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विरोधी दलों के हाथ के खिलौना बन कर दलित समाज को गुमराह करनरे की हर संभव कोशिश में लगरे हुए हैं । दलित समाज के ऐसरे तथाकथित चिंतक दलित को हिंदुओं के खिलाफ भड़का कर दरेश तोड़नरे का कार्य तो कर ही रहरे हैं । साथ ही यह कथित दलित चिंतक दलित समाज को चर्च के हाथों गिरवी रखना चाहता है । सच यह भी हैं कि चर्च ही ऐसरे दलित चिंतक को पालता पोसता है ।
यहां पर कथित रूप सरे दलितों के नरेता कहरे जानरे वालरे जोगेंद्र नाथ मंडल का उदाहरण भी सभी के सामनरे है । दलित-मुषसलम गठजोड़ और जय भीम-जय मीम का नारा दरेनरे वालरे आपको कभी जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम लरेतरे नहीं दिखेंगरे । कयोंकि यह एक नाम इस बरेमरेल गठजोड़ के पीछे की खतरनाक शाजिश की धतज्याँ उड़ा दरेगा । सवतंत्ता सरे पूर्व मंडल दरेश के दलित आंदोलन के प्रमुख चरेहररे के रूप में परेश कियरे जातरे िरे । इतिहास मरे पहली बार दलित-मुषसलम गठजोड़ का प्रयोग जोगेंद्र नाथ मंडल नरे ही किया था , डॉ आंबरेडकर सरे उलट उनका इस नए गठबंधन पर अटूट विशवास था । मुषसलम लीग के अहम नरेता के तौर पर उभररे जोगेंद्र नाथ मंडल नरे भारत विभाजन के वकत अपनरे दलित अनुयायियों को पाकिसतान के पक् मरे वोट करनरे
का आदरेश दिया । अविभाजित भारत के पूवटी बंगाल और सिलहट ( आधुनिक बांगलादरेश ) में करीब 40 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी , जिनहोंनरे पाकिसतान के पक् मरे वोट किया और मुषसलम लीग मणडल के सहयोग सरे भारत का एक बड़ा हिससा हासिल करनरे मरे सफल हुआ । आज के बांगलादरेश इलाके सरे लाखों सवर्ण और अमीर जातियों नरे हिनदुसिान में बसनरे का फैसला किया , जबकि मणडल के दलित-मुषसलम दोसती के बहकावरे मरे ज़यादातर दलितों नरे पूवटी पाकिसतान मरे ( आज का बांगलादरेश ) ही बसनरे को राजी हुए ।
विभाजन के बाद मुषसलम लीग नरे दलित- मुषसलम गठजोड़ का मान रखतरे हुए मंडल को पाकिसतान का पहला कानून मंत्ी बनाया , बषलक पाकिसतान के संविधान लिखनरे वाली कमरेटी के अधयक् भी वही रहरे िरे । पर दलित-मुषसलम दोसती का ढोंग करनरे वालरे मंडल के शबदों की असलियत जलद सामनरे आ गयी और हर गैर- मुषसलम काफिर है , का नारा लगाकर पूवटी पाकिसतान में दलित हिंदुओं पर अतयाचार कियरे गए और वहां रहनरे वाली लगभग 30 % दलित हिनदू आबादी धीररे-धीररे मुषसलम अतयाचार का शिकार हो गयी । इसी तरह भारत में पाकिसतान सरे जितनरे भी हिंदू पलायन करके भारत आ रहरे
हैं , उनमें सर्वाधिक रूप सरे दलित समाज के हैं ।
दलित-दलित-दलित कहकर दलितों को बरगलानरे में जुटे कथित दलित चिंतकों का असली मकसद सिर्फ अपनरे ही भाइयों को अपनरे सरे अगल दिखानरे का है । वह यह भूल जातरे हैं कि दलित भी सनातनी हिनदू हैं और सनातन धर्म की रक्ा करना , दरेश के सभी हिनदू समाज का पहला कर्तवय है । ऐसरे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हम सबको सभी वर्ग को एक साथ मिल कर रहना ही है , इसलिए कट्टरता या आपसी कटुता की आवशयकता नहीं है । हम तो दलित समाज की अलग थलग दुनिया ( आईलेंड ) नहीं बना सकतरे । साथ ही विदरेशी शषकतयों को अपनी रोटी सेंकनरे का भी अवसर नहीं दरे सकतरे । हमें अपनरे अधिकार की लड़ाई लड़नी है । हम सभी को डॉकटर भीमराव आंबरेडकर के बताए राह पर हमें चलना है । हमें डॉकटर आंबरेडकर के आवाहन तशतक्त , संगठित एवं संघर्ष के साथ उनका जो महामंत् संविधान के रूप में समानता , सवतंत्ता एवं बंधुता का संदरेश दरेता है , उसरे आतमसात कानरे की जरुरत तो है ही , साथ ही ऐसरे दलित चिंतकों सरे भी बचनरे की जरुरत भी है , जो समसया को समाधान करनरे की बजाय यरेन-केन-प्रकाररेण समसया को समसया बनायरे रखनरे के लिए लगातार काम कर रहरे हैं । �
30 fnlacj 2022