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मतांतरण नहीं तो हिन्दू लड़कियों की हत्या

ऋतु सारसवत ns

श की राजधानी दिलली में मुंबई की श्द्धा वालकर की उसके लिव इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला की खौफनाक तरीके सरे हतया नरे अनरेक गंभीर प्रश्नों को खड़ा कर दिया है । इन प्रश्नों के साथ लव जिहाद की भी चर्चा नए सिररे सरे होनरे लगी है । दरेश भर में लोगों का आक्ोश भी दरेखनरे को मिल रहा है । इस आक्ोश को संकीर्णता करार करनरे वालरे यह तर्क दरे सकतरे हैं कि ऐसी घटना सवधमटी सरे प्ररेम संबंध रखनरे पर भी तो घटित हो सकती थी । यकीनन ऐसा हो सकता था , परंतु इस आक्ोश के पीछे कुछ ऐसरे तथयातमक कारण हैं जिन पर विचार करना अवशयंभावी हो जाता है । प्रश्न यह है कि बीतरे
एक दशक में ऐसी लड़तकयों की संखया में बढ़ोतरी कयों हुई है , जिनहोंनरे मुषसलम समुदाय के लड़कों सरे विवाह किया और फिर जो या तो मारी गईं या मतांतरण के लिए विवश हुईं अथवा जिनकी जिंदगी तबाह हो गई ?
प्ररेम और विवाह एक नितांत निजी मामला है । इस पर किसी को विरोध करनरे का अधिकार नहीं है , परंतु उस षसिति में नहीं जब उसका अप्रतयक् रूप सरे संबंध मतांतरण सरे हो । आमतौर पर यह तर्क दिया जाता है कि प्ररेम जाति और समुदाय के बंधन को सवीकार नहीं करता या फिर लड़तकयां भावुक , कोमल और संवरेदनशील होती हैं और सहजता सरे प्ररेम बंधन के प्रति विशवास रखकर अनय जाति-पंथ के युवा सरे विवाह करनरे सरे नहीं हिचकतीं । अगर यह सतय
है तो फिर यह भाव और समर्पण मुषसलम समुदाय की लड़तकयों में अधिकांशतः विलुपत कयों मिलता है ? जिस प्ररेम के बलबूतरे लड़तकयां इस विशवास के साथ अंतर-धार्मिक विवाह करती हैं कि विवाह के बाद उनकी धार्मिक आसिा का संरक्ण उनके जीवन साथी द्ारा किया जाएगा , वह विशवास अधिकांश मामलों में ढह कयों जाता है ?
यह किसी सरे छिपा नहीं कि दरेश के तमाम थानों में विवाह के बाद मतांतरण के लिए दबाव के मामलरे दर्ज हैं । हाल में उच्चतम नयायालय नरे मतांतरण को लरेकर चिंता जतातरे हुए कहा कि जबरन या छल-कपट सरे मतांतरण रोकनरे के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करनरे चाहिए । जबरन मतांतरण सरे कहीं अधिक घातक
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