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निरक्रता के अनुचित लाभ का नतीजा होता है । इसका उदाहरण पग-पग पर दिखाई पड़ता है । आदिवासी क्षेत्ों में कुछ समूहों की निर्धनता , निरक्रता का लाभ उठातरे हुए उनका मतांतरण चोरी चुपके करा दिया जाता है । ऐसरे लोग गलरे में उस पंथ का प्रतीक चिनह लटकाए , परंतु हिंदू धर्म के रीति- रिवाजों आदि को यथावत मनातरे हुए मिल जाएंगरे । लोभवश मतांतरण करनरे सरे परंपराएं और संसकार नहीं समापत किए जा सकतरे , लरेतकन समय के साथ उन पर असर पड़ता है और विशरेष रूप सरे मतांतरित परिवारों की दूसरी-तीसरी पीढ़ी के लोगों में । किसी के भोलरेपन और अज्ञानता का अनुचित लाभ उठाकर पंथ परिवर्तन करनरे वालों पर कठोर प्रतिबंध लगना ही चाहिए ।
मतांतरण की कुचरेष्टाओं के अंकुर इसलिए नष्ट नहीं हो पातरे , कयोंकि हमाररे अधिकांश दलों को केवल चुनाव सरे मतलब होता है । इसके लिए वरे जनता के उन वगषों का तुष्टीकरण करतरे हैं , जिनके पास ठोस संखया बल होता

मतांतरण रोकने के लिए उठाने होंगे कड़े कदम

डा . सुरेंद्र कुमार जैन
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करतरे समय सववोच्च नयायालय नरे अवैध मतांतरण के दुष्परिणामों पर चिंता वयकत करतरे हुए चरेतावनी दी कि यह धार्मिक सवतंत्ता के मूलभूत अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्ा के लिए खतरा हो सकता है । पिछलरे काफी समय सरे अवैध मतांतरण में लिपत शषकतयों की आक्ामक रणनीतियां और उनके दुष्परिणाम सामनरे आ रहरे हैं । कशमीर में दो सिख लड़तकयों का जबरन मतांतरण , पंजाब में मिशनरियों द्ारा किए जा रहरे मतांतरण पर अकाल तखत द्ारा चिंता वयकत करना , गुरुग्ाम व लोनी में मूक-बधिर बच्चों के मतांतरण जैसी घटनाओं सरे पूरा दरेश उद्वेलित हो रहा है ।
लखनऊ में सुफियान नरे अपनी प्ररेमिका निधि गुपता को चौथी मंजिल सरे केवल इसलिए धकका दरे दिया कयोंकि उसनरे इसलाम सवीकार करनरे सरे मना कर दिया था । जबरन मतांतरण की यह विभीषिका भारत 13 सौ वषषों सरे झरेल रहा है । पहलरे बल प्रयोग और लालच सरे ही मतांतरण होता था , परंतु अब कई कुटिल तरीकों सरे मतांतरण हो रहा है । विदरेश सरे मिल रही अकूत धन राशि भी इस चुनौती को जटिल बना रही है । इसका सामना करनरे के लिए केंद्र व राजय की सरकारों तथा समाज को मिलकर काम करना होगा । इसके लिए राष्ट्रवयापी संकलप आवशयक है ।
जबरन मतांतरण के राष्ट्रवयापी षड्ंत् को रोकनरे का सबसरे अहम दायितव केंद्र सरकार का बनता है । नयायालय नरे भी केंद्र सरे ही अपरेक्ा की है । 1995 में सरला मुदगल मामलरे में भी सववोच्च नयायालय नरे इसरे रोकनरे के लिए एक केंद्रीय कानून की आवशयकता प्रकट की थी । सवतंत्ता के बाद कुछ राजय सरकारों नरे इस दिशा में कदम उठाए परंतु वोट बैंक की राजनीति नरे राष्ट्रीय हितों की उपरेक्ा कर दी ।
एक बात यह भी समझनी होगी कि सदियों सरे चली आ रही इस विकट समसया का समाधान केवल कानून बनाकर नहीं हो सकता । दरेवल ऋषि , सवामी विद्ारणय , रामानुजाचार्य , रामानंद , चैतनय महाप्रभु , गुरु तरेग बहादुर , गुरु गोविंद सिंह , सवामी विवरेकानंद , सवामी दयानंद , सवामी श्द्धानंद , सवामी चिनमयानंद आदि कई संतों-महापुरुषों नरे इस संबंध में जनजागरण किया है और मतांतरण की आंधी को रोकनरे का प्रयास किया है । वर्तमान समय में भी कई साधु- संत और चिंतक इस दिशा में सार्थक कदम उठा रहरे हैं । कथाओं-प्रवचनों के माधयम सरे जनजागरण , एक-एक जिलरे को दत्क लरेकर मतांतरण के षड्ंत्ों पर रोक लगानरे का एक महाअभियान इस समय की आवशयकता है ।
आज संपूर्ण विशव के मतांतरित समाज में अपनी जड़ों सरे जुड़नरे का एक सवत : सरूत्त अभियान चल रहा है । भारत भी इससरे अछूता नहीं है । परंतु समाज की एक हिचक इसमें बाधा बनती है । अपनरे घर में वापस आनरे वालरे बांधवों का शरेष समाज सरे रोटी-बरेटी का संबंध जलदी सिातपत नहीं हो पाता है । कुछ वर्ष पूर्व हरियाणा के रोहतक में आयोजित एक सर्व खाप पंचायत नरे निर्णय लिया था कि जिनके पूर्वज जिस गोत् सरे गए िरे , वापस आनरे पर उनका वही जाति गोत् माना जाएगा । इस प्रकार का जागरण अब समय की मांग है । मतांतरण को अपना अधिकार मान चुके समूहों को भी सोचना होगा कि मतांतरण का मिशन और शांतिपूर्ण सह-अषसततव एक साथ संभव नहीं । कया धार्मिक सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सह-अषसततव का दायितव एकपक्ीय हो सकता है ?
fnlacj 2022 39