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अपनरे साम्ाजय को विसतार दिया था । आज के श्ीलंका , मालदीव और इंडोनरेतशया तक अपनी सत्ा कायम की थी । चोल सम्ाट राजेन्द्र चोल प्रथम के पास कुशल नौसैनिकों और जहाजों का बहुत ही मजबूत बेड़ा था । उनके नौसैनिकों इतनरे कुशल िरे कि वो हवा के रुख का भी अनुमान लगा लरेतरे िरे । इसी अनुमान पर आक्मण की रणनीति बनती थी । इसी शषकत के बल पर
राजेन्द्र चोल प्रथम नरे आज के सुमात्ा तक अपनी विजय पताका फहराई थी । राजेन्द्र चोल प्रथम के पिता राजराजा नरे श्ीलंका पर आक्मण करके उसको जीत कर अपनरे साम्ाजय में मिला लिया था । इतना ही नहीं उनहोंनरे आज के मालदीव को भी अपनरे साम्ाजय का हिससा बना लिया था । आज के इंडोनरेतशया और उस समय के श्ीतवजय के राजा का 14 बंदरगाहों पर आधिपतय था । वो समुद्री रास्ते सरे होनरेवालरे कारोबार पर न केवल अपनी शततें थोपतरे िरे बषलक कारोबार को नियंतत्त भी करतरे िरे ।
राजेन्द्र चोल को श्ीतवजय के राजा संग्ाम विजयतुंगबर्मन की यरे नीतियां रास नहीं आ रही
थी । लिहाजा उनहोंनरे एक साथ उनके चौदह बंदरगाहों पर हमला कर उनपर अपना आधिपतय कायम कर लिया । उनहोंनरे राजा संग्ाम को बंदी बना लिया था । कुछ इतिहास पुसतकों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि राजेन्द्र चोल प्रथम नरे राजा संग्ाम विजयतुंगबर्मन की पुत्ी सरे विवाह भी किया था । संभव है कि राजेन्द्र चोल नरे अपनरे साम्ाजय सरे होनरेवालरे वयावसायिक हितों की रक्ा के लिए सुमात्ा पर हमला किया हो लरेतकन इससरे उनके शौर्य और पराक्म को कम नहीं किया जा सकता है । नंदिताककृष्णा नरे भी इस बात को ररेखांकित किया था कि चोल साम्ाजय के राजा भारत के पहलरे हिंदू शासक िरे जिनहोंनरे समुद्री रास्ते सरे जाकर अपनरे साम्ाजय का विसतार किया था और उसको श्ीलंका सरे लरेकर सुमात्ा तक फैलाया था ।
तंजावुर के शिलालरेख में भी राजेन्द्र चोल प्रथम के इस नौसैनिक अभियान का उल्लेख मिलता है । राजेन्द्र नरे इस आक्मण के लिए अपनरे जहाज के माधयम सरे हाथियों को भी रणभूमि में भरेजा था । हाथियों पर सवार सैनिक श्ीतवजय के बंदरगाहों पर धावा बोला था और विजय में निर्णाय़क भूमिका निभाई थी । इतिहास में उपलबध तथयों के आधार पर यरे कहा जा सकता है कि चोल राजवंश नरे बहुत लंबरे समय तक शासन किया । पूरी दुनिया में इतनरे लंबरे समय तक एक भूभाग पर एक ही राजवंश के शासन का उदाहरण कम मिलता है । कहा जाता है कि चोल राजवंश सबसरे लंबरे कालवधि तक राज करनरेवाला वंश था । चोल राजवंश के बाररे में अशोक के शिलालरेखों में भी उल्लेख मिलता है और उनको मौर्य शासकों का तमत् बताया गया है । चोल राजवंश के हिंदू राजाओं के शौर्य और पराक्म की चर्चा इतिहास की पुसतकों में कम है । इतना ही नहीं उनके कला और संस्कृति प्ररेम और इस क्रेत् में उनके योगदान को भी ररेखांकित करनरे का उपक्म नहीं किया बषलक वामपंथी इतिहासकारों नरे तो इसको प्रयासपूर्वक ओझल किया ।
इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि इतनरे बड़े तथय या इतनी बड़ी ऐतिहासिक घटना
को इतिहासकारों नरे अपनरे लरेखन के केंद्र में कयों नहीं रखा । दरअसल इसके पीछे अपनरे विचारधारा को पुष्ट करनरे की मंशा दिखाई दरेती है । वामपंथी और नरेहरूवादी इतिहासकारों नरे सवाधीनता के बाद इतिहास लरेखन की जो पद्धति अपनाई वो इतिहास लरेखन कम वैचारिक प्रोपगैंडा अधिक था । चाहरे वो प्राचीन भारत का इतिहास लिख रहरे िरे या मधयकालीन भारत का या फिर आधुनिक भारत का उनहोंनरे एजेंडा और प्रोपगैंडा को महतव दिया । सकूली पाठ्यक्म लिखनरे का जिममा इनहीं वामपंथी इतिहासकारों को मिला । वामपंथी इतिहासकारों नरे जनता की दृष्टि सरे इतिहास को दरेखनरे का प्रचार तो किया लरेतकन जन इतिहास लरेखन की पद्धति के पीछे पाटटी की विचारधारा थी । वामपंथी इतिहासकारों नरे लरेखन के समय एक और छल किया कि उनहोंनरे हिंदू धर्म सिद्धांतों की अनदरेखी की । उसकी मौलिकता को ररेखांकित करनरे की बजाए वो आक्ांताओं की संस्कृति और कला को महतव दरेनरे लगरे ।
यहां भी चोल राजवंश का उदाहरण दरेना उपयुकत रहरेगा । चोल राजवंश के समय कला और संस्कृति को खूब बढ़ावा मिला । सिापतय कला की दृष्टि सरे भी अनरेक उत्कृष्ट मंदिरों का निर्माण हुआ । मंदिरों पर जिस तरह की कलाकारी की गई वो अप्रतिम है । कहा जाता है कि नटराज की जो मूर्ति प्रचलन में है उसको चोल राजवंश के ही किसी राजा नरे बनवाया था । उसके पहलरे शिव की उस मुद्रा की मूर्ति के साक्य नहीं मिलतरे हैं । वामपंथी इतिहासकारों नरे जिस तरह सरे इतिहास लिखा उससरे समाज के विभाजित होनरे का खतरा है । आर्य-अनार्य की अवधारणा , जाति और वर्ग के आधार पर किसी कालखंड का मूलयांकन करके वामपंथी इतिहासकारों नरे विभाजन के बीज डालरे । इतिहास लरेखन में जो असंतुलन दिखाई दरेता है उसरे दूर करनरे के लिए भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद को पहल करनी चाहिए । इस समय राष्ट्रीय शिक्ा नीति के तक्यानवयन का कार्य चल रहा है । पाठ्य पुसतक तैयार करतरे समय भी इस असंतुलन को दूर किया जाना चाहिए ।
( साभार ) fnlacj 2022 43