करना है । मतांतरण के माधयस सरे समाज की परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करनरे का भी काम किया जा रहा है ।
इसलाम और ईसाइयत के प्रसार के नाम पर भारतीयता को कमतर दिखानरे का जो काम किया जा रहा है , उससरे समाज की प्राचीन आसिाएं तो भंग होती ही हैं , राष्ट्रीयता की भावना पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है । हम सभी जानतरे हैं कि जहां आसिाएं भंग होती हैं , वहां विजातीय सोच को फैलनरे का अवसर मिलता है । जीनरे के लिए मनुष्य को केवल रोटी की आवशयकता नहीं होती , बषलक धार्मिक आसिा और निष्ठा की भी आवशयकता होती है ।
भारत में हिंदू आसिा और विशवास की जड़ें कहीं गहरी रही हैं । हमारी आसिा का उनमूलन करनरे वाला कोई भी ककृतय राष्ट्र जीवन को दुष्प्रभावित करता है । कनाडा में तो ईसाई मिशनरियों नरे वहां के मूल निवासियों , जिनहें “ ररेड इंडियंस ” या “ नरेतटव ” कहतरे हैं , के पूररे अषसततव को ही लगभग समापत कर दिया । भारत के मूल सवभाव और उसकी प्रककृति बदलनरे के इरादरे सरे जो मतांतरण हो रहा है , वह राष्ट्र जीवन के लिए दीमक की तरह है । इसके प्रति सरकारों को भी सजग होना होगा और समाज को भी ।
( साभार )
कानयून की खामियां
और मतांतरण
अश्वनी उपाधयाय
धर्म पालन एवं धार्मिक प्रचार की सवतंत्ता को लरेकर संवैधानिक प्रविधानों की आड़ में ही मतांतरण के अभियान भी चलतरे हैं । षसिति यह हो गई है कि कहीं काला जादू दिखाकर , तो कहीं किसी लाभ का लालच दरेकर और कहीं डरा- धमकाकर जबरन मतांतरण का अभियान चल रहा है । संविधान प्रलोभन दरेकर मतांतरण की अनुमति नहीं दरेता है । इसके बावजूद मतांतरण को गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है । कुछ राजयों नरे मतांतरण के विरुद्ध कानून बनाए हैं और वहां इस पर कुछ रोक भी लगी है , लरेतकन केंद्रीय सतर पर कानून नहीं होनरे सरे ठोस समाधान नहीं निकल सका है ।
संविधान रीतियों का अधिकार दरेता है , कुरीतियों का नहीं । संविधान में प्रथा के पालन का अधिकार है , कुप्रथा का नहीं । मतांतरण को लरेकर भी दरेश के सतर पर सपष्ट रूप सरे कानून होना चाहिए । जब संविधान नरे कानून के समक् सबको समान माननरे का सिद्धांत दिया है , तो फिर इस संबंध में राजयवार कानूनों का कया औचितय रह जाता है । राजयवार कानूनों का दुष्प्रभाव यह है कि उत्र प्रदरेश में मतांतरण रोधी कानून है , इसलिए गाजियाबाद और नोएडा में जबरन मतांतरण अपराध है , लरेतकन दिलली में यह अपराध नहीं है । इसका अर्थ हुआ कि यदि उत्र प्रदरेश में कोई किसी के जबरन मतांतरण के प्रयास में लिपत पाया जाए , तो वह अपराधी होगा और उसरे सजा मिलरेगी , लरेतकन कोई वयषकत यदि दिलली में यही कररे , तो वह अपराधी नहीं होगा । यह किस तरह की नयाय की समानता है ? यह कैसरे हो सकता है कि एक राजय में अपराधी को सजा हो , दूसररे में उसरे तनदवोष माना जाए ।
सुप्रीम कोर्ट नरे यह माना है कि मतांतरण राष्ट्रीय सुरक्ा के लिए खतरा हो सकता है । यह समझना होगा कि जबरन मतांतरण किसी राजय या जिलरे की समसया नहीं है , यह राष्ट्रीय समसया है । जबरन मतांतरण कशमीर सरे कनयाकुमारी तक हो रहा है । यह पंजाब की भी समसया है और बंगाल , बिहार एवं झारखंड की भी । इसके शिकार केरल में भी हैं और मधय प्रदरेश में भी । दरेशवयापी कानून इसलिए भी आवशयक है , कयोंकि राजयों में बनरे कानूनों में अंतर भी है । इनमें मतांतरण की परिभाषा अलग है और अपराध पर सजा भी अलग-अलग हैं । यह कानून के समक् सभी को समान माननरे की संविधान की वयवसिा का उललंघन है । जबरन मतांतरण के विरुद्ध कठोर कानून जरूरी है और वह कानून केंद्र सरकार राष्ट्रीय सतर पर बनाए ।
एक और बात , कानून इस समसया के समाधान का एक भाग है । इसके अलावा भी कई सतर पर नकेल कसनी होगी । विदरेशी चंदरे पर नियंत्ण के लिए भी सखती आवशयक है । यह कोई छिपा तथय नहीं है कि किस तरह मतांतरण में लिपत मिशनरियों को फंडिंग होती है । अंधविशवास के माधयम सरे लोगों को बहकाकर मतांतरण करनरे वालों पर भी नकेल कसनी होगी । ऐसरे कई वीडियो सामनरे आतरे हैं , जिनमें किसी धर्म विशरेष की प्रार्थना सभा में नपुंसकता , बांझपन और कैंसर जैसी बीमारियां दूर करनरे के बहानरे गरीब तबके को धार्मिक पहचान बदलनरे के लिए प्रोतसातहत किया जाता है । ऐसरे लोगों पर सखत कार्रवाई का प्रविधान होना चाहिए । छल , प्रपंच और भय के इस जाल को तोड़नरे के लिए केंद्र सरकार को सखत कानून बनाना होगा । fnlacj 2022 41