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मत था कि धमायंतरण सरे राष्ट्र को नुकसान उठाना पड़ता है । विदरेशी धमषों को अपनानरे सरे वयषकत अपनरे दरेश की परंपरा सरे टूटता है ।
वर्तमान समय में दरेश ओर दुनियां में ऐसी धारणा बनाई जा रही है कि आंबरेडकर केवल दलितों के नरेता िरे । उनहोंनरे केवल दलित उतिान के लिए कार्य किया यह सही नहीं होगा । मुझरे यह कहनरे में कोई संकोच नहीं कि उनहोंनरे भारत की आतमा हिंदूतव के लिए कार्य किया । जब हिंदूओं के लिए एक विधि संहिता बनानरे का प्रंसग आया तो सबसरे बड़ा सवाल हिंदू को पारिभाषित करनरे का था । डॉ . आंबरेडकर नरे अपनी दूरदृष्टि सरे इसरे ऐसरे पारिभाषित किया कि मुसलमान , ईसाई , यहूदी और पारसी को छोड़कर इस दरेश के सब नागरिक हिंदू हैं , अर्थात विदरेशी उदगम के धमषों को माननरे वालरे अहिंदू हैं , बाकी सब हिंदू है । उनहोंनरे इस परिभाषा सरे दरेश की आधारभूत एकता का अद्भूत उदाहरण परेश किया है ।
अम्बेकडर का सपना भारत को महान , सशकत और सवावलंबी बनानरे का था । डॉ . आंबरेडकर की दृष्टि में प्रजातंत् वयवसिा सववोतम वयवसिा है , जिसमें एक मानव एक मूलय का विचार है । सामाजिक वयवसिा में हर वयषकत का अपना अपना योगदान है , पर राजनीतिक दृष्टि सरे यह योगदान तभी संभव है जब समाज और विचार दोनों प्रजातांतत्क हों । आर्थिक कलयाण के लिए आर्थिक दृष्टि सरे भी प्रजातंत् जरुरी है । आज लोकतांतत्क और आधुनिक दिखाई दरेनरे वाला दरेश , आंबरेडकर के संविधान सभा में कियरे गए सत् वैचारिक संघर्ष और उनके वयापक दृष्टिकोण का नतीजा है , जो उनकी दरेख-ररेख में बनाए गए संविधान में तक्याषनवत हुआ है , लरेतकन फिर भी संविधान वैसा नहीं बन पाया जैसा आंबरेडकर चाहतरे िरे , इसलिए वह इस संविधान सरे खुश नहीं िरे । आखिर आंबरेडकर आजाद भारत के लिए कैसा संविधान चाहतरे िरे ?
आंबरेडकर चाहतरे िरे कि दरेश के हर बच्चरे को एक समान , अनिवार्य और मुफत शिक्ा मिलनी चाहिए , चाहरे व किसी भी जाति , धर्म या वर्ग का
कयों न हो । वरे संविधान में शिक्ा को मौलिक अधिकार बनवाना चाहतरे िरे । दरेश की आधी सरे जयादा आबादी बदहाली , गरीबी और भूखमरी की ररेखा पर अमानवीय और असांस्कृतिक जीवन जीनरे को अभिशपत है । इस आबादी की आर्थिक सुरक्ा सुतनतश्त करनरे के लिए ही आंबरेडकर नरे रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनानरे की वकालत की थी । संविधान में मौलिक अधिकार न बन पानरे के कारण 20 करोड़ सरे भी जयादा लोग बरेरोजगारी की मार झरेल रहरे है । बाबा साहब नरे दलित वगवो के लिए शिक्ा और
रोजगार में आरक्ण दिए जानरे की वकालत की थी ताकि उनहें दूसरो की तरह बराबर के मौके मिल सकें । अगर शिक्ा , रोजगार और आवास को मौलिक अधिकार बना दिया जाता तो उनहें आरक्ण की वकालत की शायद जरूरत ही न होती ।
डॉ . आंबरेडकर प्रजातांतत्क सरकारों की कमी सरे परिचित िरे , इसलिए उनहोंनरे सधारण कानून की बजाय संवैधानिक कानून को महतव दिया । मजदूर अधिकारों पर डॉ आंबरेडकर का मानना था कि वर्ण वयवसिा केवल श्म का ही विभाजन
48 fnlacj 2022