है । सनातन का अर्थ है , जो पहलदे था और आज भी है और भत्वष्य में भी रहदेगा अर्थात सदातन यानी शाश्वत है । धर्म को सनातन माना गया है । सनातन धर्म की अ्वधारणाओं के अनुसार एक सफल , संतुष्ट और त्व्ास की ओर निरंतर गतिमान मान्व समाज में सामाजिक समरसता का भा्व भी होता है । सामाजिक समरसता आयाम ही समाज के अंदर आनदे ्वालदे त्वतभन्न मान्व समुदाय या समूह के मधय आपसी सामंजसय सथातपत कराती है और स्वयं ही ्वह आयाम मान्वीय तरियाकलापों को संतुलित ए्वं नियंतत्त भी करतदे हैं । समाज के अंदर समरसता का भा्व मान्व त्व्वदे् पर निर्भर करता है । ऐसदे में यह आवश्यक हो जाता है कि समाज के सभी सदसय और उनका त्व्वदे् सामाजिक समरसता के भा्व सदे युकत हों । इसके लिए यह आवश्यक है कि समाज में जाति , प्रजाति ए्वं ्वगमा्वाद का पूर्ण रूप सदे अस्वीकार करना होगा । यह तभी संभ्व हो सकता है कि प्रत्येक त्वचारधारा के मान्व
समूह जाति , प्रजाति ए्वं ्वगमा्वाद आधारित ्कृतिम मानसिकता के त्वरुद्ध एकजुट होकर सामनदे आए और उसदे सामूहिक रूप सदे अस्वी्कृत करके उसकी निंदा करतदे हुए सामाजिक समरसता समबनधी अभियान का स्वागत करें ।
धयान िदेनदे लायक बिंदु यह भी है कि भारतीय जी्वन पद्धति की ्वैचारिकी यह सुनिश्चत करती है कि मान्व समाज का प्रत्येक सदसय आतमतनयंतत्त होकर समाज में समरसता को व्यवहारिक रूप सदे सुनिश्चत करनदे में अपना योगदान करदेI सामाजिक समरसता के माधयम सदे सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक इतयाति सभी क्षेत्ों में सुव्यवसथा सथातपत की जा सकती है , जिसके परिणामस्वरूप भा्वातम् एकीकरण का स्वप्न साकार हो सकता है तथा सामाजिक अनुकूलन का लाभ प्रापत किया जा सकता है । इससदे सामाजिक तरयों की जटिलताओं का तन्वारण हो सकता है तथा मान्व समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता
का भा्व नियोजित किया जा सकता है ।
सामाजिक निरंतरता एवं लयबद्ध गतिशीलता के लिए सामाजिक समरसता आि्यक
किसी भी मान्व समाज की सामाजिक निरंतरता ए्वं लयबद्ध गतिशीलता को समृद्ध बनानदे में सामाजिक समरसता का उपयोग ्वतमामान समय में अवश्यंभा्वी हो गया है । सामानय रूप सदे सामाजिक निरंतरता का अर्थ मान्व की सामाजिक , आर्थिक ए्वं वयशकतगत शसथति में होनदे ्वालदे परर्वतमान की उस प्रकिया सदे है , जो समाज के सभी सदसयों को यह स्वतंत्ता िदेती है कि ्वह उन सकारातम् गुणों का त्व्ास करके अपनी सामाजिक पिशसथति में सुगमता सदे परर्वतमान कर सकता है , जिन सकारातम् गुणों को समाज की स्वी्कृति प्रापत होती है । ्वतमामान समय में मान्व समाज में जाति , ्वगमा , पंथ , संप्रदाय जैसी व्यवसथा के
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