प्रकाशित हो पायी । अगर इस ग्ंि को बौद्ध धर्म का धर्मशासत् कहा जाय तो अतिशयोषकत न होगी । यह एक विशाल ग्ंि है , जिसमें बौद्ध धर्म की विशद् विवरेचना की गयी है इस ग्ंि की भाषा ओजसवी एवं सारगर्भित है ।
इन पुसतकों के अतिरिकत डा . आंबरेडकर के कई ऐसरे सवतंत् लरेख जो अंग्रेजी तथा मराठी भाषाओं में लिखरे गयरे हैं , जो भी विभिन्न पत्- पतत्काओं में प्रकाशित हैं जिनका सामाजिक तथा सातहषतयक दृष्टिकोण सरे विशरेष महतव हैए जैसरे लरेबर एणड पार्लियामेन्ट्री डेमोक्ेसी , नीड फाॅर चरेकस एणड वैलरेन्सेज , माई पर्सनल फिलासफी , बुद्धिजम एणड कमयूतनजम आदि ।
आंबेडकर द्ारा सम्ाहदत पत्र एवं
पत्त्रकाएं
बाबा साहरेब डा . भीमराव आंबरेडकर नरे दलित समाज में जागृति लानरे के लिए कई पत् एवं पतत्काओं का प्रकाशन एवं समपादन किया । इन पत्-पतत्काओं नरे उनके दलित आंदोलन को आगरे बढ़ानरे में महतवपूर्ण योगदान दिया । अगर दरेखा जाय तो डा . आंबरेडकर ही दलित पत्कारिता के आधार सतमभ हैं । वरे दलित पतत्कारिता के प्रथम संपादक , संसिापक एवं प्रकाशक हैं । उनके द्ारा संपादित पत् आज की पत्कारिता के लिए एक मानदणड हैं । डा . आंबरेडकर द्ारा निकालरे गयरे पत्-पतत्काओं की संक्षेप में जानकारी निम्नवत है-
मयूक नायक
इस मराठी पातक्क पत् का प्रकाशन 31 जनवरी , 1920 को हुआ । इसके संपादक पाणडुराम ननदराम भटकर िरे जो कि महार जाति सरे संबंध रखतरे िरे । आंबरेडकर इस पत् के अधिककृत संपादक नहीं िरे , लरेतकन वरे ही इस पत् की जान िरे । एक प्रकार सरे यह पत् उनहीं की आवाज का दूसरा लिखित रूप था । ‘ मूक नायक ’ सभी प्रकार सरे मूक-दलितों की ही आवाज थी , जिसमें उनकी पीड़ाएं बोलती थीं । इस पत् नरे दलितों में एक नयी चरेतना का संचार किया गया तथा उनहें अपनरे अधिकारों के लिए आंदोलित होनरे को उकसाया । यह पत् आर्थिक अभावों के चलतरे बहुत दिन तक तो नहीं चल सका लरेतकन एक चरेतना की लहर दौड़ानरे के अपनरे उद्देशय में कामयाब रहा ।
बहिष्ृ त भारत
अलप समय में ही ‘ मूक-नायक ’ के बनद हो जानरे के बाद डा . आंबरेडकर नरे 3 अप्रैल 1927 को अपना दूसरा मराठी पातक्क ‘ बतहष्ककृत भारत ’ निकाला । यह पत् बाम्बे सरे प्रकाशित होता था । इसका संपादन डा . आंबरेडकर खुद करतरे िरे । इसके माधयम सरे वरे असपृशय समाज की समसयाओं और शिकायतों को सामनरे लानरे का कार्य करतरे िरे तथा साथ ही साथ अपनरे आलोचकों को जवाब भी दरेनरे का कार्य करतरे िरे । इस पत् के एक
समपादकीय में उनहोंनरे लिखा कि यदि तिलक अछूतों के बीच पैदा होतरे तो यह नारा नहीं लगातरे कि ‘‘ सवराज मरेरा जनमतसद्ध अधिकार है ’ बषलक वह यह कहतरे कि ‘‘ छुआछूत का उनमूलन मरेरा जनम सिद्ध अधिकार है ।‘ इस पत् नरे भी दलित जागृति का महतवपूर्ण कार्य किया ।
समता
इस पत् का प्रकाशन 29 जून , 1928 को आरमभ हुआ । यह पत् डा . आंबरेडकर द्ारा समाज सुधार हरेतु सिातपत संसिा ‘ समता संघ ’ का मुख पत् था । इसके संपादक के तौर पर डा . आंबरेडकर नरे दरेवराव विष्णु नाइक की नियुषकत की थी । जनता
‘ समता ’ पत् बनद होनरे के बाद डा . आंबरेडकर नरे इसका पुनर्प्रकाशन ‘ जनता ’ के नाम सरे किया । इसका प्रवरेशांक 24 नवमबर , 1930 को आया । यह फरवरी 1956 तक कुल 26 साल तक चलता रहा । इस पत् के माधयम सरे डा . आंबरेडकर नरे दलित समसयाओं को उठानरे का बखूबी कार्य किया ।
प्रबुद्ध भारत
14 अकटूबर , 1956 को बाबा साहरेब डा . आंबरेडकर नरे बौद्ध धर्म ग्हण कर लिया । इसी के साथ ही ‘ जनता ’ पत् का नाम बदलकर उनहोंनरे ‘ प्रबुद्ध भारत ’ कर दिया । इस पत् के मुखशीर्ष पर ‘ अखिल भारतीय दलित फेडररेशन का मुखपत् छपता था ।
डा . अम्बेडकर के सभी पत् मराठी भाषा में ही प्रकाशित हुए कयोंकि मराठी ही उस समय आम जनता की भाषा थी । चूकि बाबा साहरेब का कार्य क्रेत् महाराष्ट्र था और मराठी वहां की जन भाषा है । जैसा कि विदित है कि बाबा साहरेब अंग्रेजी भाषा के भी प्रकाणड विद्ान िरे , लरेतकन उनहोंनरे अपनरे पत् मराठी भाषा में इसलिए प्रकाशित कियरे कि उस समय महाराष्ट्र की दलित जनता जयादरे पढ़ी लिखी नहीं थी , वह केवल मराठी ही समझ पाती थी ।
( साभार ) fnlacj 2022 35