Dec 2022_DA-1 | Page 37

भावनातमक दबाव बनाकर मतांतरण कराना है । अमूमन दरेखनरे में आता है कि सनातन संस्कृति सरे संबंध रखनरे वाली लड़की जब अनय समुदाय- संस्कृति सरे जुड़े लड़के सरे विवाह करती है तो उसके अपनरे रकत संबंधी उससरे रिशता तोड़ दरेतरे हैं । इससरे पति और ससुराल पक् के लिए उस पर उनकी इचछानुसार जीवन पद्धति अपनानरे का दबाव बनाना आसान हो जाता है ।
आखिर अंतर धार्मिक विवाह की उन्नायक बहुसंखयक समाज की लड़तकयां ही कयों बनती हैं ? इसके पीछे जो कारण दृष्टिगोचर होता है , वह सपष्टता सामाजिक और सांस्कृतिक विशवास की खोखली होती जड़ों की ओर इशारा कर रही है । आधुनिक सोच के नाम पर सनातन संस्कृति की आसिा , विशवास और मूलय न केवल पिछड़ेपन का प्रतीक समझरे जानरे लगरे हैं , बषलक अभिजात वर्ग की पहचान भी । नतीजतन मधयमवगटीय भारतीय परिवार इस परिपाटी को अपनाकर सवयं को अभिजात वर्ग की श्रेणी में सषममतलत करनरे को आतुर दिखाई दरे रहरे हैं और अंततोगतवा एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण कर रहरे हैं , जो तदगभ्रमित है और जिसके लिए प्ररेम दरेह आकर्षण सरे अधिक कुछ भी नहीं ।
इस तथय को नकारा नहीं जा सकता कि पंथ
विशरेष की परंपराएं सिर्फ आसिा का मामला नहीं हैं , अपितु वरे जीवन पथ प्रदर्शक भी हैं , जिसका अभाव उचित-अनुचित के बीच भरेद करनरे के विवरेक को क्ीण करता है । यक् प्रश्न यह है कि जब एक सामानय बिंदु पर बनी विचारधारा को परिवर्तित करना किसी वयषकत विशरेष के लिए सहज नहीं होता तो यकायक कोई वयषकत उन विशवासों और मानयताओं को , जिसकी नींव जनमतरे ही पड़ गई हो , को तयाग कर दूसररे पंथ की मानयताओं को सवीकार कर उसमें आसिा रखनरे लगरे तो यह सहज कैसरे हो सकता है ?
कया डेंटिग एप , सोशल नरेटवर्क साइट्स या तमाम छद् आधारों सरे उपजा प्ररेम इतना शषकतशाली हो जाता है कि किसी की मानयताओं और आसिाओं को जादुई छड़ी घुमाकर बदल दरे ? यकीनन नहीं । तो फिर यह जादुई छड़ी कौन सी है ? दैहिक आकर्षण में लिपटा प्ररेम का सममोहन जाल मन और मषसतष्क को कुंद कर सोचनरे-समझनरे की शषकत को खतम कर दरेता है और यह षसिति श्द्धा जैसी अनरेक लड़तकयों को मृतयु के द्ार पर लाकर खड़ा कर दरेती है ।
अगर किसी को यह तर्क संकीर्ण विचारधारा का द्ोतक प्रतीत होता हो तो 2014 में इलाहाबाद
उच्च नयायालय की उस टिपपणी पर गौर करना जरूरी हो जाता है , जहां नयायालय नरे नूरजहां प्रकरण में कहा था कि जिस मत-मजहब की जानकारी नहीं , उसरे आखिर सवीकार कैसरे किया जा सकता है ? उच्च नयायालय नरे यह भी कहा था कि मतांतरण का आशय धर्म की प्रत्येक वयवसिा एवं सिद्धांतों को अपनाया जाना है । प्ररेम की सवीकारोषकत विरोध का विषय नहीं है । विरोध का आधार प्ररेम की आड़ में छिपरे मतांतरण की मंशा की है ।
उल्लेखनीय है कि 2000 में इलाहाबाद उच्च नयायालय नरे ही अपनरे एक आदरेश में कहा था कि गैर मुषसलम का इसलाम में विशवास के बिना शादी के उद्देशय के लिए मतांतरण करना निरर्थक है । कुरान में इंगित है कि आसिा नहीं रखनरे वाली महिला सरे तब तक शादी न करो , जब तक कि वह आसिा नहीं रख लरे । कया आसिा मशीनी प्रकिया है , जो किसी के संसर्ग में आतरे ही परिवर्तित हो जाए ? बावजूद इसके अगर ऐसी घटनाएं निरंतर घटित हो रही हैं तो इसके गहररे निहितार्थ हैं । ऐसी घटनाओं पर समाज को चरेतना होगा , अनयिा न जानरे कितनी लड़तकयां श्द्धा वालकर की तरह वहशी तरीके सरे मारी जाती रहेंगी ।
( साभार ) fnlacj 2022 37