हालांकि यह बिल उस समय पारित नहीं हो सकाI
देश का संविधान बनाने में जु्टी संविधान सभा के सामने पहली बार 11 अप्रैल 1947 को डा . भीमराव आंबेडकर ने हिंददू कोड बिल पेश कियाI लेकिन संसद के लगभग हर पुरुष सद्य जिसमें कदथित रूप से नेहरू और सरदार प्टेल भी शामिल थिे , इस बिल का विरोध किया । इस बिल के पेश होते ही सनातनी धार्मिक संगठनों से लेकर आर्य समाज के लोगों तक ने डाI आंबेडकर का विरोध करना शुरू कर दियाI
यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंददू धर्म से ददूर कर रहा थिा , जिनहें परंपरा के नाम पर कुछ धार्मिक परमपरावादी जिंदा रखना चाहते थिेI
तमाम हिंददूवादी संगठन इन कुरीतियों को बरक़रार रखने की वकालत कर रहे थिेI
इस बिल के मसौदे में महिलाओं को तलाक का अधिकार , बेद्टयों को जायदाद में दह्सा और विधवाओं को संपत्ति का पदूरा अधिकार देना शामिल थिा । इसमें बे्टी को उसके पिता की संपत्ति में अपने भाईयों के बराबर का दह्सा मिलताI साथि ही अगर यह बिल पारित हो जाता तो 1951 में ही सती प्रथिा और दहेज प्रथिा को समापत करने की दिशा में यह महतवपदूण्म कदम साबित होता । तमाम विरोध के बाद , बिल लैपस हो गया ( बिल पेश करने के बाद दनसशरत समय पर उस पर धयान नहीं दिया गया ) और बाबा साहब ने बिल पास न होने साहित अनय मुद्ों को लेकर कानदून मंत्री पद से इ्तीफा दे दिया ।
इस विधेयक में विवाह संबंधी प्रावधानों मुखय रूप से दो प्रकार के विवाहों को मानयता देता जिसमें , सां्कारिक और सिविल दोनों तरह से होने वाले विवाह शामिल थिे । इसमें हिंददू पुरूषों द्ारा एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध और अलगाव संबंधी कानदूनी प्रावधान शामिल थिेI सही अर्थों में कहा जा सकता है कि हिंददू महिलाओं को तलाक का अधिकार दिया जा रहा थिाI अगर कोई भी महिला और उसका पति किनही कारणों से एक-ददूसरे के साथि नहीं रहना चाहते तो बाबा साहब चाहते थिे कि महिला को इस परिस्थिति में कानदूनन पति से अलग होने का अधिकार प्रापत हो ।
हिन्दू कोड बिल में तलाक के लिए सात आधारों का प्रावधान दिया गया थिा , जिसके आधार पर तलाक की अजती लगाई जा सकती थिी , जिसमें परितयाग , धमाांतरण , ददूसरी औरत से अवैध समबनध , असाधय मानसिक रोग , असाधय एवं संकामक कुषठ रोग , संकामक यौन रोग एवं ककूरता जैसे आधार पर तलाक लिया जा सकता थिाI बिल के मसौदों के आकलन हेतु 9 अप्रैल 1948 को इसे सेलेक्ट कमे्टी को अग्ेदरत कर दिया गया और 1951 को बाबा साहब ने पुनः बिल को संसद में पेश कियाI बिल पेश करने के बाद संसद के अंदर और
बाहर हंगामा मच गया और लोग इसकी आलोचना करने लगे । उस समय भारत का संविधान भी बनकर तैयार थिाI लेकिन देश का संविधान नया थिा और संसद के सद्यों को जनता ने नहीं चुना थिाI बताया जाता है कि बिल पर संसद में तीन दिन तक बहस चलीI हिंददू कोड बिल का विरोध करने वालों का तर्क थिा कि संसद के सद्य जनता द्ारा चुने हुए नहीं है । इसलिए विधेयक को पास करने का इनको नैतिक अधिकार नहीं हैI
संसद में जहां कांग्ेस का हिंददूवादी धड़ा इसका विरोध कर रहा थिा , तो वहीं संसद के बाहर हरिहराननद सर्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृतव में इस बिल के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन चल रहा थिाI अखिल भारतीय राम राजय परिषद के संस्थापक करपात्री ने बिल को हिंददू धर्म में ह्तक्षेप और बिल को हिंददू रीति-रिवाजों , परंपराओं और धर्मशा्त्रों के विरुद् बतायाI उनहोंने इस बिल पर ततकालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को वाद-विवाद करने की खुली चुनौती तक दे डाली थिीI विरोध में कई संगठनों ने बिल के खिलाफ देश भर में प्रदर्शन किया ।
देश में पहला लोकसभा चुनाव 5 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 बीच हुआI इसके बाद नेहरू ने हिंददू कोड बिल को कई दह्सों में तोड़ कर इसमें कई शाखाएं बना दींI 1955 में हिंददू मैरिज एक्ट बनाया गयाI जिसके तहत तलाक को कानदूनी दर्जा , अलग-अलग जातियों के ्त्री-पुरूष को एक-ददूसरे से विवाह का अधिकार और एक बार में एक से जयादा शादी को गैरकानदूनी घोषित किया गयाI इसी कम में 1956 में हिंददू उत्तराधिकार अधिनियम , हिंददू दत्तक ग्हण और पोषण अधिनियम और हिंददू अवय्कता और संरक्षकता अधिनियम लागदू हुएI इन सभी कानदूनों को लाने का उद्ेशय महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देना थिाI इसके तहत पहली बार महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिया गया और लड़दकयों को गोद लेने पर भी जोर दिया गया I
( साभार ) fnlacj 2023 45