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बिना किसी मदूलय के प्रापत किया जा सकता है । उनके अनेक भाषण यदू-ट्यूब पर उपलबध हैं तथिा दुनियाभर में कहीं भी सुगमता से उपलबध है । अब गैर दलित भी उनका जनमदिवस पर काय्मकम करने लगे , यह अ्छी बात है , उनके अनुयायी भी यह अपेक्षा करने लगे हैं कि समाज के ददूसरे वर्ग भी डाI आंबेडकर को सममान दें । सामाजिक समरसता के लिए यह बहुत अ्छी बात है , वरना ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी कि जिस जाति में किसी महापुरुष का जनम हुआ है , उसी जाति के लोग काय्मकम करेंगे । सम्पूर्ण भारतीय हिन्दू समाज समरस बने एवं राषट्र सुदृढ़ हो , यही डॉ आंबेडकर का लक्य थिा ।
जहां तक राषट्र निर्माण का प्रश्न है तो डा . साहब ने राषट्र की नींव में सभी सामाजिक समदूहों के अधिकार को सुदनसशरत किया । उनका विशेष जोर भारतीय महिलाओं एवं पिछड़े वगमों के अधिकारों पर थिा । वह कहते थिे कि हमें राजनीतिक प्रजातंत्र के साथि-साथि आदथि्मक और सामाजिक प्रजातंत्र को मजबदूत करना होगा । उनहोंने राषट्र निर्माण के लिए सां्कृदतक विरासत को भी महतवपदूण्म बताया और सभी समदूहों को अपने भदूत के संघर्ष व वैमन्य को भुलाने की सलाह दी । उनहोंने ्वयं को भी शिक्षित व तरककी के लिए प्रेरित करने का कहा है । 1951 में कानदून मंत्री रहते हुए उनहोंने तयागपत्र दलित के सवाल पर नहीं , बसलक महिला को समपदत्त में अधिकार के मुद्े पर दिया थिा । सामाजिक नयाय की ताकतें जब अपने अधिकार की बात करती है तो वह भी शुद् राषट्रवाद है । इससे देश की एकता एवं अखंडता कहीं जयादा सुढृढ़ होती है । राषट्रवाद में सैकड़ों वर्ष पुरानी जाति वयवस्था , छुआछूत , भेदभाव और अनयायपदूण्म वयवस्था का कोई स्थान नहीं चाहिए । उनके जीवन का उद्ेशय इन सब विशिष्टों सहित एक लोकतासनत्रक गणराजय का निर्माण करना थिा । जनतंत्र और आरक्षण के कारण देश के लगभग सभी वगमों की काम या जयादा भागीदारी शासन-प्रशासन में सुदनसशरत हुई । अब देश की आजादी सभी वगमों का सरोकार है और ऐसे देश को कोई गुलाम बनाने की बात भी नहीं सोच सकता । उनहोंने भारत को सामाजिक राषट्रवाद
दिया और सभी को इस भावना से जोड़ा भी है ।
जातिवाद एवं सामप्रदायिकता , राषट्रीय एकता में बड़े बाधक है , इसी प्रकार प्रांतीयता एवं भाषायी भावना भी एक अवरोध है । आदथि्मक असमानता विशेषकर निर्धनता और राषट्रीय सं्कृदत के प्रति उदासीनता राषट्रीयता को कायम करने और देश के नागरिकों में राषट्र प्रेम जगाने , उनमे पर्पर
एकता , सामाजिक समरसता , संगठन और सन्निक्टा की भावना का विकास निरंतर बनाए रखने के लिए बहुत आवशयक है । राषट्रीय एकता एक ऐसी भावना है जो सभी लोगों में मानसिक एवं वयवहारिक स्थिति है जिसमे वह अपने विचार , विशवास व मानयताओं से जोड़ते है और राषट्र के प्रति निषठा रखते हुए राषट्र कलयाण एवं राषट्र की
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