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महिला समानता एवं अधिकारों के पैरोकार डा . आंबेडकर

राजन चौधररी

यह बात सर्वविदित है कि आज के जैसे पहले के भारत में महिलाओं की स्थिति एक जैसी नहीं थिीI हमें इतिहास के उन पन्नों को भी पल्ट कर पढ़ने की जरूरत है , जिससे हमें मालदूम हो की हमारी माताओं , बहनों , बेद्टयों को समानता , आज़ादी और सामाजिक बुराइयों से छु्टकारा कैसे मिला । भारत एक ऐसे दौर से भी गुजरा है , जब हिंददू समाज में पुरुष और महिलाओं को तलाक का कोई भी क़ानदूनी अधिकार नहीं थिाI पुरुषवादी सत्ता का वर्म्व चरम पर थिाI उनहें एक से जयादा शादी करने की आजादी थिी , वहीं विधवाएं दोबारा शादी नहीं कर सकती थिीं । यहां तक कि विधवाओं को संपत्ति में अधिकार नहीं दिया गया थिा , साथि ही महिलाओं के प्रति अनय कई सामाजिक बुराइयां भी वयवहार्य में थिींI

आज जिस प्रकार भारतीय समाज महिलाओं को लेकर लोकतांत्रिक और उदार नजर आता है , वह कुछ दशकों पहले तक वैसा नहीं थिाI उस दौर में जब पहली बार लड़दकयों की शिक्षा के लिए उनको स्कूल भेजने का अभियान चलाया गया , तब उन परिवारों का परंपरावादी कट्टरपंदथियों द्ारा धार्मिक तौर पर बहिषकार करने के कई मामले भी सामने आये । सीधे तौर पर , तब लड़दकयों को स्कूल भेजने वाले परिवारों का सामाजिक बहिषकार होता थिाI
महिलाओं की ऐसी दशा देख बाबा साहब ने एक कानदून बनाने की योजना बनाई जो उकत
सभी सामाजिक बुराईयों को दम्टाने का काम करता । बाबा साहब डाI आंबेडकर हिंददू कोड बिल पारित करवाने को लेकर काफी परेशान
भी थिेI तब बाबा साहब ने कहा थिा कि , “ भारतीय संविधान के निर्माण से अधिक दिलर्पी एवं खुशी , मुझे हिंददू कोड बिल पास कराने में होगीI ”
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