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है अथवा जो वोट बैंक के रूप में जानरे जातरे हैं । मतांतरण के जरियरे भारतीय संस्कृति पर भी आघात किया जाता है और वह भी सरेवा , परोपकार एवं मानव उद्धार के खोखलरे नारों के पीछे । यह किसी सरे छिपा नहीं कि जिस तरह इसलामी समूह अपनरे तमाम दावा संगठनों के जरियरे गुपचुप रूप सरे मतांतरण अभियान चलातरे हैं , उसी तरह ईसाई मिशनरियां भी ।
ईसाई संगठन किस तरह मतांतरण अभियान चला रहरे हैं , इसका एक अनुभव मरेररे पास है । जब मैं दूरदर्शन केंद्र , वाराणसी में काय्तक्म अधिशासी के रूप में कार्यरत थी तब एक दिन शहर के ततकालीन बिशप मरेररे आफिस में लोक गीतों की पांडुलिपि के साथ मुझसरे मिलनरे आए
और आग्ह किया कि इन लोकगीतों को पुसतक रूप में छपवा कर ग्ामीणों के बीच नि : शुलक वितरित कराएं , कयोंकि प्रायः दरेखा जा रहा है कि गांव में भी लोकगीतों के सिान पर फिलमी गीतों का प्रचलन बढ़ रहा है । लोकगीतों और संस्कृति की सुरक्ा के लिए इनका संरक्ण आवशयक है । मैं बिशप की भारतीय संस्कृति की चिंता का गंभीरतापूर्वक नापतौल करतरे हुए पांडुलिपि दरेखनरे लगी । विवाह गीतों सरे लरेकर सोहर , नकटा , फाग , चहका आदि सभी भारतीय लोक गीतों का संग्ह उस पांडुलिपि में था । लगभग सभी लोकगीत हमाररे दरेवी-दरेवताओं और महान पुरुषों सरे जुड़तरे हैं । बिशप नरे इन लोकगीतों का संग्ह करके बड़ी चतुराई सरे हमाररे सभी दरेवी ,
दरेवताओं और मिथकीय चरित्ों के नाम के सिान पर प्रभु , यीशु , मरियम आदि जोड़ दिया था और उसरे ही छपवा कर अतशतक्त , गरीब और भोली- भाली जनता के बीच नि : शुलक वितरित करनरे वालरे िरे । मैंनरे कठोरता पूर्वक प्रतिवाद किया । कुछ लतज्त सरे होकर बिशप वहां सरे चलरे गए िरे ।
ईसाई संगठनों की ओर सरे कराया जानरे वाला मतांतरण भारत में एक ऐसा संकट है , जो ऊपर सरे दरेखनरे पर तो प्ररेम तथा सहानुभूति सरे परिपूर्ण प्रतीत होता है , परंतु भीतर ही भीतर ऐसरे संगठन सनातन धर्म के नामों के बैनर के नीचरे ईसाइयत के प्रचार प्रसार के प्रतिष्ठान खोलरे हुए हैं । उनका उद्देशय मतांतरण द्ारा राष्ट्र की नींव को कमजोर
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