Dec 2022_DA-1 | Page 18

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कोंड , कोरिया , कोया , कूलिया , गोंड , गौड़ , जातपू , थोटी , धूलिया , नककला , नायकपोड , परधान , पोरजा , भगता , भील , मलिस , मन्नदोरा , मूकदोरा , यानादि , यरेरूकला , रेड्डिदोरा , रैना , बालमीतक , सवरा , सुगांली ( बंजारा / लंबाडा ) कुरूंबा , बडागा , टोडा , काडर , मलायन , मुशुवन , उदाली , कनिककर , बोडो गऊबा , गुडोब गऊबा , चरेनदू , पूर्जा , डोंगरिया , खोंड , चोलानायकन , कादर , कट्टाउनायकन , इरूला , पजियन आदि निवास करतरे हैं ।
इन आदिवासी समुदायों का मुखय वयवसाय ककृतष , खाद् संग्हण तथा मछली पालन रहा ह । जल , जंगल तथा जमीन पर अततक्मण होनरे सरे इन आदिवासी लोगों के जीवन-यापन का प्रमुख सहारा छिननरे लगा है । आदिम जनजातियों की दशा की समीक्ा के लिए भारत सरकार नरे सन् 1969 में योजना आयोग के अनतग्तत " शीलु आव समिति " गठित की , जिसनरे अपनरे तनष्कषषों में यह पाया कि जनजातीय समाज के अधिकांश लोग अतयतधक पिछड़े हुए हैं और इनमें सरे कुछ तो अभी भी आदिकालीन अन्न संचय युग में जी रहरे हैं । इस समिति नरे इन समुदायों पर विशरेष धयान दरेनरे की आवशयकता पर बल दिया । बाद में सन् 2006 में वनातश्त समुदाय के अधिकारों को मानयता दरेनरे के लिए " अनुसूचित जनजाति एवं अनय परमपरागत निवासी ( वनाधिकारों को मानयता ) कानून " बनाया गया । यह कानून दरेश के जंगलों को बचानरे तथा वनवासी आदिवासियों
को वनाधिकार प्रदान करनरे की दृष्टि सरे अतयतधक महतवपूर्ण है ।
इससरे पहलरे सवतंत्ता मिलनरे सरे पूर्व अनरेक राजनीतिक चिनतकों एवं समाज सुधारकों का धयान आदिवासियों की दयनीय दशा की ओर गया था , किनतु पराधीन होनरे के कारण उनहें आदिवासियसों के कलयाण में कोई राजकीय सहायता प्रापत न हो सकी । अंग्रेज़ों नरे उनहें एकाकी और असहाय इसलियरे छोड़ दिया था कयोंकि वह यह समझतरे िरे कि इन जंगली इलाकों का प्रशासन संभालना उनके लिए मुषशकल कार्य है और अंग्रेज़ों के विरूद्ध युद्ध की शुरूआत करनरे वालरे आदिवासियों के प्रति उनके मन में सहानुभूति भी नहीं थी ।
सवतंत्ता मिलतरे ही प्रथम प्रधानमंत्ी पषणडत जवाहर लाल नरेहरू नरे आह्ान किया कि आदिवासी जीवन एवं संस्कृति को पूर्णतः सममान दिया जाना चाहिए तथा आदिवासी भाइयों के साथ प्ररेमपूर्ण वयवहार किया जाना चाहिए । वह चाहतरे िरे कि आदिवासी नागरिक भी सामानय भारतीयों की तरह आधुनिक जीवन शैली तथा उपलबध सुविधाओं का इस प्रकार उपभोग करें कि उनके परमपरागत जीवन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े । उनहोंनरे आदिवासी भाषाओं एवं बोलियों के संरक्ण पर बल दिया तथा आदिवासी जमीन एवं जंगलों के संरक्ण की अपील की ।
जब किसी जाति , समाज या समुदाय पर शासकीय उपरेक्ा , शोषण और अतयाचार का दंश
झरेलना पड़ता है । तब कुछ लोग हमददटी का नाटक कर अपना उललू सीध करनरे हरेतु ऐसरे लोगों के बीच पहुंच जातरे हैं । सवतंत्ता मिलतरे ही तक्षशचयन मिशनरी ऐसरे इलाकों में सरेवा के नाम पर धर्मानतरण का खरेल-खरेलनरे में लग गए हैं और अभी पिछलरे कुछ वषषों सरे खाड़ी दरेशों के मुषसलम नरेताओं नरे इसी लक्य को धयान में रखतरे हुए इन इलाकों में धर्मानतरण हरेतु धन उपलबध कराना शुरू कर दिया है । उत्र-पूवटी क्रेत् के आदिवासी इलाकों में विशरेषकर खासी , लुशाइक तथा नागा समूहों में ईसाइयों नरे भारत संखया में धर्मानतरण किए हैं । ऐसरे धर्मानतरण प्रायः बलपूर्वक या बहला-फुसलाकर किए जातरे रहरे हैं । आदिवासी इलाकों की दूसरी बड़ी समसया उनका हथियार उठाना है । शोषण एवं विसिापन सरे त्सत उत्र पूवटी तथा मधय क्रेत् के आदिवासियों नरे सरकार के विरूद्ध सशसत् संघर्ष छेड़ दिया है तथा वह नकसलवादियों के रूप में केंद्र सरकार के समक् कानून वयवसिा की चुनौतियां खड़ी करतरे रहतरे हैं । इसलिए अब यह बाहर जरुरी हो गया कि वर्तमान की आवशयकता के अनुरूप आदिवासियों के जीवन-यापन के अधिकारों का संरक्ण किया जाए , उनहें उनकी परमपराओं के साथ आधुनिकता का समनवय करनरे हरेतु पर्यापत अवसर उपलबध कराए जायें तथा उनहें समाज और विकास की मुखय धारा सरे जोड़ा जाए , तभी आदिवासियों के समपूण्त विकास के सपनरे को साकार किया जा सकेगा । �
18 fnlacj 2022