Dec 2022_DA-1 | Page 27

नष्ट कररेगा ही , साथ ही उससरे दलित वर्ग का भी रंचमात् हित नहीं होगा ।
आप मुझरे यह कहनरे की अनुमति देंगरे कि भलरे ही आप कितनी भी सहानुभूति रखतरे हों पर आप संबद्ध पक्ों के लिए ऐसरे अति महतवपूर्ण तथा धार्मिक महतव के मामलरे पर कोई ठीक निर्णय नहीं लरे सकतरे । सपष्ट है कि गांधी के लिए दलितों का हित दूसररे सिान पर था , उनकी पहली प्राथमिकता थी हिंदू धर्म को तथाकथित सर्वनाश सरे बचाना जबकि आंबरेडकर अपना पहला दायितव दलितों का कलयाण और उतिान चाहतरे िरे । उनहें हिंदू धर्म की वर्ण . वयवसिा को खतम करना था जोकि सामाजिक असमानता का मूल कारण है । आंबरेडकर हिंदू जाति . वयवसिा द्ारा दलितों पर लादरे अलगाव को और तदजनय हीन भावना सरे दलितों को छुटकारा दिलवानरे का एक मात् रासता धर्म परिवर्तन को पातरे िरे बशततें कि अपनाया जानरे वाला नया धर्म दलितों के साथ हिंदू धर्म में जारी तमाम प्रकार के बहिष्कार , बरेरूखी और पूवा्तग्हों सरे मुकत हो । पुरूष सत्ातमक समाज नरे सबसरे जयादा कठोरए उतपीड़नकारी , शोषणकारी और अनयायपूर्ण रहा है कयोंकि यह नारी को सभी मूलभूत अधिकारों सरे वंचित कर उसरे नारकीय जीवन जीनरे पर
मजबूर करता है जबकि आयषों के समाज में सत्ी और शूद्रों को एक ही षसिति में रखा जाता था । शिक्ा के अधिकार सरे भी उनहें वंचित रखा जाता था । परिवर्तनवादी समाज वयवसिा के प्रणरेता डॉ आंबरेडकर नरे दरेश का क़ानून मंत्ी रहतरे हुए सत्ी शिक्ा और समान अधिकार को समाज में सिातपत करनरे के लिए विधिवत हर संभव प्रयास किया । वरे नारी शिक्ा , सवतंत्ता , समानता तथा अषसमता के प्रबल समर्थक िरे । जयोतिबा फुलरे की ही तरह इनहोंनरे सबसरे अधिक जोर सत्ी शिक्ा पर दिया कयोंकि शिक्ा ही वह रासता है जिससरे होकर अपनरे अधिकारों को पाया जा सकता है और पितृ सत्ातमक वयवसिा तथा संसिा सरे मुषकत भी पाया जा सकता है । सत्ी की दशा ही किसी दरेश की दशा , प्रगति और उन्नति निर्धारित करती है । अतः डॉ आंबरेडकर का मानना था कि शिक्ा ही प्रगति और उन्नति का मार्ग खोल सकती है , शिक्ा ही सामाजिक क्ाषनत का पहला कदम है । सवतंत्ता प्राषपत के समय भी षसत्यों की दशा काफी दयनीय थी । संपतत् में उनका कोई अधिकार नहीं था । बहुपत्ी विवाह षसत्यों को नारकीय जीवन जीनरे पर बाधय करता था । पति द्ारा परितयाग कर दिए जानरे पर उसके गुजर . बसर का कोई साधन न होता था । डॉ आंबरेडकर भारतीय षसत्यों की सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक षसिति में परिवर्तन चाहतरे िरे । वो एक ऐसा क़ानून बनाना चाहतरे िरे जो षसत्यों की सामाजिक , आर्थिक और कानूनी षसिति में आमूलचूल परिवर्तन कर सके । इसलिए उनहोंनरे षसत्यों के अधिकार के लिए हिनदू कोड बिल बनाया जिसके कारण कई बार उनहें वयषकतगत रूप सरे अपमानित भी होना पड़ा ।
षसत्यों की प्रगति के लिए उठाए गए इस कदम को विरोधों का सामना करना पडा । इस बिल में आठ अधिनियम बनाए गए िरे जो इस प्रकार हैं- हिनदू विवाह अधिनियम , विशरेष विवाह अधिनियम , गोद लरेना दत्क ग्हण अलपायु संरक्ता अधिनियम , निर्बल तथा साधनहीन परिवार के भरण . पोषण अधिनियम , हिनदू उत्राधिकारी अधिनियम , अप्रापत वयय संरक्ण समबनधी अधिनियम , उत्राधिकारी अधिनियम
और विधवा विवाह को पुनर्विवाह अधिनियम , पिता की संपतत् में अधिकार अधिनियम । संविधान नरे षसत्यों को हर वो अधिकार दिया जिससरे वह वंचित थी । पुरूष प्रधान भारतीय समाज पर आघात करतरे हुए यह बिल भारतीय महिलाओं को पुरूषों के बराबार कानूनी और सामाजिक अधिकार के मांग पर आधारित था । हिनदू कोड बिल के तहत किसी भी जाति की लड़की या लड़के का विवाह होना अवैध नहीं था । इस कोड के अनुसार पति और पत्ी एक समय में एक ही विवाह कर सकतरे है । कोई भी पति पहली पत्ी के और कोई भी पत्ी पहलरे पति के रहतरे दूसरा विवाह अगर कररे तो दंडनीय अपराध माना जाएगाए पति के गुजर जानरे पर पत्ी को उसकी संपतत् में संतान के बराबर हिससा मिलरेगाए पिता की संपतत् में पुतत्यों को भी पुत्ों के समान अधिकार दिया जाएगा ।
विधवाओं के लिए दूसररे विवाह का प्रावधान , पति के अतयाचार सरे पीड़ित पत्ी के लिए तलाक का प्रावधान और तलाक दरेनरे की षसिति में पति को पत्ी के गुजारा भत्ा दरेनरे का प्रावधान , महिलाओं को बच्चरे न होनरे पर अपनी मजटी सरे बच्चा गोद लरेनरे का प्रावधान इतयातद परनतु दुर्भागयवश कुछ कट्टरपंथियों के कारण यह बिल संसद में पारित न हो सका और डॉ आंबरेडकर नरे क़ानून मंत्ी के पद सरे इसतीरा दरे दिया । वर्तमान समय में महिलाओं को पुरूषों के समान जो शैक्तणक , आर्थिक , सामाजिक और समसत अधिकार प्रापत हैं , इसका श्रेय हिनदू कोड बिल को जाता है कयोंकि बाद में हिनदू कोड बिल कई हिससों में बंटकर संसद में धीररे . धीररे पारित होनरे लगा । इस बिल के कई प्रावधानों को संसद में दूसरी सरकारों नरे पास कराकर अपना वोट बैंक बनाया । सदियों सरे जिस अधिकार सरे षसत्यां अछूती थीं , उससरे संविधान नरे ही अवगत कराया । नारी सवतंत्ताए अषसमता और सममान के लिए बाबा साहरेब आंबरेडकर नरे संविधान में कई प्रावधानों को सुतनषशचत किया । डॉ आंबरेडकर की ही दरेन है कि भारतीय क़ानून का प्रारूप बदला और उसमें मानवीयता प्रसार हो पाया । �
fnlacj 2022 27