Dec 2022_DA-1 | Page 28

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दलितों के नाम पर अपनी रोटियां सेकने में जुटे हैं अधिकतर दलित चिंतक ns

श में पिछलरे कई सालों सरे दलित कलयाण के नाम पर सैकड़ों संसिाएं सतक्य है , तो न जानरे कितनरे लरेखक दलित समसया और दलित कलयाण के नाम पर अपनी-अपनी दुकान चला रहरे हैं । दलित कलयाण और दलित समसया को समापत करनरे के लिए जिस तथाकथित दलित आंदोलन की बात की जाती है , उस दलित
आंदोलन के पररप्ररेक्य में दलित विषयक साहितय , दलित विषयक साहितयकार एवं चिंतक , जनप्रतिनिधि एवं नरेता और दलित चौधरी , सरदारों इतयातद का अगर वासतव में अधययन किया जाए , तो मुखय रूप सरे तीन बिंदु निकल कर सामनरे आतरे हैं । इन तीन बिनदुओं के आधार पर दरेखा जाए तो दलित कलयाण और आंदोलन की बात करनरे वालरे लोगों में सरे सत्र प्रतिशत लोगों की मानसिकता किसी न किसी प्रकार दलित समाज को हिंदू समाज सरे अलग-थलग करनरे की होती है । जबकि 30 प्रतिशत लोग इस क्रेत् में वयषकतगत हित और सव के वर्चसव सिातपत करनरे की भावना सरे कटुता और घृणा उतपन्न करनरे वाली नीतियों का प्रतिपादन करतरे एवं उनही नीतियों का अनुपालन की राह पर अग्सर होतरे है । इसके अलावा पाँच प्रतिशत ऐसरे
लोग होतरे हैं जो वासतव में दरेश की सभयता और संस्कृति के दायररे में दलित समाज के वासततवक समसयाओं का समाधान ढूंढनरे में अपनरे आप को लगायरे रखतरे हैं ।
दलित कलयाण की बात करनरे वालरे इन तीन तरह के लोगों में पहलरे प्रकार के दलित नरेता कट्टर हिंदू विरोधी मानसिकता के होतरे हैं और उनकी अपनी अवधारणा का आधार दलित विषयक समझ सरे बहुत दूर यानी केवल प्रतततक्यातमक होता है । यह वह लोग भी हैं , जिनहें किसी भी बात का को बढ़ा चढ़ाकर कहनरे की आदत होती है । वह सवयंभू नरेता हजार सरे लरेकर पाँच हजार वर्ष के दौरान कथित रूप सरे होनरे वालरे दलित उतपीड़न की बातें करतरे हैं । सच यह भी है कि अवधारणातमक आधार पर ऐसरे लोग या लरेखक आज तक दलित और शूद्र
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