधारशिलाएं मानी जाती हैं । परंतु डा . आंबदे््र नदे इस पर अधिक बल दिया कि ' लोकतंत् का संबंध मात् राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं होना चाहिए बल्् सामाजिक और आर्थिक त्वरयों में भी समान अ्वसर प्रदान करना ही लोकतंत् का सही अर्थ है ।' डा . आंबदे््र का कहना था कि यदि स्वतंत्ता के साथ-साथ लोगों को समाजिक और आर्थिक त्व्ास में भाग लदेनदे के समान अ्वसर प्रापत न हों तो ्वह स्वतंत्ता ही नष्ट हो जाएगी । जिन लोगों का आर्थिक जी्वन उनकी जाति के आधार पर निर्धारित किया गया हो और जिनकी सौदा करनदे की शशकत छीन ली गई हो , उनके लिए वयापार या व्यवसाय
8 fnlacj 2024