का प्रसार कर देश को तोड़ने का प्रयास कर रही है ।
ऐसे में अखिल भारत में श्ीराम के समरस चरित्र को प्रग्ट करना उसका प्रसार करना अपरिहार्य हो जाता है । श्ीराम की जनम्थिली पर निर्माणाधीन समरसता का प्रतीक श्ीराम मंदिर और श्ीराम के उज्वल और आदर्श चरित्र की निंदा कर विरोध करने वालो को यह बताना होगा कि जंगलवासी , अनतयज सबरी का जदूठा बैर खाने वाले प्रभुराम के ही हम सभी भारतीय सनतान हैं । इसलिए हममें पर्पर किसी भी तरह का विरोध और भेद नहीं ।
यह भी सर्वविदित है कि राम का अधिकांश जीवन हासिए पर खड़े लोगों के साथि ही वयतीत हुआ है । चाहे केव्ट से मित्रता की बात हो या जंगल के आदिवासियों के साथि मिलकर अशुभता और अतयारार के प्रतीक रावण के कुलसहित नाश करने की बात हो या शुभता और कलयाण के प्रतीक वनवासी , साधु-संत , तपस्वयों को आततायियों के त्राण से निजात दिलाने की बात हो । भगवान राम ने सभी को अपना अंग , अपना प्रिय माना । हमारे समाज में कुछ लोग जिनहें हेय दृष्टि से देखते हैं , उन देखने वालों को यह नहीं भदूलना चाहिए कि इनहीं अंतयजय लोगो को भगवान राम अपना बंधु , सखा और मित्र मानते रहे हैं । श्ीराम का चरित्र इस बात का प्रमाण है कि भारतीय समाज कभी जाति और रंग के आधार पर बं्टा नहीं थिा । सम्पूर्ण समाज ही भाईचारे और बंधुतव के प्रेम के ताने-बाने से बुना हुआ थिा अन्यथा राम हनुमान , सुग्ीव , अंगद , नल-लील , जामवंत सरीखे वनवासियों के साथि एक या एकरस कभी नहीं होते ।
श्ीराम पग-पग पर अपने कृतयों से एकता और समरसता तथिा अभेदता का संदेश दे रहे हैं । शबरी के जदूठे बैर का राम के द्ारा खाया जाना राम के अभेद दृष्टि और समरसता के महाभाव का सबसे अद्भुत और श्ेषठ उदाहरण है । भगवान राम ने अपने वनवास काल में समाज के प्रतयेक दह्से को जोड़कर एक सदूत्र में पिरोने का जैसा काम किया है वह विशव इतिहास में दुर्लभ है । अपनी समरसता और अभेदता की
दृष्टि से उतपन्न शसकत से ही श्ीराम ने आसुरी प्रवृत्ति और भेद दृष्टि वाली बुरी शसकतयों पर प्रहार कर समाज को निर्भयता और अभयता के साथि जीने का मार्ग प्रश्त किया । समाज की विभिन्न धाराएं मिलकर जब एक बड़ी लहर या सोता के रूप में प्रवाहित होती है तो बड़ी से बड़ी अशुभ और विधवंशकारी शसकतयों को परा्त कर देती है ।
भारत की समृद् परंपरा और सं्कृदत में भगवान श्ीराम निशरय ही सामाजिक समरसता के सबसे बड़े प्रतीक हैं । एक ओर निषादराज को बार-बार गले लगाया , शबरी के जदूठे बेर खाएं , चित्रककू्ट में कोल-भील को अपने परिवार के सद्यों की तरह समझ और दगद्राज ज्टायदू का अंतिम सं्कार ्वयं अपने हाथिों से किया , वहीं ददूसरी ओऱ माता अपराधबोध के भार तले दबी माता कैकयी को अपनी माता कौशलया से जयादा प्रेम और मान देकर उनहें अपराधबोध से मुकत किया । भाइयों में पर्पर समभाव का उदाहरण प्र्तुत किया । पर्पर विरुद् सिद्ानत और मत वाले ऋषियों के बीच मतैकय के सदूत्रधार बने श्ीराम ।
श्ीराम सामाजिक एवं धार्मिक चेतना-जागृति का आधार-्तमभ हैं कयोंकि यह पदूरा विशव ही सियाराम का ्वरूप है , श्ीराम विशव-चेतना परमब्ह्म हैं और यह विशव उनके अलावा कुछ भी नहीं है :
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि ।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि ।।
लोकनायक वही हो सकता है जो समनवय कर सके , कयोंकि विशव में अनेक प्रकार की पर्पर विरोधी सं्कृदतयां , आचार-निषठा और विचार-पद्दतयां आदि प्रचलित हैं । ऐसे में श्ीराम से बढ़कर समनवय करने वाला और समनवय कराने वाला दवसशवदतहास में कोई नहीं दिखता । यही कारण है कि श्ीराम का यह देश भारत सदैव से ही विभिन्न सं्कृदतयों और पर्पर- विरोधी सभयताओं में भी समनवय का प्रयास करता रहा है ।
श्ीराम के समनवयातमक जीवनदर्शन की प्रेणा ही है कि भारत सदैव से महाशसकतयों के साथि त्ट्थि रहते हुए समनवय की कोशिश करता रहा है । वर्तमानकाल में इजराइल- दफदल्तीन संक्ट हो या रूस-यदूकेन का युद् भारत अपने परमपुरुष श्ीराम के मार्ग का अनुसरण कर रहा है और परिणामतः दुनिया के राषट्रों से अलग पथि ्वीकारते हुए त्ट्थिता की नीति का अनुसरण कर रहा है । जबकि आज विशव के किसी भी देश को त्ट्थि रह पाना असंभव नहीं तो कठिन अवशय है ।
आज दुनिया के देश इजराइल-दफदल्तीन , रूस-यदूकेन दो खेमों में बं्ट चुकी है और तीसरे विशवयुद् के संक्ट के बादल मंडरा रहे हैं । ऐसे में श्ीराम और याद आएंगे । शसकत प्रापत करना ही श्ेषठ नहीं , बसलक श्ीराम की तरह शसकत को संयत होकर संभाल रखना ही श्ेय्कर है । श्ीराम अननत शसकतशील होते हुए भी मार्ग के लिए समुद्र से प्राथि्मना करते हैं और जब समुद्र उनकी विनती को अनसुना करता है , तब विवश होकर अंतिम उपाय के रूप में शसकत के प्रयोग को राजी होते हैं :
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन
बीति । बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति ॥ यही नीति भारत की भी रही है । अधिकतम सहनशीलता परनतु सहनशीलता को जब भीरुता समझने की भदूल कोई करता है तो बालाको्ट एयर ्ट्राइक और सर्जिकल ्ट्राइक को भारत मज़बदूर होता है । श्ीराम का यह देश और इस देश की वर्तमान सरकार श्ीराम के पदचिनहों का ही अनुसरण कर रही है ।
इसीलिए हमारी सरकार की विदेशनीति का प्रस्थान बिंददू ही ' समरस विशव समाज की स्थापना ' है । आने वाले समय में श्ीराम और उनका जीवनचरित्र न केवल भारतीय समाज को एक सदूत्र में पिरोने में सहायक होंगे बसलक राषट्रों के बीच पर्पर जो वैमन्यता और भेद की चौड़ी होती खाई है उसे भी पा्टने में निशरय ही अपनी भदूदमका निभाएंगे ।
( साभार ) fnlacj 2023 35