Dec 2024_DA | Page 49

नजरिए सदे अतयतध् प्रभात्वत रहतदे हैं और आम भारतीय के मनोत्वज्ान को नजरंदाज करतदे हैं । यह एक अपराध है । इसके मूल में अनय त्वचारधाराओं का षड्ंत् भी काम करता रहा है ।
जो त्वचारधाराएं धर्म की सतिा और आशसत्ता की शशकत को समापत करके किसी
तरह का का्पतन् यूटोपिया लानदे की तैयारी में हैं , उनहोंनदे पूरदे दलित आंदोलन को गलत ढंग सदे इस्तेमाल किया है । उनहोंनदे पूरदे दलित समाज में नाशसत्ता फैलानदे और अपनदे-अपनदे सांस्कृतिक मू्यों सदे घृणा सिखानदे , अपनदे राजनीतिक लाभ के लिए भोलदेभालदे दलितों को उनकी संस्कृति और त्वरासत सदे दूर करनदे का कार्य किया है । ्वह दलित समाज को कमजोर करनदे का ही एक षड्ंत् है । इससदे बहुत तरह के नुकसान हुए हैं । दलित सशकती्रण की संभा्वना पर कु्ठाराघात हुआ है । साम्यवादी और समाज्वादी राजनीतिक दी्वानों नदे दलित समाज में रिांति की जैसी इबारत लिखी है , ्वह दलितों को और अधिक कमजोर और दिशाहीन करती जा रही है । एक राजनीतिक शशकत , जो दलितों के संग्ठन सदे पैदा हुई है , उसकी आंखें और कान इन नाशसत्ता्वादी आंदोलनकारियों और लोकलुभा्वन राजनदेताओं नदे बहुत पहलदे
नोंच लिए ।
ऐसा माननदे के कुछ आधारभूत कारण हैं । उनहें भारत में घटित हुए अनय सामाजिक आंदोलनों की सफलता या त्वफलता की तुलना करके समझा जा सकता है । इसके लिए भारत में धर्म और परंपरा की शशकत को समझनदे का रुझान चाहिए , जो कि अकसर उच्च तशतक्त ्वगमा में नहीं होता । त्वशदेर रूप सदे ्वह ्वगमा , जो समाज त्वज्ान की पढ़ाई करता है । उसमें तो धर्म और परंपरा के प्रति निंदा का भा्व इतनदे गहरदे बै्ठ जाता है कि ्वह इसका कोई सकारातम् उपयोग िदेख ही नहीं पाता । उसके लिए परंपरा या धर्म का मतलब एक लाइलाज बीमारी की तरह होता है । मगर ्वह भूल जातदे हैं कि ्वह भारत में बै्ठडे हैं और जिस समाज को त्व्तसत करना चाहतदे हैं ्वह मौलिक रूप सदे धर्म और परंपराओं में जीनदे ्वाला समाज है । आज तक इतनदे दशकों या पूरी एक शताबिी में भी धर्म की पकड़ न तो स्वणमा समाज में कम हुई है , न ही दलित समाज में । कोई भी सामाजिक कार्य , जैसदे-जनम सदे लदे्र , शादी समारोह और अंतिम संस्ार तक में सभी जातियों की भागीदारी बनी हुई है । यही है हमारदे समाज का ्वास्तविक रूप ।
दलित राजनीति में शशकत संचय एक सफलता अवश्य है , पर उसकी कोई दिशा नहीं है । साम्यवादी या समाज्वादी रिांति की शैली सदे प्रभात्वत सिद्धांतकारों नदे दलित राजनीति को शशकतशाली बनानदे में अवश्य सकारातम् भूमिका निभाई है , पर उसका बार-बार दुरुपयोग भी किया है । यह दुरुपयोग ्वैसा ही है जैसा मुशसलम ्वोट बैंक के साथ होता आया है । खुद दलित नदेताओं में एक वयापक दिशाहीनता बनी हुई है । यह पूरदे भारतीय इतिहास में एक षड्ंत् की तरह फैला हुआ है और इसके परिणाम हर काल में एक जैसदे रहदे हैं । जब भी दलित और ्वंचित समाज अपनदे सांस्कृतिक मू्यों को त्व्तसत करनदे की दिशा में आगदे बढ़ता है , राजनीतिक शशकत के उपासक इसदे शशकत के गणित में उपयोग करके नष्ट करतदे रहदे हैं । इसका परिणाम यह हुआ है कि एक अंधी और बहरी राजनीतिक शशकत का ज्वार तो पैदा हो गया है , लदेत्न आंख और कान ्वाली दलित
संस्कृति का त्व्ास नहीं हो पाया है ।
जब तक दलित समाज अपनदे पू्वमाजों , संतों और अपनी त्वरासत पर ग्वमा करना नहीं सीखता तब तक उसका ्वतमामान और भत्वष्य खुद उसकी नजरों में निंदित रहेंगदे । दूसरी जातियों और समाज का उनके बारदे में कया मत है , ्वह भी दलितों की इस आतमहीनता की भा्वना सदे उपजता है । अगर दलित समाज और वयशकत खुद को असंस्कृत , असभय और पिछड़ा मानता है तो स्वणमा समाज भी उसकी आंखों में इस हीनभा्वना को पढ़ कर उसी भाषा में उतिर िदेनदे लगता है । यही एक अर्थ में पूरदे दलित समाज के पतन और दलन का मूल कारण है ।
इतिहास साक्ी है कि शत्ु के शौर्य-कौशल सदे नहीं , बल्् हितैषियों की मूर्खता सदे सभी साम्राजय ढहाए गए हैं । और यह मूर्खता अगर षड्ंत्पू्वमा् पैदा की गई हो तब तो इससदे जितनी ज्िी बच निकलें उतना ही श्रदेयस्र है । इसीलिए आज के समय में हमारदे सामनदे चल रहदे राजनीतिक षड्ंत्ों सदे बच कर दलित समाज के सांस्कृतिक पुनगमा्ठन की आवश्यकता है । सभी दलित जातियों में संतों का एक त्वराट साहितय है , जिसदे प्राचीन और मधय्ालीन इतिहास सदे सीधदे उ्ठाया जा सकता है । उसमें संतुलित और सदाचारी जी्वन के सूत् बहुत त्वसतार सदे समझाए गए हैं । ज्ान प्रापत करनदे और हलाल की कमाई सदे परर्वार का पोषण करनदे सहित बच्चों और औरतों का नयायपूर्ण पालन-पोषण करनदे की बातें समझाई गई हैं । अंधत्व््वासों को तोड़नदे और कुरीतियों सदे लड़नदे की सीख हर संत के साहितय में बहुत सरल भाषा में दी गई है । इन संतों को एक माला में पिरो दिया जाए तो भारतीय दलितों के सांस्कृतिक एकीकरण का प्रश्न बहुत आसानी सदे हल हो सकता है । उनमें शिक्ा और सदाचार को आसानी सदे सथातपत किया जा सकता है । इसी रिम में एक सबल संस्कृति के निर्माण का लक्य भी हासिल किया जा सकता है । फिर दलित ्वोट बैंक को मुशसलम ्वोट बैंक की तरह खिलौना बनानदे सदे भी बचाया जा सकता है । �
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