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लेकर दलित समाज को भ्रमित करके अपने ्वाथिमों की पदूदत्म के लिए प्रयासरत हैं । ऐसे नेता डा . आंबेडकर के मदूल विचारों से अनजान हैं और उनहें यह भी नहीं पता कि दलित समाज के कलयाण के लिए बाबा साहब का उद्ेशय कया थिा और वह किस तरह से दलित समाज के कलयाण को राषट्र के सम्पूर्ण विकास से समबद् करके देखते थिे ? ऐसे दलित नेताओं का शायद भी पता होगा कि बाबा साहब का पदूरा जीवन इस बात का उदाहरण है कि वयसकत का दृढनिर्णय ही उसका निर्माण करता है , उसकी जाति , पारिवारिक निर्धनता , असुविधाएं और समाज का विरोध उसकी प्रगति को रोक नहीं सकता । डा . आंबेडकर का कहना थिा कि समाज का नेतृतव करना आसान नहीं है । समाज का नेतृतव करने के लिए वयसकत को गुनी और पररश्मी होना चाहिए ।
सफल नेतृतव के लिए डा . आंबेडकर ने कहा थिा कि जिसमें धैर्य नहीं , वह नेतृतव नहीं कर सकता । अगर कोई राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करना चाहता है तो उसे राजनीति का गहन अधययन करना होगा । लोगों को लगता है कि नेता बनना सरल है , पर मेरे विचार से नेता बनना आसान नहीं है । दलित समाज के युवकों के लिए डा . आंबेडकर ने आह्ाहन किया थिा कि अपने ऊपर विशवास करो , अपने प्रयत्ों पर विशवास करो और अपनी बुदद् एवं क्षमता से कठिनाइयों को पार करो । ज्ान सबसे पवित्र व्तु है । इसका अथि्म यह है कि दलित समाज के युवक भी शिक्षा हासिल करके आगे आए और अपनी मेहनत की दम पर समाज और राषट्र कलयाण में अपनी ऊर्जा को लगाए । पर कया वर्तमान में ऐसा हो रहा है ? या दलित समाज के कदथित नेता कया डा . आंबेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए प्रयत्शील हैं ? कया दलित समाज के कलयाण समबनधी मांगों में राषट्र कलयाण का भाव भी मौजदूद है ?
समाज और सामाजिक स्थितियों एवं मानव वयवहार का विशलेरण करने वाले इस प्रश्न का उत्तर नहीं में ही देंगे । कारण यह है कि ्वतंत्रता के बाद अगर धयान दिया जाए तो देश के विभिन्न
दह्सों में दलित कलयाण और विकास की मांग को लेकर कई दलित नेता सामने तो आए , पर सत्ता मिलने के बाद जब उनके सामने दलित समाज के वा्तदवक कलयाण और विकास समबनधी उपयोगी कदम उठाने की बारी आई तो अधिकतर नेता दलित समाज को अपने वादों की दम पर भ्रमित करने और काम निकलने की मानसिकता में ही जीते रहे । दलित समाज के लिए ऐसे तमाम नेता शायद ही कुछ सकारातमक कदम उठाने में सफल रहे होंगे कयोंकि उनके तमाम दावों के बावजदूद दलित समाज आज भी अपने विकास और कलयाण की राह देख रहा है ।
आज देश का सामाजिक वातावरण सामानय
नहीं है । जाति , धर्म और संप्रदाय के साथि क्षेत्रीयता में बं्टा आम आदमी राषट्रभाव से अलग होकर ्वदहत तक सिम्ट कर रह गया है । ददूदरत राजनीतिक एवं आदथि्मक चिंतन के मधय सां्कृदतक चिंतन लगभग समापत हो चुका हैI हिन्दू समाज में जातिगत भेद और दलित जातियों के साथि अनय जातियों के लोगों के मानस में स्थापित अवयवहारिक एवं अवैज्ादनक तथय , हिन्दू समाज के सामाजिक सौषठव की दिशा में भारी अवरोध है । दुर्भागय से दलित वर्ग के साथि सामाजिक हीनता उनकी नियति बना हुआ है । इसलिए यह विचार करना ही होगा कि हिन्दू समाज के इस बड़े एवं अभिन्न दह्से को किस प्रकार सामाजिक शसकत प्रदान करके उनकी
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