Dec 2024_DA | Page 11

आंबदे््र की धारणा थी कि के्वल ऐसा होनदे पर ही संसदीय लोकतंत् बनाए रखनदे , समाज्वाद की सथापना करनदे और तानाशाही सदे बचनदे के तीन लक्य प्रापत किए जा सकेंगदे । बाद में संत्वधान समिति के समक् भाषण करतदे हुए उनहोंनदे कहा कि नया संत्वधान बनानदे के दो ध्येय थदे-
-राजनीतिक लोकतंत्र का सिरूप निश्चत करना ।
-आर्थिक लोकतंत्र यही हमारा उद्े्य है , ऐसा ऐलान करना । कोई भी सरकार सत्ा में हो , वह आर्थिक लोकतंत्र स्ाशपत करने के लिए कटिबद्ध रहे , यह घोषित करना । इस प्रकार आर्थिक लोकतंत्र की संकलपना भारत के संविधान में आरंभ ही से अंतर्भूत की गई थी ।
इस सं््पना को सपष्ट करतदे हुए डा . आंबदे््र कहतदे हैं , ' लोगों का यह त्व््वास है कि आर्थिक लोकतंत् अनदे् प्रकार सदे सथातपत
किया जा सकता है । कुछ लोग समझतदे हैं कि परम वयशकत्वाद लोकतंत् की स्वमाश्रदेष््ठ प्रकार है , तो कुछ यह मानतदे हैं कि समाज्वादी राष्ट्र द्ारा ही लोकतंत् प्रापत किया जा सकता है । आर्थिक लोकतंत् की सथापना का एकमदे्व मार्ग साम्यवाद ही है , ऐसा कुछ और लोगों का मत है । परंतु ' एक तरल और प्र्वाही धारणा को ज्ड्र रखनदे के प्रयास ्ठीक नहीं है । आर्थिक लोकतंत् एक परर्वतमानशील सं््पना है , जो समय और पररशसथति के साथ-साथ बदलती रहती है ।' इसीलिए आर्थिक लोकतंत् की नीं्व रखनदे के लिए उनहोंनदे इसदे राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों के अंतर्गत संत्वधान में सशममतलत कराए जानदे का आग्रह किया । राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों का संत्वधान में समा्वदेश आवश्यक तो था , लदेत्न आर्थिक लोकतंत् की सथापना के लिए काफी नहीं , इसदे डा . आंबदे््र अचछी तरह समझतदे थदे । इसीलिए संत्वधान को अपनातदे समय किए गए अपनदे भाषण में उनहोंनदे कहा था-
' 26 जन्वरी , 1950 को हम एक परसपर त्वरोधी स्वरूप की जी्वनप्रणाली अपनानदे जा रहदे हैं । हमारदे राजनीतिक जी्वन में समता होगी , परंतु आर्थिक और सामाजिक जी्वन में त्वरमता होगी । राजनीति में एक वयशकत एक मत है और प्रत्येक मत का मू्य एक-सा है , यह हम स्वीकार कर लेंगदे ; किंतु अपना सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा है कि सभी लोग समान हैं , यह हम स्वीकार नहीं कर पाएंगदे । कब तक हम ऐसा परसपर त्वरोधी जी्वन जीतदे रहेंगदे ? कब तक हम अपनदे आर्थिक और सामाजिक जी्वन में समानता को ्ठुकरातदे रहेंगदे ? यदि बहुत समय तक यह जारी रहदे तो अपना राजनीतिक लोकतंत् संकट में पड जाएगा । इस असंगति को यथाशीघ्र मिटाना होगा , ्वरना असमानता का शिकार ्वगमा द्ारा राजनीतिक लोकतंत् की इमारत को ही तहस-नहस कर दिया जाएगा ।'
( पुसतक डा . आंबेडकर : आर्थिक विचार एवं दर्शन से साभार )
fnlacj 2024 11