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हिंदी दलित विषयक उपन्ासों में इतिहास एवं समाजबोध
माधनुरे गंगाधर पोचिराम
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तिहास की बात चलती है , तो आम तौर पर यह समझ लिया जाता है कि वह राजा महाराजाओं के साम्ाजयों उनकी शासन पद्धतियों और जय- पराजय की गाथाओं का लरेखा-जोखा है । अभी तक ऐसरे ही इतिहास लिखरे भी गए हैं , इसलिए इतिहास के बाररे में यही गलत धारणा रुढ़ हो गई है । भारत का इतिहास इनहीं धारणाओं के कारण एक वंश का अभिलरेख मात् बनकर रह गया है ।
मैं आपको यह बताना आवशयक समझता हूँ कि इसी गलत इतिहासबोध के कारण लोगों नरे दलितों और षसत्यों को इतिहासहीन मान लिया है । जबकि भारत के इतिहास में उनकी भूमिका महतवपूर्ण है । वरे इतिहासवान है , सिर्फ जरुरत दलितों और षसत्यों द्ारा अपनरे इतिहास को खोजनरे की है । इस संदर्भ में वरिष्ठ दलित चिंतक कंवल भारती कहतरे है कि –“ डॉ . आंबरेडकर पहलरे भारतीय इतिहासकार है जिनहोंनरे इतिहास में दलितों की उपषसिति को ररेखांकित किया है ।” दलित विषयक रचनाकार इन बिंदुओं को पकड़कर अपनी रचना के द्ारा समाज के सामनरे रख रहा है । हिंदी दलित उपनयास की बात करें तो रुपनारायन सोनकर के ‘ डंक ’ उपनयास में दरेख सकतरे है और वरे कहतरे है कि –“ इतिहास बताता है कि आर्य लोगों नरे बाहर सरे आकर इस दरेश के मूलनिवासियों यानी अनायषों पर कबजा कर लिया था । अनार्य और कोई नहीं बषलक इस दरेश के दलित और पिछ़डे वर्ग के लोग िरे । आर्य नरे राजनीति , सत्ा , अर्थ , ज्ञान , विज्ञानपर अपना प्रभुतव जमा लिया था । शषकतशाली बन गए िरे । यहाँ के मूलनिवासों यानी अनायषों को विकास
करनरे का मौका नहीं दिया था । आज भी उनकी संतानरे वही संताप भोग रही है ।”
आज का दलित डॉ . बाबासाहरेब आंबरेडकर के कार्य और विचारों के कारण अपना इतिहास सवयं जान रहा है और लिख रहा है । इसी कारण दलित विषयक उपनयास में हमें इतिहास बोध होता है । दलित विषयक साहितय सामाजिक , सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधारपर विकसित हो रहा है । उसनरे अपना अलग रचना संसार निर्मित किया है , जो हमें अपनरे इतिहास संस्कृति और सभयता के विभिन्न पक्ों सरे अवगत कराती है । कयोंकि दलित वर्ग की संस्कृति एवं सभयता सबसरे पुरानी है । उसका अहसास आज के दलित उपनयासों में बराबर हो रहा है । “ द्रोणाचार्य नरे एकलवय सरे अंगुठा कया इसलिए माँगा कि धनुष्य विद्ा में वह और भी प्रवीण न हो जायरे ? कया द्रोणाचार्य गुरु होकर भी नहीं चाहतरे िरे कि एकलवय जैसा शिष्य उतनी प्रगति न करें कि उसके अपनरे शिष्य पीछे रह जायरे ।” इस उपनयास के संदर्भ सरे यह सपष्ट होता है कि दलित समाज के साथ हमरेशा षडयंत् रचा गया है ताकि वो आगरे ना आयरे । आज के युग में द्रोणाचार्य अंगुठा नहीं काटेगा बषलक अंक काटेगा , यह इतिहास बोध दलितों का है । हिंदी दलित विषयक उपनयास का इतिहास बोध उनहें अपनी संस्कृति और सभयता सरे परिचित करता है तो दूसरी ओर भारतीय संस्कृति , वैदिक संस्कृति यानी हिंदूवादी संस्कृति के मानवता विरोधी चररत् को उदघातटत करके समसत इतिहास और परंपरा को नकार दरेती है । दलितों के इतिहास में दलित महिलाओं का भी बहुत बडा योगदान रहा है इस बात को भी हर हिंदी दलित विषयक उपनयास में दरेख सकतरे है । “ काली चंडी दुर्गा का मैं रुप हूँ । दूर्गा
काली चंडी सभी दलित महिलाएँ थी । वरे सभी दरेतवयाँ नहीं बषलक कर्मयोगी महिलाएँ थी , जो भी कामुक व दुराचारी वयषकत उनके पास गया था वह तरा नहीं मरा था ।”
इस भारतीय हिंदूवादी वयवसिा में दलित महिलाओ के साथ भी अनयाय-अतयाचार करके उनके कर्मयोगी इतिहास को दबाकर अपना वर्चसव सिातपत किया है । हिंदी दलित विषयक उपनयास इन सभी प्रकार के इतिहास को समाज के सामनरे प्रसतुत कर रहा है । इस संदर्भ में हरिनारायन ठाकुर कहतरे है कि –“ दलित विषयक साहितय आंबरेडकरवादी सोच पर आधारित है , इसलिए इसकी सामाजिकता वर्तमान समाज वयवसिा को परलरे सिररे सरे खारिज करती है । उसका इतिहास बोध भी मुखयधारा के इतिहास सरे बिलकुल भिन्न है ।”
अत : सपष्ट है कि इस आशा के साथ हिंदी दलित विषयक उपनयास का मुखय सरोकार अपनी संस्कृति , परंपरा और इतिहास में अपनी पहचान तथाअपनी अषसमता की खोज करना
44 fnlacj 2022