नहीं है , यह श्तमकों का भी विभाजन है । दलितों को भी मजदूर वर्ग के रूप में एकतत्त होना चाहिए । मगर यह एकता मजदूरों के बीच जाति की खाई को मिटा कर ही हो सकती है । आंबरेडकर की यह सोच बरेहद क्ांतिकारी है , कयोंकि यह भारतीय समाज की सामाजिक संरचना की सही और वासततवक समझ की ओर लरे जानरे वाली कोशिश है ।
आंबरेडकर भारतीय दलितों का राजनीतिक सशकतीकरण चाहतरे िरे । उसी का नतीजा है कि आज लोकसभा की 79 सीटें अनुसूचित जातियों
के लिए और 41 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरतक्त की गई है । सरकार नरे संविधान संशोधन कर यह राजनीतिक आरक्ण 2026 तक कर दिया है । शुरू में आरक्ण केवल 10 वर्ष के लिए था । यह राजनीतिक आरक्ण इन समूहों का कितना सशकतीकरण कर पाया हैं , यह आज के समय का एक बड़ा सवाल है । अपना जनसमर्थन खो दरेनरे के डर सरे कोई भी राजनीतिक दल इस पर चर्चा नहीं करना चाहता ।
दरेखा जाए , तो दल-बदल कानून के रहतरे यह संभव ही नहीं है कि कोई दलित-आदिवासी
विधायक या संसद अपनी मजटी सरे वोट कर सके । हमनरे दरेखा है कि कुछ साल पहलरे लोकसभा में दलित-आदिवासी सांसदों नरे एक फोरम बनाया था , इन वगवो के अधिकारों के लिए , पाटटी लाइन सरे ऊपर उठकर । दल-बदल कानून के कारण वह बरेअसर रहा है । आंबरेडकर दूरदशटी नरेता िरे उनहें अहसास था कि इन समूहों को बराबरी का दर्जा पानरे के लिए बहुत समय लगरेगा , वरे यह भी जानतरे िरे कि सिर्फ आरक्ण सरे सामाजिक नयाय सुतनतश्त नहीं किया जा सकता । हमनरे दरेखा है कि पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिह , बाबू जगजीवन राम , मायावती जी , आदि दलित-पिछड़े नरेताओं पर किस तरह के जुमलरे और फिकररे गढ़े जातरे रहरे हैं ।
आंबरेडकर का पूरा जोर दलित-वंचित वगषों में शिक्ा के प्रसार और राजनीतिक चरेतना पर रहा है । आरक्ण उनके लिए एक सीमाबद् तरकीब थी । दुर्भागय सरे आज उनके अनुयायी इन बातों को भुला चुके है । बड़ा सवाल यह है कि सवतंत्ता के 67 सालों में भी अगर भारतीय समाज इन दलित-आदिवासी समूहों को आतमसात नहीं कर पाया है , तो जरूरत है पूररे संवैधानिक प्रावधानों पर नई सोच के साथ दरेखनरे की , तांकि इन वगषों को सामाजिक बराबरी के सतर पर खड़ा किया जा सके । आंबरेडकर का मत था कि राष्ट्र वयषकतयों सरे होता है , वयषकत के सुख और समृद्धि सरे राष्ट्र सुखी और समृद्ध बनता है । डॉ . आंबरेडकर के विचार सरे राष्ट्र एक भाव है , एक चरेतना है , जिसका सबसरे छोटा घटक वयषकत है और वयषकत को सुसंस्कृत तथा राष्ट्रीय जीवन सरे जुड़ा होना चाहिए । राष्ट्र को सववोपरि मानतरे हुए आंबरेडकर वयषकत को प्रगति का केद्र बनाना चाहतरे िरे । वह वयषकत को साधय और राजय को साधन मानतरे िरे ।
डॉ . आंबरेडकर नरे इस दरेश की सामाजिक- सांस्कृतिक वसतुगत षसिति का सही और साफ आंकलन किया है । उनहोंनरे कहा कि भारत में किसी भी आर्थिक-राजनीतिक क्ांति सरे पहलरे एक सामाजिक-सांस्कृतिक क्ांति की दरकार है । पंडित दीनदयाल उपाधयाय नरे भी अपनी विचारधारा में ‘ अंतयोदय ’ की बात कही है ।
fnlacj 2022 49