Dec 2024_DA | Page 10

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एक ' फार्स ' बनकर रह गया ।'' स्वतंत्ता के समान ही ' बंधुत्व ' की शसथति । डा . आंबदे््र के मतानुसार ' बंधुत्व ' यह लोकतंत् का दूसरा नाम है । अतए्व सामाजिक अतयाचार , जातीयता , बदेगारी , दुर्व्यवहार और असुरतक्तता , यदे सब लोकतंत् की सथापना को बाधा पहुंचातदे हैं ।
' नयायशीलता का अभा्व ' लोकतंत् के मार्ग में एक और बाधा है , यह भी डा . आंबदे््र नदे पहचाना था । उनके मतानुसार समाज यदि यथार्थ और आदर्श के बीच संतुलन बनाए रख सके तो नयायशीलता प्रापत की जा सकती है । यदि समाज यथार्थ को आदर्श माननदे लगदे ( जैसदे- अलग- अलग वर्गों का अशसतत्व ) तो नयाय के सिद्धांत में बाधा पड़ेगी । इसीलिए चातुर्वर्ण्य में अंतर्निहित सामाजिक और आर्थिक बंधनों को अस्वीकार करना आर्थिक नयाय के लिए पू्वमा शर्त है और आर्थिक लोकतंत् की सिद्धि के लिए एक अतया्व्य् मद है ।
डा . आंबदे््र कहतदे हैं कि लोकतंत् के लिए
एक ' सा्वमाजनिक अंतःकरण ' ( पशबल् ्लॉनशस ) की आवश्यकता होती है । उनहोंनदे एक जगह कहा है कि ' हम लोग ितक्ण अफ्ी्ा की बात करतदे हैं , परंतु मुझदे मन-ही-मन आ्चयमा होता है कि अफ्ी्ा में भदेिभा्व के त्वरय में बोलतदे समय कया हमें यह समरण रहता है कि अपनदे यहां गां्व-गां्व में एक ितक्ण अफ्ी्ा है ? यह सतय पररशसथति है । खुद जाकर िदेखें तो समझ पाएंगदे । इसका कारण है I अपनदे यहां सा्वमाजनिक अंतःकरण का अभा्व । अनयाय सदे उतपीतडत अ्पसंखय्ों को इस अनयाय सदे बचानदे के लिए किसी सदे भी सहायता नहीं मिल पाती । इसीलिए रिांतिकारी प्र्वृततियाँ पनपती हैं और लोकतंत् के लिए खतरा उतपन्न हो जाता है ।'
इस प्रकार सामाजिक और आर्थिक मदों में समान अ्वसर , बंधुभा्व पर आधारित समाज व्यवसथा , नयाय मिलनदे का त्व््वास और सा्वमाजनिक अंत : करण इन सब को डा . आंबदे््र सामाजिक-आर्थिक लोकतंत् के लिए
अतया्व्य् पू्वमा शततें मानतदे हैं , जो उनका स्वप्न था । इस पृष््ठभूमि में ्लॉ . आंबदे््र द्ारा प्रस्तावित सं्वैधानिक प्रा्वधानों को परखना अतयंत आवश्यक है ।
सवैधानिक सतर्कताएं
1947 में डा . आंबदे््र नदे संत्वधान समिति को एक ज्ापन प्रसतुत किया , जिनमें उनहोंनदे बताया कि अनुसूचित जातियों की सुरक्ा के लिए संत्वधान में कया-कया प्रा्वधान होनदे आवश्यक हैं । इस ज्ापन का शीर्षक था ' राष्ट्र ए्वं अ्पसंखय् '। इस ज्ापन में उनहोंनदे संसदीय लोकतंत् को बरकरार रखनदे की आवश्यकता पर बल िदेनदे के साथ यह भी सुझा्व दिया कि संसद् को यह अधिकार न हो कि ्वह साधारण बहुमत सदे राष्ट्र समाज्वाद पर रोक लगाए , उसमें परर्वतमान करदे या उसदे निरसत कर िदे , इसलिए राष्ट्र समाज्वाद का कार्यान्वयन राष्ट्र के संत्वधान के माधयम सदे ही होना चाहिए । डा .
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