अपने स्कूली दिनों में ही उनहें इस बात से गहरा सदमा लगा कि भारत में अछूत होना कया होता हैं । डा . आंबेडकर अपनी स्कूली शिक्षा सतारा में ही कर रहे थिे । दुर्भागयवश , डा . आंबेडकर की मां की मौत हो गई । उनकी चाची ने उनकी देखभाल की । बाद में , वह मुंबई चले गए । अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान , वह अ्पृशयता के अभिशाप से पीदड़त हुए । 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास होने के बाद उनकी शादी एक बाजार के खुले छपपड़ के नीचे हुई ।
डा . आंबेडकर ने अपनी स्ातक की पढ़ाई एल्फं््टन कॉलेज , बॉम्बे से की , जिसके लिए उनहें बड़ौदा के महामहिम सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्रापत हुई थिी । स्ातक पदूरी करने के बाद अनुबंध के अनुसार उनहें बड़ौदा संस्थान में शामिल होना पड़ा । जब वह बड़ौदा में थिे तब उनके पिता की मौत हो गई , वर्ष 1913 में डा . आंबेडकर को उच्च अधययन के लिए अमेरिका
जाने वाले एक विद्ान के रूप में चुना गया । यह उनके शैक्षिक जीवन का एक महतवपदूण्म मोड़ साबित हुआ ।
उनहोंने कोलंबिया विशवदवद्ालय से 1915 और 1916 में कमशः एमए और पीएचडी की डिग्ी प्रापत की । इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए लंदन गए । वह ग्े् इन में वकालत के लिए भतती हुए और उनहें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिकस एंड पॉदलद्टकल साइंस में डीएससी की तैयारी करने की भी अनुमति प्रापत हुई , लेकिन उनहें बड़ौदा के दीवान ने भारत वापस बुला लिया । बाद में उनहोंने बार-ए्ट-लॉ और डीएससी की डिग्ी भी प्रापत की । उनहोंने जर्मनी के बॉन विशवदवद्ालय में कुछ समय तक अधययन किया ।
उनहोंने 1916 में ' भारत में जातियां-उनका तंत्र , उतपदत्त और विकास ' पर एक निबंध पढ़ा । 1916 में , उनहोंने ' भारत के लिए राषट्रीय लाभांश- एक ऐतिहासिक और विशलेरणातमक अधययन ' पर अपना शोधपत्र लिखा और अपनी पीएचडी की डिग्ी प्रापत की । इसे आठ वरमों के बाद " ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास " शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया गया । इस उच्चतम डिग्ी को प्रापत करने के बाद , बाबासाहेब भारत वापस लौ्ट आए और उनहें बड़ौदा के महाराजा ने अपना सैनय सचिव नियुकत किया जिससे उनहें लंबे समय में वित्त मंत्री के रूप में तैयार किया जा सके ।
बाबासाहब सितंबर 1917 में शहर वापस लौ्ट आए कयोंकि उनका छात्रवृत्ति कार्यकाल समापत हो गया और वह सेवा में शामिल हो गए । लेकिन नवंबर 1917 तक शहर में कुछ दिनों तक रहने के बाद , वह मुंबई के लिए रवाना हो गए । अ्पृशयता के कारण उनके साथि हो रहे दुवय्मवहार के कारण वह सेवा छोड़ने के लिए मजबदूर हो गए । डा . आंबेडकर मुंबई लौ्ट आए और राजनीतिक अथि्मवयवस्था के प्रोफेसर के रूप में सिडेनहैम कॉलेज में पढ़ाने लगे । जैसा कि वह अ्छी तरह पढ़ाते थिे , वह छात्रों में बहुत लोकप्रिय हो गए । लेकिन उनहोंने लंदन में अपनी कानदून और अथि्मशा्त्र की पढ़ाई फिर
से शुरू करने के लिए अपने पद से इ्तीफा दे दिया । कोलहापुर के महाराजा ने उनहें वित्तीय सहायता प्रदान की । 1921 में उनहोंने अपनी थिीसिस लिखी , “ ब्रिटिश भारत में इंपीरियल फाइनेंस का प्रांतीय विकेंद्रीकरण ” और लंदन विशवदवद्ालय से अपनी एमएससी की डिग्ी प्रापत की । फिर उनहोंने जर्मनी के बॉन विशवदवद्ालय में कुछ समय गुजारा । 1923 में उनहोंने डीएससी डिग्ी के लिए अपनी थिीसिस पदूरी की- " रुपये की सम्या : इसका उद्भव और समाधान '। उनहें 1923 में वकीलों के बार में बुलाया गया ।
1924 में इंगलैंड से वापस लौ्टने के बाद , उनहोंने दलित लोगों के कलयाण के लिए एक एसोसिएशन की शुरुआत की , जिसमें सर चिमनलाल सीतलवाड़ अधयक्ष और डा . आंबेडकर चेयरमैन थिे । एसोसिएशन का ततकाल उद्ेशय शिक्षा का प्रसार करना , आदथि्मक स्थितियों में सुधार करना और दलित वगमों की शिकायतों का प्रतिनिधितव करना थिा ।
उनहोंने नए सुधार को धयान में रखते हुए दलित वगमों की सम्याओं को संबोधित करने के लिए 03 अप्रैल 1927 को ‘ बदह्कृत भारत ’ समाचारपत्र की शुरुआत की । 1928 में वह गवर्नमें्ट लॉ कॉलेज , बॉमबे में प्रोफेसर बने और 01 जदून 1935 को वह उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बने और 1938 में अपना इ्तीफा देने तक उसी पद पर बने रहे । 13 अक्टूबर 1935 क , दलित वगमों का एक प्रांतीय सममेलन नासिक जिले में येवला में आयोजित किया गया । इस सममेलन में उनकी घोषणा से हिंदुओं को गहरा सदमा लगा । उनहोंने कहा , “ मैं हिंददू धर्म में पैदा हुआ लेकिन मैं एक हिंददू के रूप में नहीं मरूंगा ”। उनके हजारों अनुयायियों ने उनके फैसले का समथि्मन किया । 1936 में उनहोंने बॉमबे प्रेसीडेंसी महार सममेलन को संबोधित किया और हिंददू धर्म का तयाग करने की वकालत की ।
15 अग्त 1936 को , उनहोंने दलित वगमों के हितों की रक्षा करने के लिए “ ्वतंत्र लेबर पार्टी ” का गठन किया , जिसमें जयादातर श्दमक वर्ग के लोग शामिल थिे । 1938 में कांग्ेस ने
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