Dec 2022_DA-1 | Page 38

eqn ~ nk

नीरजा माधव

d

ई बार प्रतयक् आंतरिक संकट मूर्तिमान रूप में दिखाई नहीं पड़तरे , किंतु असंतोष , विरोध , भ्रष्टाचार , कदाचार आदि के रूप में समाज में वयापत रहतरे हैं और समयानुसार अपना वीभतस रूप राष्ट्र के संकट के रूप में दिखातरे रहतरे हैं । इसलिए बौद्धिक या भावनातमक रूप में तवद्मान इन राष्ट्रीय संकटों का निदान शासन द्ारा होतरे रहना चाहिए । इस दिशा में शिक्ा और संसकारों की भी बहुत भूमिका होती है ।
भारत पर अतीत में जितनरे भी विदरेशी आक्मण हुए , उनका यदि ठीक सरे विश्लेषण किया जाए तो समझ में आता है कि हमारी आपसी कलह सरे छिन्न-भिन्न और जर्जर जीवन
ही उन आक्मणों का आधार बना । इन आक्मणों के दौरान भारतीय जनता का जो इसलामीकरण हुआ , वही विभाजन का आधार बना । आज इसलाम के साथ ईसाइयत का जिन इरादों के साथ प्रसार हो रहा है , वह भी दरेश के लिए खतरा बन रहा है । छल-कपट सरे कराया जा रहा मतांतरण एक बहुत बड़ा संकट है राष्ट्र की सुरक्ा के लिए ।
पंथ परिवर्तन मात् सरे किसी की मानसिकता या हृदय परिवर्तन नहीं हो सकता , परंतु भारत में मतांतरण जिस इरादरे सरे हो रहरे हैं , उससरे यह सपष्ट है कि यह एक अनुचित और अवांछनीय गतिविधि है । आम तौर पर पंथ परिवर्तन गंभीर दार्शनिक या आधयाषतमक चिंतन का परिणाम नहीं होता , बषलक वह गरीबी , अज्ञानता और

राष्ट्र के लिए बड़ा खतरा बन गया है अवैध मतांतरण

38 fnlacj 2022