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गांधी हैव डन टू दी अनटचरेतवलस ( 1945 ), महाराष्ट्र एज ए लिंषगवषसटक सटेट ( 1945 ), हू वरेयर दी शूद्राज ( 1946 ), सटे्टस एणड माइनोरीटीज ( 1947 ), तहसट्री आफ इषणडयन करेंसी एणड बैंकिंग ( 1947 ), दी अनटचरेतबलस ( 1948 ), थाट्स ऑन लिंषगवषसटक सटेट ( 1955 ), बुद्ध एणड कार्लमाकस्त ( 1946 ), कमयूनल डेडलाक एणड वरे टू सालव इट ( 1945 ), बुद्ध एणड दी फयूचर ऑफ़ हिज रिलिजन ( 1950 ), फयूचर आफ पार्लियामेन्ट्री डेमोक्ेसी ( 1951 ), लिंषगवषसटक सटे्टस नीडस फार चरेकस एणड बैलरेन्सेज ( 1953 ), बुद्धिजम एणड कमयूतनजम ( 1956 ), दि बुद्ध एणड हिज धमम ( 1957 ), हिनदू वुमन : राइजिंग एंड फाल ।
डा . आंबरेडकर द्ारा उपरिलिखित ग्ंिों की विषय सामग्ी बहुत वयापक है । उनकी विश्लेषण पद्धति बहुत ही सूक्म एवं सटीक है । उनके कुछ प्रमुख ग्ंिों के बाररे में संक्षेप में जानकारी दी जा रही है ।
कास्टस इन इंडिया
यह डा . आंबरेडकर द्ारा लिखित एक लरेख था , जो मई 1926 में कोलषमबया यूनिवर्सिटी अमरेरिका में पढ़ा गया था । यह बाद में 1917 में पुसतक के रूप में प्रकाशित हुआ । इसके अनतग्तत भारत में जातियों की उतपतत् , गठन एवं विकास पर प्रकाश डाला गया है । उनकी दृष्टि में , जाति एक ऐसा परिबद्ध वर्ग है , जो अपनरे तक सीमित रहता है । उनके अनुसार जाति समसया के चार पक् हैं- हिनदू जनंसखया में विविध ततवों के सषममश्ण के बावजूद इसमें दृढ़ सांस्कृतिक एकता है , जातियां इस विराट सांस्कृतिक इकाई का अंग हैं , शुरू में केवल एक ही जाति थी और दरेखा दरेखी या बहिष्कार सरे विभिन्न जातियां बन गयी ।
स्ाल होल्डिंग्स इन इण्डिया एडि देयर रेमेडीज
यह पुसतक 1918 में प्रकाशित हुई । यह छोटी और बिखरी हुई जोतनरे योगय भूमि के विसतार एवं उसके चकबनदी सरे संबंधित है । डा .
आंबरेडकर के अनुसार जब तक छोटी एवं बिखरी हुई जोतनरे योगय भूमि का विसतार एवं चकबनदी नहीं होगी तब तक भारत के ककृतष सुधार में प्रगति नहीं होगी ।
दी प्राब्लम ऑफ़ द रूपी
यह डा . आंबरेडकर का वह शोध प्रबनध है , जिसरे उनहोंनरे अकटूबर , 1922 में यूनिवतसटटी ऑफ लंदन में डाकटर आफ सांइस ( डी . एस . सी .) की उपाधि के लिए प्रसतुत किया था । यही थीसिस दिसमबर , 1923 में पुसतक के रूप में प्रकाशित हुई । इस पुसतक में डा . आंबरेडकर नरे सपष्ट रूप सरे विश्लेषित किया कि मुद्रा समसया के अषनतम निर्णय में , किस प्रकार तरिटिश शासकों नरे भारतीय रूप की कीमत को पाउणड के साथ जोड़कर अपनरे अधिकतम लाभ का मार्ग चुना । इनकी इस हरेरा फेरी नरे ही सभी भारतीय लोगों को गंभीर आर्थिक कठिनाईयों में ढकेल दिया , कयोंकि भारतीय धन का तरिटीश खजानरे की ओर निरनतर बहाव हो गया । कई ढंगों सरे यहां का धन तरिटिश सरकार तथा जनता के लाभ में जानरे लगा ।
दी इवोल्यूशन आफ दी प्रोविन्ियन फाइनेंस इन
वरिटिश इंडिया यह पुसतक डा . आंबरेडकर का वह शोध
प्रबनध है , जिसरे उनहोंनरे 1916 में कोलषमबया यूनिवतसटटी में पीएचडी डिग्ी के लिए प्रसतुत किया था । इसका प्रकाशन 1924 ई0 में हुआ । यह पुसतक महाराजा बड़ौदा नररेश श्ीमंत सयाजी राव गायकवाड को समर्पित की गयी है । उल्लेखनीय है कि महाराजा नरे ही उनहें अमरेरिका में शिक्ा ग्हण करनरे हरेतु भरेजा था । यह पुसतक फाइनेंस सरे संबंधित है , जिसमें तरिटिश नौकरशाही का बुरी तरह सरे भणडारोड़ किया गया है ।
एनाहिलेशन ऑफ कास्ट
डा . आंबरेडकर द्ारा लिखित यह बहुचर्चित पुसतक है , इसका प्रकाशन 1936 में हुआ । जात-पांत तोड़क मणडल द्ारा आयोजित उसके
वार्षिक अधिवरेशन में लाहौर में मार्च 1936 में डा . आंबरेडकर को अधयक्ीय भाषण दरेनरे के लियरे आमंतत्त किया गया था , लरेतकन मणडल के सदसयों नरे जब काय्तक्म सरे पूर्व डा . आंबरेडकर के इस भाषण को दरेखा तो उनहें यह आपतत्जनक लगा । मणडल के सदसयों नरे इस भाषण में परिवर्तन के लिए डा . आंबरेडकर सरे अनुरोध किया , लरेतकन डा . साहरेब भाषण में कोई भी परिवर्तन करनरे सरे सपष्ट मना कर दिया । अनततोगतवा मणडल के इस वार्षिक अधिवरेशन के काय्तक्म को रद् कर दिया । डा . आंबरेडकर नरे इसी भाषण को जयों का तयों 1936 में ‘ एनाहिलरेशन ऑफ कासट ’ के नाम सरे पुसतक के रूप में प्रकाशित करवा दिया ताकि अधिक सरे अधिक लोग इसके बाररे में जान सकें । यह पुसतक छोटी सी है , लरेतकन बहुत ही गंभीर है । इस पुसतक में डा . आंबरेडकर नरे जाति वयवसिा के आधार पर उसके उनमूलन के संबंध में गंभीर
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