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उनके पिता धार्मिक और अनुशासन प्रिय वयषकत थें । दैनिक उपासना करतरे िरे । पिता रामजी सकपाल का यह प्रभाव बालक भीम पर भी पड़ा । रामजी सकपाल पहलरे रामानंदी वैष्णव िरे , बाद में कबीर पंथी हो गए । आंबरेडकर नरे जीवन में सवयं को कबीर की तरह एक विद्रोही नायक के रूप में पाया । इसका प्रमाण जाननरे के लिए हमें उनके द्ारा दिए गए मई 1956 के भाषण को पढ़ना चाहिए । अछूत परिवारों में वर्ण . वयवसिा की पोल खोलनरे वालरे कबीर सरे बड़ा नायक कौन हो सकता है ? सन् 1907 में जब तरुण भीमराव नरे मैट्रिक की परीक्ा पास की तब यह किसी अछूत समुदाय सरे आनरे वालरे युवक के लियरे यह बहुत बड़ी उपलषबध थी ।
उस मौके पर मराठी लरेखक और समाज सुधारक दादा ककृष्णाजी नरे भीम राव के पुसतक
प्ररेम को दरेखतरे हुए उनहें गौतम बुद्ध पर आधारित मराठी पुसतक गौतम बुद्ध का जीवन की प्रति भेंट की । निसंदरेह युवा आंबरेडकर पर बुद्ध का गहरा प्रभाव पड़ा । उनहोंनरे पाली की किताबें उनहीं दिनों पढ़ डाली थीं । उन दिनों बौद्ध धर्म सामाजिक अधिक था धार्मिक कम । डॉ आंबरेडकर कबीर , रैदास , दादू , नानक , चोखामरेला , सहजोबाई आदि सरे प्ररेरित हुए । आधुनिक युग में जयोतिबा फुलरे , सावित्ी बाई फुलरे , रामासवामी नायकर परेरियार , नारायण गुरु , छ्त्पति शाहूजी महाराज , गोविनद रानाडे आदि नरे सामाजिक नयाय को मजबूती के साथ सिातपत करनरे में महतवपूर्ण भूमिका निभाई । डॉ आंबरेडकर नरे कबीर और जयोतिबा फुलरे को अपना गुरु बताया और अपनी सुप्रसिद्ध पुसतक " हू वरेयर दी शुद्राज " फुलरे जी को समर्पित किया । अपनरे
समर्पण में 10 अकटूवर 1946 को डॉ आंबरेडकर में लिखा है कि जिनहोंनरे हिनदू समाज की छोटी जातियों सरे लरेकर उच्च वणषों के प्रति उनकी गुलामी की भावना के समबनध में जागृत किया । विदरेशी शासन सरे मुषकत पानरे में सामाजिक लोकतंत् की सिापना अधिक महतवपूर्ण है । इस सिद्धांत की सिापना उस आधुनिक भारत के महान राष्ट्रपिता जयोतिराव फुलरे नरे की । डॉ आंबरेडकर यह मानतरे िरे कि फुलरे के जीवन दर्शन सरे प्ररेरणा लरेकर ही वंचित समाज मुषकत पा सकता है ।
डॉ आंबरेडकर नरे विभिन्न दरेशों के संविधान का अधययन करनरे के बाद लोकतंत् की मजबूती के लिए एक ऐसरे संविधान का निर्माण कियाए जिसमें समाज के सभी लोगों को अधिकार दिए गए । वरे केवल दलितों , आदिवासियों या पिछड़ों
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