आर्थिक ए्वं सामाजिक सतर पर हुए बड़े बदला्वों का परिणाम आर्थिक त्वरमता ए्वं सामाजिक भदेिभा्व के रूप में सामनदे आया । यह परर्वतमान मान्व समाज के लिए ्वतमामान परर्वतमानशील ्वैश्विक व्यवसथा रिमांक में चुनौतियां लदे्र आए हैं । त्व््व के लगभग सभी िदेश ्वतमामान में शांति और सुरक्ा के लिए उतपन्न हुए खतरों के साथ जातीय तना्व , प्रजाति आधारित संघर्ष ए्वं आर्थिक असमानता के कारण उतपन्न होनदे ्वाली जटिल शसथतियों का सामना करनदे के लिए बाधय हो गए हैं । परर्वतमान का यह समय जोखिमों सदे भरा हुआ सपष्ट रूप सदे िदेखा जा सकता है । यह एक ्वैश्विक चुनौती है । शांति और सुरक्ा , सतत और समा्वदेशी त्व्ास तथा मान्वाधिकारों और कानून के शासन के प्रति सममान के बिना बदलती हुई ्वैश्विक व्यवसथा रिम में न तो सथायी रूप सदे सद्भाव सथातपत हो सकता है और न ही सामाजिक समरसता की अपदेक्ा की जा सकती है । यह समझना अतिआवश्यक है ।
किसी भी समाज में वयशकत की सामाजिक ए्वं आर्थिक शसथति , त्व्ास ए्वं त्वनाश दोनों
आर्थिक संसाधन के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव से वि्ि का कोई भी देश अछूता नहीं है । आर्थिक आधार पर होने वाला भेदभाव मानव समाज के लिए इस शताबदी की सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभरा है । आर्थिक आधार पर होने वाला भेदभाव एक वि्िवयापी समसया है । विकासशील देशों में जहां आर्थिक भेदभाव की समसया अधिक गमभीर है , वही विकसित देश भी आर्थिक भेदभाव की समसया का सामना कर रहे हैं ।
का ही कारण बन जाती है । ्वतमामान समय में जातत्वाद , प्रजातत्वाद ए्वं ्वगमा्वाद के कारण मान्वीय संस्कृति के त्वतभन्न अंगों में उतपन्न हुए असंतुलन को िदेखा जा सकता है । अंसतुलन की यह प्रतरिया समाज के त्वतभन्न वर्गों , समूहों में तना्व पैदा करती है और तना्व की यही मानसिकता सामाजिक , सांस्कृतिक ए्वं भा्वनातम् संघर्ष का कारण बनती है । इससदे निपटनदे का एकमात् मार्ग ्वैश्विक सतर पर चलाए जानदे ्वालदे एक सामाजिक समरसता के रूप में िदेखा जा सकता है ।
सामाजिक समरसता का तातपयमा ्वैश्विक सतर पर सथातपत सामाजिक त्वरमता जैसदे- ्वगमा्वाद ( आर्थिक सतर पर निर्मित उच्च-नीच ्वगमा ), प्रजातत्वाद ( शारीरिक बना्वट के आधार पर होना ्वाला भदेिभा्व ) ए्वं जातत्वाद ( जाति आधारित जयदेष््ठता ए्वं श्रदेष््ठता भा्व ) का उनमूलन करना है । ्वैश्विक व्यवसथा रिम का अर्थ ्वैश्विक सतर पर सथातपत ्वह व्यवसथा रिम , जो मान्व समाज , उसकी जी्वन पद्धति ए्वं प्रा्कृतिक संरचना को संरतक्त करतदे हुए ्वैज्ातन् त्व्ास पर आधारित आर्थिक योजना का सथातपत स्वरूप होता है ।
वैश्िक सामाजिक समरसता अभियान एवं आर्थिक परिक्षेत्र
आर्थिक संसाधन के आधार पर किए जानदे ्वालदे भदेिभा्व सदे त्व््व का कोई भी िदेश अछूता नहीं है । आर्थिक आधार पर होनदे ्वाला भदेिभा्व मान्व समाज के लिए इस शताबिी की सबसदे बड़ी चुनौती बन कर उभरा है । आर्थिक आधार पर होनदे ्वाला भदेिभा्व एक त्व््ववयापी समसया है । त्व्ासशील िदेशों में जहां आर्थिक भदेिभा्व की समसया अधिक गमभीर है , ्वही त्व्तसत िदेश भी आर्थिक भदेिभा्व की समसया का सामना कर रहदे हैं । यह एक अजीब त्वरोधाभास है कि त्व्तसत िदेशों में जहां आर्थिक भदेिभा्व तन्वारण के लिए किए गए बहुआयामी सं्वैधानिक ए्वं शासकीय प्रयास संसाधनों के बहुलता के उपरांत भी असफल सिद्ध हो रहदे हैं , ्वही त्व्ासशील िदेशों में आर्थिक भदेिभा्व सदे निपटनदे के लिए
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