चर्चा की है ।
रानाडे , गांधी एडि जिन्ा
जनवरी 1943 में डा . आंबरेडकर नरे पूना में एम . जी . रानाडे के जनम समारोह के उपलक्य में एक वयाखयान दिया , जो आगरे चलकर रानाडे , गांधी एवं जिन्ना के रूप में प्रकाशित हुआ । इस पुसतक में रानाडे , गांधी और जिन्ना के वयषकततव का तुलनातमक अधययन किया गया है तथा बताया गया है कि नायक पूजा ( हीरो वर्शिप ) अचछी बात नहीं है , कयोंकि अनततोगतवा वह समाज तथा दरेश के हितों के लिए हानिकारक होती है ।
थाट्स ऑन पाकिस्ान
डा . आंबरेडकर की यह बहुचर्चित पुसतक 1945 में प्रकाशित हुई । यह वह समय था जब भारत के विभाजन को लरेकर पूररे दरेश में हलचल
मची हुयी थी । इस पुसतक नरे इस समसया का उचित समाधान प्रसतुत करनरे की दिशा में अपनी महतवपूर्ण भूमिका निभायी । इस पुसतक के संबंध में डा . आंबरेडकर लिखतरे हैं कि ‘‘ पुसतक के नाम सरे ऐसा लगता है जैसरे पाकिसतान के बाररे में एक सामानय सा खाका खींचा गया है , जबकि इसमें उसके अलावा और भी बहुत कुछ है । यह भारतीय इतिहास और भारतीय राजनीति के सामप्रदायिक पहलुओं की एक विश्लेषणातमक प्रसतुति है । इसका मकसद पाकिसतान के क . ख . ग . पर प्रकाश डालना भी है । इस पुसतक में भारतीय इतिहास और भारतीय राजनीति की एक झांकी कहा जा सकता है ।’
ह्ाि कांग्ेस एडि गांधी हैव डन ियू दी अनटचेबिल्स यह पुसतक भी 1945 में ही प्रकाशित हुई ।
इसमें कांग्रेस और गांधी द्ारा अछूतों के लिए
कियरे गयरे कायषों का लरेखा-जोखा प्रसतुत किया गया है तथा सही कार्य न करनरे के लिए उनकी अचछे सरे खबर ली गयी है । इस पुसतक में यह बताया गया है कि कांग्रेस पाटटी नरे अछूतोद्धार की समसया को अपनरे राजनीतिक लक्यों की प्राषपत का साधन मात् बनाया है । कांग्रेस नरे अपनरे अछूतोद्धार काय्तक्म का जितना प्रचार किया , वासतव में उतना काम नहीं किया । इसीलिए इस पुसतक में दलित वगषों सरे गांधी एवं गांधीवाद सरे सावधान रहनरे के लिए निवरेदन किया गया है । हू वेयर दी ियूद्ाज
यह ग्नि 1946 में प्रकाशित हुआ । यह एक खोजपरक पुसतक हएै जिसमें शूद्रों की उतपतत् के इतिहास का विश्लेषण किया गया है । इसमें बताया गया है कि ‘ शूद्र ’ शबद की उतपतत् मात् शाषबदक नहीं है । उसका ऐतिहासिक समबनध है । आज जिनहें शूद्र कहा जाता है वरे सूर्यवंशी
fnlacj 2022 33