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के मसीहा नहीं हैं । बाबा साहब का संपूर्ण जीवन गरीबों तथा भारतीय समाज विशरेषकर हाशिए में जी रहरे शोषित वर्ग , सत्ी , अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग के उतिान , कलयाण और विकास के लिए समर्पित था । डॉ आंबरेडकर की सामाजिक और राजनैतिक सुधार की विरासत का आधुनिक भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा । बाबा साहब नरे जीवन के विभिन्न क्षेत्ों में आज भारत की सोच को प्रभावित किया है । उनकी सोच आज की सामाजिक , आर्थिक नीतियों , शिक्ा , कानून तथा सकारातमक कार्यवाही के माधयम सरे प्रदर्शित होती है । भारत के भावी भविष्य के लिए शासन . प्रणाली व संविधान के बाररे में रूप . ररेखा तय करनरे के उद्देशय सरे अंग्रेजों नरे साइमन कमीशन की सिफारिश पर गोलमरेज सम्मेलन आयोजित किया । यह सम्मेलन लंदन में 12 नवंबर 1930 को शुरू हुआ । इस सम्मेलन सरे तरिटिश सरकार और भारतवासियों के 89 प्रतिनिधियों नरे भाग लिया । डॉ आंबरेडकर नरे इसमें अछूत लोगों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया ।
यह एक ऐसा समागम था , जिसमें मुखय विषयों पर अपनरे विचार प्रकट करनरे िरे और वरे नोट किए जानरे िरे । डॉ आंबरेडकर नरे अपनी प्रभावशाली आवाज सरे अपनरे भाषण के शुरू में ही कहा कि वह तरिटिश भारत की जनसंखया के पांचवें भाग का , जोकि इंगलैणड या आयरलैणड और सकॉटलैणड की जनसंखया सरे भी अधिक है , दृष्टिकोण प्रसतुत का रहरे हैं । इन लोगों की दशा पशुओं सरे भी गई . गुजरी है । इंगलैणड के समाचार पत्ों पर भी डॉ आंबरेडकर के भाषण का बहुत प्रभाव पड़ा । उस भाषण का प्रभाव ततकालीन तरिटिश प्रधानमंत्ी मिसटर रैमजरे मैकडोनालड पर भी अचछा पड़ा । अब समाचार पत्ों और राजनीतिज्ञों नरे दलित वर्ग और डॉ आंबरेडकर की ओर अधिक धयान दरेना शुरू कर दिया । डॉ आंबरेडकर नरे इस गोलमरेज कॉनफ्ेंस की अवधि के दौरान लनदन में रहतरे हुए मौके का भरपूर सदुपयोग किया ।
उनहोंनरे समाचार पत्ों को लरेख भरेजरे , सभाएं की व प्रमुख तरिटिश नरेताओं सरे मिलरे । बाबा
साहब के कठोर पररश्म का फल यह निकला कि समसत विशव को ज्ञात हुआ कि भारत के अछूतों की दशा वासतव में बहुत चिंतनीय है । कई अंग्रेज नरेताओं का ह्रदय भी पिघल गया । लॉर्ड सेंकी नरे वायदा किया कि दलित वगषों को भारत के अनय निवासियों के समान रखा जाएगा । डॉ आंबरेडकर नरे मांग की कि दलित वगषों को दूसररे नागरिकों के समान नागरिक अधिकार दिए जाएं और कानून में प्रत्येक प्रकार का भरेदभाव व उच्च . नीच एकदम समापत किए जाएं । दलित वगवो को विधानसभाओं में अपनरे प्रतिनिधि अपनरे लोगों द्ारा सवयं चुननरे की छूट हो और दलित वगषों को सरकारी नौकरियों में पूर्ण प्रतिनिधितव दिया जाए और कर्मचारियों की भतटी और नियंत्ण के लिए सार्वजनिक सरेवा आयोग सिातपत किए जाएं । गोलमरेज सम्मेलन मरे डॉ आंबरेडकर नरे जो भाषण दिए व अपनी मांगें रखीं , भारत में उनकी प्रतततक्या होनरे लगी । इसके पशचात् ही सरकार नरे पुलिस विभाग में दलित वगषों के लिए भतटी खोल दी ।
दलितों के धमायंतरण को लरेकर आंबरेडकर और गांधीजी के बीच तो तीखा मतभरेद था । उसके मूल में थी इन दोनों महापुरूषों की अपनी . अपनी प्राथमिक प्रतिबद्धताओं की पारसपरिक
टकराहट । गांधी हिंदू धर्म में रहकर जातिगत भरेदभाव मिटाना चाहतरे िरे पर वर्ण . वयवसिा खतम नहीं करना चाहतरे िरे । वरे जाति . वयवसिा को पारंपरिक वयवसिा और कार्य पद्धति सरे जोड़ कर दरेखतरे िरे । गांधी चाहरे सवयं को संपूर्ण भारत का प्रतिनिधि कहतरे िरे किंतु आंबरेडकर उनहें दलितों का प्रतिनिधि माननरे के लिए तैयार नहीं िरे । वरे उनहें शंकराचार्य के बाद दूसरा सबसरे बड़ा हिंदू हित रक्क बतातरे िरे । और आगरे चलकर दलितों के पृथक निर्वाचन क्षेत्ों के मुद्दे पर आंबरेडकर ही सही साबित हुए कयोंकि गांधी जी अछूतों को किसी भी कीमत पर भी हिंदू धर्म में पृथक निर्वाचन क्षेत्ों के रूप में किसी प्रकार का विभाजन नहीं दरेख सकतरे िरे । दलितों के लिए अंग्रेज सरकार द्ारा प्रसतातवत पृथक निर्वाचन क्षेत्ों के खिलाफ तरिटिश प्रधानमंत्ी को आमरण अनशन के अपनी निर्णयगत अडिगता की सूचना दरेतरे हुए गांधीजी कठोर चरेतावनी दरेतरे हैं कि आप बाहर के आदमी हैं , अतः हिंदुओं में फूट डालनरे वालरे ऐसरे किसी भी मसलरे में कोई हसतक्षेप न करें । दलित वगषों के लिए यदि किसी पृथक निर्वाचन मंडल का गठन किया जाना है तो वह मुझरे ज़हर का ऐसा इंजरेकशकन दिख पड़ता है , जो हिंदू धर्म को तो
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