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डा . पवन सिंह मलिक

सामाजिक समरसता के शिल्पकार डा . आंबेडकर

समाज को समरसता के सदूत्र में पिरोकर उसे संगठित और सशकत बनाने वाले महानायकों में एक हैं डा . भीमराव आंबेडकर । भारत के संविधान को बनाने , गढ़ने वाले डाI आंबेडकर यानि वह विभदूदत जो आने वाले युग की झलक भांपकर देश को उसके अनुसार बढ़ने की प्रेरणा देती रहीI ऐसे प्रखर राषट्रभकत , युगदृष्टा के 67वें परिनिर्वाण दिवस पर उनहें एवं उनके चिंतन को जिसमें भावनातमक एकता , बंधुतव और सामाजिक नयाय भरा पड़ा है , उसे ्मरण करने का समय हैI डा . भीमराव आंबेडकर ने सिर्फ भारत के संविधान की रचना में ही प्रमुख भदूदमका नहीं निभाई , बसलक उनहोंने अपनी दवद्ता की छाप समाज जीवन के हर क्षेत्र पर छोड़ी । वंचित और पिछड़े वगमों को शेष समाज में सममादनत स्थान दिलाने के लिए उनके द्ारा किया गया संघर्ष अदव्मरणीय हैI समरसता के सदूत्रधार के रूप में बाबासाहब जन-जन के पदूजय हैI

समाज में अधिकतर लोग डा . आंबेडकर को केवल भारत के सविंधान निर्माता के रूप में जानते हैं और कुछ लोग उनहें एक दलित नेता के रूप में , परनतु यह पदूरा परिचय नहीं है , यह तो अंश मात्र है । वा्तव में वह एक लोकप्रिय भारतीय विधिवेत्ता , राजनीदतज् , चिंतक , विचारक , समाज सुधारक , अथि्मशा्त्री , मानवविज्ादनक , दर्शनशा्त्री , धार्मिक , प्रतिभाशाली एवं जुझारू लेखक और राषट्रभकत थिे । उनहोंने अछूतों ( दलितों ) के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद् अभियान चलाया । श्दमकों और महिलाओं के अधिकारों का समथि्मन किया । वह ्वतंत्र भारत के प्रथिम कानदून मंत्री ,
भारतीय संविधान के प्रमुख वा्तुकार एवं भारत गणराजय के निर्माताओं में से एक थिे । डा . आंबेडकर आधुनिक भारत के मनु कहे जा सकते हैं और आधुनिक भारत की स्थापना में उनका महतवपदूण्म योगदान थिा । डा . आंबेडकर को ‘ समानता का प्रतीक ’ कहा जाता है । उदार , उदात्त , धार्मिक एवं सामाजिक हिन्दू वयवस्था में अ्पृशयता , बाल-विवाह , विधवाओं पर लादे गए अमानवीय नियम , महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखना आदि दुष्ट प्रथिाएं कैसे प्रवेश कर गई , यह एक न बदूझने वाली पहेली है ।
मुस्लम शासन और ब्रिटिश शासन के समय में अनेक कुरुतियां समाज में आई , लेकिन मधययुग में उदित भसकत मार्ग के प्रसार से चारों
तरफ से घिरे हिन्दू समाज को बड़ी सांतवना मिली , राजनीतिक ्वाधीनता खोने के बाद भी धार्मिक ्वतंत्रता बनी रही । हिन्दू समाज के सभी वर्ग उसका एक दह्सा है , जैसे सब अंग शरीर का दह्सा होते हैं , यदि एक भाग को चो्ट लगती है तो पदूरा शरीर दुखी होता है । डाI आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर इस भदूमंडलीकरण एवं सदूरना कांदत के युग में विशव विभदूदत एवं गलोबल दसद्ट्न के रूप में विशव के विभिन्न देशों में मनाई जाती है । इस सदूरना कांदत के युग में दलित और बहुजन समाज अनेक वेबसाइ्ट , मैगज़ीन आदि से डा . आंबेडकर के वयसकततव एवं कृतितव पर बहस चलाने लगे । डॉ साहब के वाङ्मय को दडदज्टल रूप में अब
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