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सामाजिक समरसता का प्रतीक है मययादा पुरुषोत्म भगवान श्रीराम का जीवन

विकास आनंद

जीने की उच्चतम मर्यादा का पथि प्रदर्शक भगवान श्ीराम के जीवन

जीवन पर यदि दृष्टिपात करें तो दनसशरत ही हमें जीवन के कई आयाम दिखाई देंगे , परनतु इन सबमें सामाजिक , पारिवारिक , आंतरिक और वाह्य सभी प्रकार के समरसता का आदर्श उदाहरण कहीं और दिखाई नहीं देता । अयोधया के जनप्रिय राजा राम ने अपने जीवन में तयाग , अनुशासन और विनम्रता का जो आदर्श चरित्र प्र्तुत किया है , वह इस उत्तर आधुनिक काल में भी हमारे लिए एक पथि-प्रदर्शक के रूप में सहज ही भदूदमका निभाता है ।
वनगमन के बाद एक वनवासी के रूप में राम का जीवन मानो सामंज्यता और समरसता का ही पर्याय बनकर हमारे लिए अनुकरणीय हो गया है । श्ीराम के वनगमन के दौरान हम देखते हैं कि वह पग-पग पर समाज के हासिए पर खड़े वयसकत को गले लगाते हैं । केव्ट अथिा्मत निषादराज के बारे में सभी ने सुना ही है कि कैसे भगवान राम ने समय और समाज के निषेधों को किनारे कर उनको गले लगाकर समाज को मनुषयमात्र के एक होने का संदेश दिया अथिा्मत प्रतयेक मनुषय के भीतर एक ही परमततव या चैतनय का वास है । इसलिए मानव-मानव में भेद की बात ही नहीं हो सकती । वाह्य ्वरूप या रहन-सहन के ्तर पर भले ही भेद दृष्टिगोचर हो लेकिन आतमा के तल पर सभी एक हैं । यहां
जाति का कोई भेद नहीं थिा । वर्तमान समय एवं समाज में जिस केव्ट समाज को वंचित समुदाय की श्ेणी में रखा जाता है वह समाज भगवान राम का अतिप्रिय मित्र का समाज है ।
मित्रता बराबरी का ही प्रतीक है । निषादराज को गले लगाकर राम ने यही समझाने की कोशिश की है । इससे बड़ा सामाजिक समरसता का और कया उदाहरण हो सकता है । आज निहित स्वार्थ से वशीभदूत हो जाति-वर्ण के आधार पर जो भेद और विभाजन की जो में रेखा खींची
जा रही है उस रेखा को दम्टाने के लिए हमे एकबार पुनः श्ीराम के जीवन और चरित्र का अवगाहन करना होगा । आज हम ्पष्ट तौर पर अनुभव कर रहे हैं कि कुछ बाहरी शसकतयां हमारे ही घर के कुछ भ्टके हुए लोगों की सहायता से हमारे समाज और राषट्र को तोड़ने का प्रयास कर रही है । वह शसकतयां हमारे नागरिकों के बीच जाति और धर्म के वाह्य ्वरूप के अंतर को बड़े ही चालाकी से दिखाकर हमारे नागरिकों के बीच पर्पर भेददृष्टि आरोपित कर वैमन्यता
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