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आर्य क्तत्य लोग िरे ।
स्टेट्स एडि माइनोरीटीज
यह पुसतक मार्च 1947 में प्रकाशित हुई । अपनी इस पुसतक में डा . आंबरेडकर नरे समाज की समाजवादी रूपररेखा प्रसतुत करनरे का प्रयास किया है साथ ही उनहोंनरे यह भी आग्ह किया है कि राजय समाजवाद को संविधान की धाराओं द्ारा सिातपत किया जाय ताकि विधायिका तथा कार्यपालिका के सामानय कार्य , उनहें परिवर्तित न कर सके । राजय समाजवाद का वयावहारिक रूप संसदीय जनतंत् द्ारा लाया जाना चाहिए , कयोंकि संसदीय जनतंत् समाज के लिए सरकार की नयायोचित वयवसिा है ।
दी अनटचेबिल्स
यह ग्नि अकटूबर 1948 में प्रकाशित हुआ । इसमें छुआछूत के उतपतत् के सिद्धानतों के बाररे में विसतार सरे बताया गया है । डा . आंबरेडकर नरे इस पुसतक में प्रमाणों के साथ यह सिद्ध किया है कि ‘‘ असपृशय पहलरे पराजित लोग िरे और बौद्ध धर्म तथा गोमांस खाना न छोड़नरे सरे उनहें असपृशय माना गया । उनके मतानुसार असपृशयता का उदगम ईसवी सन् 400 के दरमियान हुआ होगा । उनहोंनरे यह साबित किया कि बौद्ध धर्म और रिाह्मण धर्म में श्रेष्ठता के लिए जो संघर्ष हुआ उससरे असपृशयता पैदा हुई ।
थाट्स ऑफ ललिंग्विण्स्टक स्टेट
डा . आंबरेडकर का यह महतवपूर्ण ग्ंि 1955
में प्रकाशित हुआ । इसमें उनहोंनरे राजयों के भाषाई गठन का तचत्ण किया है तथा एक राजय एक भाषा के सार्वभौमिक सिद्धानत को सवीकार किया है । हिनदी भाषा को समपूण्त राष्ट्र की राजकीय भाषा बनायरे जानरे पर बल दिया है । उनके अनुसार एक भाषा राष्ट्र को संगठित रख सकती है और समपूण्त राष्ट्र में शाषनत तथा विचार संचार को आसान बना सकती है ।
द बुद्ध एडि हिज धम्म
वैसरे तो डा . आंबरेडकर द्ारा लिखित सभी पुसतकें अपना विशिष्ट महतव रखती हैं । लरेतकन उनमें सरे भी सबसरे महतवपूर्ण सिान ‘ द बुद्धा एणड हिज धमम ’ का है । यह पुसतक बाबा साहरेब डा . आंबरेडकर के निर्वाणोपरानत सन् 1957 में
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