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अछूतों के नाम में बदलाव करने वाला एक विधेयक प्र्तुत किया । डा आंबेडकर ने इसकी आलोचना की । उनका दृष्टिकोण थिा कि नाम बदलने से सम्या का समाधान नहीं हो सकता है । 1942 में वह भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में एक श्म सद्य के रूप में नियुकत हुए । 1946 में उनहें बंगाल से संविधान सभा के लिए चुना गया । उसी समय उनहोंने अपनी पु्तक प्रकाशित की , “ शदूद्र कौन थिे ” ?
आजादी के बाद , 1947 में , उनहें देश के प्रथिम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में कानदून एवं नयाय मंत्री के रूप में नियुकत किया गया । लेकिन 1951 में उनहोंने कशमीर मुद्े , भारत की विदेश नीति और हिंददू कोड बिल के प्रति प्रधानमंत्री नेहरू की नीति
पर अपना मतभेद प्रक्ट करते हुए मंत्री पद से इ्तीफा दे दिया । 1952 में कोलंबिया विशवदवद्ालय ने भारत के संविधान का मसौदे तैयार करने में उनके योगदान को मानयता प्रदान करने के लिए उनहें एलएलडी की डिग्ी प्रदान की । 1955 में उनहोंने " भाषाई राजयों पर विचार " नामक अपनी पु्तक प्रकाशित की ।
डा . आंबेडकर को उ्मादनया विशवदवद्ालय ने 12 जनवरी 1953 को डॉक्टरे्ट की उपाधि से सममादनत किया । आखिरकार 21 वरमों के बाद उनहोंने सच साबित कर दिया , जो उनहोंने 1935 में येओला में कहा थिा कि " मैं हिंददू के रूप में नहीं मरूंगा "। 14 अक्टूबर 1956 को उनहोंने नागपुर में एक ऐतिहासिक समारोह में बौद् धर्म अपना लिया और 06 दिसंबर 1956
को उनकी मृतयु हो गई ।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को 1954 में नेपाल के काठमांडू में “ जगतिक बौद् धर्म परिषद ” में बौद् भिक्षुओं द्ारा “ बोधिसतव ” की उपाधि से सममादनत किया गया । महतवपदूण्म बात यह है कि डा . आंबेडकर को जीवित रहते हुए ही बोधिसतव की उपाधि से नवाजा गया थिा । उनहोंने भारत के ्वतंत्रता संग्ाम में और ्वतंत्रता के बाद इसके सुधारों में भी अपना योगदान दिया । इसके अलावा बाबासाहब ने भारतीय रिजर्व बैंक के गठन में महतवपदूण्म भदूदमका निभाई थिी । केंद्रीय बैंक का गठन हिल्टन यंग कमीशन को बाबासाहब द्ारा प्र्तुत की गई अवधारणा के आधार पर किया गया थिा ।
डा . आंबेडकर का प्रकाशवान जीवन दर्शाता है कि वह विद्ान और कर्मशील वयसकत थिे । सबसे पहले उनहोंने अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने में अथि्मशास्त्र राजनीति , कानदून , दर्शन और समाजशा्त्र का अ्छा ज्ान प्रापत किया , जहां पर उनहें कई सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा । लेकिन उनहोंने अपना सारा जीवन पढ़ने और ज्ान प्रापत करने और पु्तकालयों में नहीं बिताया । उनहोंने आकर्षक वेतन के साथि उच्च पदों को लेने से इनकार कर दिया कयोंकि वह दलित वर्ग के अपने भाइयों को कभी नहीं भदूले । उनहोंने अपना जीवन समानता , भाईचारे और मानवता के लिए समर्पित किया । उनहोंने दलित वगमों के उत्थान के लिए पुरजोर कोशिश की ।
डा . भीमराव के जीवन के इतिहास से गुजरने के बाद , उनके मुखय योगदान और उनकी प्रासंगिकता का अधययन और विशलेरण करना बहुत आवशयक और उचित है । एक विचार के अनुसार तीन बिंदु हैं जो आज भी बहुत महतवपदूण्म हैं । आज भी भारतीय अथि्मवयवस्था और भारतीय समाज कई आदथि्मक और सामाजिक सम्याओं का सामना कर रहा है । डा . आंबेडकर के विचार और कार्य इन सम्याओं का समाधान करने में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं । हर वर्ष डा . आंबेडकर की पुण्यतिथि को पदूरे देश में ‘ महापरिनिर्वाण दिवस ’ के रूप में मनाया जाता है । �
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