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वामपंथी इतिहासकारों का इतिहास के साथ छल

अनंत विजय

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वनरेशवर में आयोजित ओडिशा लिटररेरी फेषसटवल के एक सत् में इतिहास पर चर्चा थी । उसमें भाग लरे रही इतिहासकार नंदिता ककृष्णा नरे इतिहास लरेखन में असंतुलन का प्रश्न उठाया । इस प्रश्न पर कम या नहीं के बराबर चर्चा हुई है । नंदिता के अनुसार भारत के इतिहासकारों नरे दतक्ण भारत के हिंदू राजाओं के शौर्य , पराक्म और सनातन संस्कृति सरे प्ररेम के बाररे में अपरेक्ाककृत कम लिखा । इतिहास की पाठ्य पुसतकों में मुगलों के शासन काल , तरिटिश औपनिवरेतशकता और सवाधीनता आंदोलन के बाररे में विसतार सरे लिखा गया लरेतकन महान भारतीय राजाओं या सम्ाटों के बाररे में संक्षेप में ।
1206 सरे लरेकर 1526 तक चला सलतनत काल सिर्फ दिलली , पंजाब , हरियाणा और उत्र प्रदरेश तक सीमित था लरेतकन उनको या फिर 1526 सरे लरेकर 1739 तक के मुगल काल को इतिहास की पुसतकों में प्रमुखता सरे सिान दिया गया । उनहोंनरे इतिहासकार ईशवरी प्रसाद सरे लरेकर आर सी मजुमदार तक की पुसतकों का उदाहरण दिया । उनका दावा था कि ईशवरी प्रसाद की पुसतक में वैदिक काल , उत्र वैदिक काल , जैन , बुद्ध , मौर्य सम्ाजय , शक , हूण , कुषाण , गुपत काल और राजपूत राजाओं के बाररे में 115 पृष्ठों में विवरण है लरेतकन दतक्ण भारत के राजाओं और शासकों के बाररे में सिर्फ सात पृष्ठों में । इसी तरह सरे मधयकालीन इसलातमक काल , जिसमें गजनी , गोरी के भारत पर आक्मण गुलाम राजवंश , खिलजी , तुगलक , सैयद , लोदी और मुगलों के बाररे में विवरण है , को 190 पृष्ठ दिए
गए हैं । जबकि उसी काल में दतक्ण भारत के बाररे में कोई विवरण इस पुसतक में नहीं है ।
सिर्फ ईशवरी प्रसाद की पुसतक ही नहीं बषलक उनहोंनरे आर सी मजुमदार और रोमिला थापर की पुसतकों का उदाहरण भी दिया । आर सी मजुमदार की पुसतक में भी उत्र भारत के इतिहास के बाररे में 171 पृष्ठ हैं जबकि सातवाहन , राष्ट्रकूट , पललव और चालुकयों के बाररे में सिर्फ नौ पृष्ठ । मधयकाल में मुषसलम आक्ांताओं के भारत आक्मण पर 146 परेज , मुगल अफगान आक्मणकारियों पर 192 परेज और विजयनगर के बाररे में 77 परेज और ओडिशा में उस काल में घट रही घटनाओं पर सिर्फ 3
परेज । इसी तरह सरे रोमिला थापर की पुसतक में उत्र भारत के इतिहास पर 195 पृष्ठ और दतक्ण भारत के इतिहास पर सिर्फ 17 परेज ।
नंदिताककृष्णा नरे इतिहास की पुसतकों के इस असंतुलन को ररेखांकित किया था । प्रश्न यरे उठता है कि इतिहास की पुसतकों के लरेखकों नरे ऐसा कयों किया । जितनी जगह बादशाहों या मुषसलम आक्ांताओं को दी गई उतना वर्णन दतक्ण भारत के हिंदू राजाओं के शासनकाल का कयों नहीं किया गया । इस संदर्भ में दतक्ण भारत के चोल साम्ाजय का तजक् आवशयक प्रतीत होता है । चोल साम्ाजय के शासक भारतवर्ष के पहलरे शासक िरे जिनहोंनरे नौसरेना का उपयोग करके
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