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बाबा साहब का सृजनात्मक साहित्य

राजबहादुर

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ह सर्वविदित है कि बाबा साहब डा . आंबरेडकर नरे साहितय की विधा विशरेष ( यथा-कावय , कहानी , नाटक आदि ) में कोई रचना नहीं की , लरेतकन उनकी कलम सरे उच्च कोटि के विपुल साहितय का सृजन हुआ है । उनका साहितय मूलतः अंग्रेजी भाषा में गहन अधययन एवं चिंतन के बाद सृजित हुआ है । बाबा साहब का साहितय जितना उनके समय में प्रासंगिक था , कहीं उससरे
अधिक वर्तमान में प्रासंगिक है । आज बाबा साहब का साहितय एवं चिंतन भारत ही नहीं बषलक पूरी दुनिया में शोध का विषय बना हुआ है । उनके बाररे में नित नयी जानकारियाँ प्रापत हो रही हैं । हम उनके जीवन सरे तो बखूबी परिचित हो गयरे हैं , लरेतकन अभी उनके साहितय एवं चिंतन सरे कम परिचित हो पायरे हैं ।
बाबा साहरेब डा . आंबरेडकर द्ारा रचित ग्ंि कुछ तो उनके जीवनकाल में ही प्रकाशित हो गयरे तथा कुछ उनके परिनिर्वाण के बाद प्रकाशित
हो पायरे , जिनका तिथिवार विवरण निम्नवत् हैं-कास्टस इन इषणडया ( 1917 ), समाल होलिंगस इन इंडिया एणड दरेयर ररेतमडीज ( 1918 ), दी प्राबलम आफ दि रूपी ( 1923 ), दी इवोलयूशन आफ दि प्रोतवषनशयन फाइनेंस इन तरिटिश इंडिया ( 1924 ), एनाहिलरेशन ऑफ़ कासट ( 1936 ), मिसटर गांधी एणड दी एमरेनसीपरेशन ऑफ़ दी अनटेचरेतवलस ( 1945 ), रानाडे , गांधी एणड जिन्ना ( 1943 ), थाट्स आन पाकिसतान ( 1945 ), ह्ाट कांग्रेस एणड
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