Dec 2024_DA | Page 26

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किए जा रहदे सरकारी ए्वं सामुदायिक प्रयास संसाधनों के अभा्व में अतयतध् उपयोगी प्रमाणित नहीं हो पा रहदे हैं । सामंत्वादी मनो्वृततियां , पूंजी्वादी अर्थव्यवसथा और सामाजिक व्यवसथा में जयदेष््ठता ए्वं श्रदेष््ठता के भा्व की सथातपत मानसिकता ्वैश्विक सतर पर समपूणमा मान्व समाज में आर्थिक भदेिभा्व जैसी सामाजिक समसया को जनम िदेती है । भारत सहित अनदे् त्व्ासशील िदेशों में सामाजिक आर्थिक संरचना सामंत्वादी रही है , जिसमें साधन और सुत्वधा-समपन्न ्वगमा वयशकतगत और सामूहिक सतर पर स्वयं को और अधिक सुत्वधा- समपन्न बनानदे में जुटा रहता है । ्वह गरीबों या निर्धन लोगों को नयूनतम साधन और सुत्वधा- समपन्न बनानदे के लिए स्वदेचछा सदे कोई प्रयास नहीं करता । ्वतमामान ्वैश्विक व्यवसथा रिम के अंतर्गत त्व्तसत िदेशों में आर्थिक भदेिभा्व को समापत करनदे के प्रयास भी उच्चता ए्वं श्रदेष््ठता के मनो्वैज्ातन् दशा के कारण पूरी तरह फलीभूत नहीं हो पाए हैंI
किसी भी मान्व समाज के समपूणमा और समग्र त्व्ास के लिए यह आवश्यक है कि समाज में रहनदे ्वाला कोई भी मान्व जी्वन जीनदे के लिए आवश्यक नयूनतम अथ्वा मूल संसाधनों के अभा्व सदे जुडी समसया का सामना कभी न करदे और जब ऐसा होता है तो समाज में सामाजिक त्वरमता के सथान पर सामाजिक समरसता का भा्व उतपन्न होता है । सामाजिक समरसता का यही भा्व मान्व को सकारातम् ए्वं समाजीकरणयुकत जी्वन जीनदे के लिए न्वीन मार्ग को प्रससत करता है ।
प्लेटो , ्वोलनी , ्वाल्तेयर , रूसो , पीयरदे जोसदेफ प्रूधों , पीटर रिोपटत्न , थामस पदेन , मिल आदि दुनिया के महानतम दार्शनिकों का चिंतन हमारदे सामनदे है । आर्थिक भदेिभा्व को समापत करनदे के लिए माकसमा और दूसरदे बुद्धिजी्वी ्वगमाहीन समाज की सथापना का सुझा्व िदेतदे रहदे हैं । यह सामानय रूप सदे ऐसदे जी्वनदर्शन का समर्थन करतदे हैं जिसमें आर्थिक , सामाजिक , धार्मिक अथ्वा किसी भी अनय प्रकार के भदेिभा्व को समापत किया जा सके । लदेत्न कया ्वास्तव में
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