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आज आंबेडकर इस देश की संघर्षशील और परिवर्तनकारी समूहों के हर महत्वपूर्ण सवाल पर प्रासंगिक हो रहे हैं , इसी कारण वह विकास के लिए संघर्ष के प्रेरणा स्ोत भी बन गए है । मेरा मानना है कि हिंदुत्व के सहारे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू किया जा सकता है । जिसमें हिंदू अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर स्वयं को विराट्-अखंड हिंदुस्ानी समाज के रूप में संगठित कर भारत को एक महान राष्ट्र बना सकते हैं ।
अंतयोदय यानि समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो बैठा हुआ है , सबसरे पहलरे उसका उदय होना चाहिए । राष्ट्र को सशकत और सवावलंबी बनानरे के लिए समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो लोग है उनका सोशियो इकोनॉमिक डेवलपमेंट करना होगा । किसी भी राष्ट्र का विकास तभी अर्थपूर्ण हो सकता है जब भौतिक प्रगति के साथ साथ
आधयाषतमक मूलयों का भी संगम हो । जहां तक भारत की विशरेषता , भारत का कलचर , भारत की संस्कृति का सवाल है तो यह विशव की बरेहतर संस्कृति है । भारतीय संस्कृति को समृद् और श्रेष्ठ बनानरे में सबसरे बड़ा योगदान दलित समाज के लोगों का है । इस दरेश में आदि कवि कहलानरे का सममान केवल महर्षि वाषलमकी को
है , शासत्ों के ज्ञाता का सममान वरेदवयास को है । भारतीय संविधान के निर्माण का श्रेय आंबरेडकर को जाता है ।
वर्तमान में कुछ दरेशी-विदरेशी शषकतयां हमारी इन सामाजिक-संस्कृतिक धरोहरों को हिंदृतव सरे अलग करनरे की योजनाएं बना रही है । माकस्त की पू ंजीवादी वयवसिा में जहां मुठ्ी भर धनपति शोषक की भूमिका में उभरता है वहीं जाति और नसलभरेद वयवसिा में एक पूरा का पूरा समाज शोषक तो दूसरा शोषित के रुप में नजर आता है । जिसका समाधान आंबरेडकर सशकत हिंदू समाज में बतातरे है कयोंकि वह जानतरे िरे कि हिंदू धर्म न तो इसरे माननरे वालों के लिए अफीम है और न ही यह किसी को अपनी जकड़न में लरेता है । वसतुतः यह मानव को पूर्ण सवतंत्ता दरेनरे वाला है । यह चिरसिायी रुप सरे विकास , संपन्नता तथा वयषकत व समाज को संपूर्णता प्रदान करनरे का एक साधन है । डॉ . आंबरेडकर के पास भारतीय समाज का आंखों दरेखा अनुभव था , तीन हजार वषषों की पीड़ा भी थी । इसलिए आंबरेडकर सही अिषों में भारतीय समाज की उन गहरी वसतुतनष्ठ सच्चाइयों को समझ पातरे हैं , जिनहें कोई माकस्तवादी नहीं समझ सकता ।
आंबरेडकर का सपना था कि एक जातिविहीन , वर्गविहीन , सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , लैंगिक और सांस्कृतिक विषमताओं सरे मुकत समाज । ऐसा समाज बनानरे के लिए हिंदू समाज का सशकतीकरण सबसरे पहली प्राथमिकता होगी । यही आंबरेडकर की सोच और संघर्ष का सार है । आज आंबरेडकर इस दरेश की संघर्षशील और परिवर्तनकारी समूहों के हर महतवपूर्ण सवाल पर प्रासंगिक हो रहरे हैं , इसी कारण वह विकास के लिए संघर्ष के प्ररेरणा स्ोत भी बन गए है । मरेरा मानना है कि हिंदुतव के सहाररे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू किया जा सकता है । जिसमें हिंदू अपनरे संकीर्ण मतभरेदों सरे ऊपर उठकर सवयं को विराट्-अखंड हिंदुसतानी समाज के रूप में संगठित कर भारत को एक महान राष्ट्र बना सकतरे हैं । �
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