में अंतर नहीं कर सके एवं दलित वर्ग के इतिहास के संदर्भ में केवल शूद्रों का बार-बार उदाहरण दरेतरे हैं । इस संदर्भ में उनहें यह भी नहीं पता है कि शूद्रों के बाररे में डॉ आंबरेडकर नरे कया लिखा । ऐसरे में यह बहुत जरुरी हो जाता है कि डॉकटर आंबरेडकर के विचार का ज्ञान आवशयक है और जिसरे उनहोंनरे अपनी पुसतक शूद्र कौन ? के प्राककिन के प्रथम पृष्ठ के तीसररे पैराग्ार में वयकत करतरे हुए लिखा । डॉ आंबरेडकर नरे इस बाररे में सपष्ट रूप सरे कहा है कि वर्तमान दलित
तोड़-मरोड़ कर प्रसतुत करतरे हैं । यह वह लोग हैं जो बड़ी चतुराई सरे दलित वर्ग में गहराई सरे उतरतरे हैं और इसमें उनका सहयोग भारत विरोधी विदरेशी शषकतयां करती हैं । डॉकटर अंबरेडकर के जनम सरे पहलरे एक प्रोफेसर एम ए शरेरिंग जो एक मिशनरी था , जिसनरे सन 1872 में एक ‘ हिनदू कासट एनड ट्राइबस ’ नामक पुसतक लिखी , जो दलितों की एक चमार जाति को ततकालीन समय सरे मिशनरी के निशानरे पर सपष्ट रुप सरे प्रदर्शित करनरे के लिए पर्यापत है । इसी प्रकार
मिलकर रहनरे एवं उसी में समाधान निकालनरे की सोच रखतरे हैं । यह वह लोग हैं , जो अलगाव में नहीं अपितु जुड़ाव के माधयम सरे दलित कलयाण की बात करतरे हैं । वह समरसता की बातें करतरे हैं । वह किलरे में घुसकर लड़नरे की योजना में रहतें हैं । उनकी सोच है कि किसी के पास महल एवं किलरे रहें , किंतु कोई वयषकत छत विहीन न रहरे । किसी को सममान मिलता है तो मिलरे किंतु हमें यानी दलितों को अपमान ना मिलरे । किसी को छपपन प्रकार के वयंजन मिलरे
प्राचीन या वैदिक कालीन शूद्र नहीं हैं एवं उनका शूद्रों सरे कोई लरेना दरेना नहीं हैं । पर गौर करनरे लायक बात यह है कि डॉ अआंबरेडकर और उनके विचारों को गंभीरता सरे न जाननरे वालरे लोग ही खुद को अम्बेडकराइजड कहतरे हैं परनतु न तो उनहें कभी पढ़तरे हैं और न ही जाननरे की कोशिश करतरे हैं । सिर्फ इधर-उधर सरे सुनकर वह काम और दुकान चलनरे में जुटे हैं ।
अब अगर बात दूसररे तरह के कथित दलित चिंतकों की जाए तो दूसररे प्रकार के वह लोग हैं जो वयषकतगत लाभ के लिए दलित मुद्ों को
सन 1920 में डबलू एस तवग्स नरे ' दी चमार्स ' नामक पुसतक में चमार जाति को ईसाई बननरे के लिए लिए प्ररेरित किया और यह सिलसिला कमोवरेश आज भी जारी है । कहना गलत नहीं होगा कि दलित वर्ग सरे जुडी चमार जाति लगभग 150 वषषों सरे राष्ट्र विरोधी शषकतयों के राडार पर हैं और इसी सोच के दायररे और इनही पुसतकों के विषयवसतु में लिपट कर यह चिंतक दलित कलयाण की बात करतरे हैं ।
अब अगर इसी तरह तीसररे प्रकार लोगों की बात की जाए तो यह वह लोग हैं जो एक साथ
किंतु कोई भूखा ना सोए । ऐसरे विचारों के साथ दलित वर्ग की वह लड़ाई लड़ रहरे हैं । पर ऐसरे लोगों की संखया बहुत कम है ।
इस तरह दरेखा जाए तो बहुतायत संखया में दलित कलयाण की बात करनरे वालरे सिर्फ और सिर्फ वही लोग हैं , जिनकी रूचि दलित कलयाण में नहीं हैं और वह सभी दलित समसया को भयावह रूप में परेश करके कभी तथाकथित दलित-मुषसलम एकता की बात करतरे है तो कभी दलितों को बौद्ध बननरे की सलाह दरेतरे है । यह सब वही लोग है , जो वामपंथियों और हिनदू
fnlacj 2022 29