Dec 2022_DA-1 | Page 10

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चरेमसरोर्ड योजना का तीव्र विरोध किया । अंग्रेजों का साइमन कमीशन , रिफार्म ऐकट में सुधार के लिए भारत आया , तो हिंदू महासभा नरे भी कांग्रेस के कहनरे पर इसका बहिष्कार किया । लाहौर में हिंदू महासभा के अधयक् लाला लाजपत राय सवयंसरेवकों के साथ कमीशन के बहिष्कार के लिए एकत् हुए । पुलिस नरे वहां पर लाठीचार्ज किया , जिससरे लाला लाजपत राय की मौत हो गई । 1937 में जब वीर सावरकर रत्ातगरि की
नजरबंदी सरे मुकत होकर आए तो वह हिनदू महासभा के अधयक् नियुकत कियरे गए । वीर सावरकर नरे अपनरे प्रथम अधयक्ीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस दरेश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपनरे दरेश की सवतंत्ता उसी प्रकार प्रापत कर सकतरे हैं , जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों नरे शकों , ग्ीकों , हूणों , मुगलों , तुकषों और पठानों को परासत करके की थी । उनहोंनरे घोषणा की थी कि हिमालय सरे कनयाकुमारी और अटक सरे क़टक तक रहनरेवालरे वह सभी धर्म , संप्रदाय , प्रांत एवं क्रेत् के लोग जो भारत भूमि को पुणयभूमि तथा पितृभूमि मानतरे
हैं , खानपान , मतमतांतर , रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं कयोंकि उनकी संस्कृति , परंपरा , इतिहास और तमत् और शत्ु भी एक हैं - उनमें कोई विदरेशीयता की भावना नहीं है ।
वीर सावरकर को हिनदू महासभा का अधयक् नियुकत करनरे वालरे डॉ मुंजरे के आग्ह पर डॉ आंबरेडकर हिनदू महासभा के वकील बनरे और डॉ आंबरेडकर नरे हिनदू महासभा की लगातार
पैरवी की । यहां पर धयान दरेनरे लायक बिंदु यह भी है कि एक तरह जहां डॉ आंबरेडकर हिनदू महासभा के वकील के रूप में कार्य करतरे रहरे और वीर सावरकर द्ारा दलित हितों को लरेकर चलायरे गए तमाम काय्तक्मों एवं आंदोलन में डॉ आंबरेडकर सवयं सहभागी बनरे , वहीं भारत के गलत इतिहास को रचनरे वालरे वामपंथी लरेखकों नरे डॉ आंबरेडकर को हिनदू विरोधी बना कर इस तरह सरे प्रसतुत किया , जिससरे आम जनता को ऐसा प्रतीत होनरे लगा कि डॉ आंबरेडकर दलित हितों के लिए हिनदू धर्म के विरोधी िरे । यह तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों एवं
लरेखकों की एक चाल थी जिसके माधयम सरे वह दलित समाज को धर्म परिवर्तन के लिए उकसातरे रहरे । यह सिलसिला आज भी जारी है और राहुल गांधी उनहीं वामपंथियों के एक हथियार के रूप में आज भी काम कर रहरे हैं । डॉ . मुंजे और डॉ . हेडगेवार
राष्ट्रीय सवयंसरेवक संघ की सिापना केशव बलिराम हरेडगरेवार नरे 1925 में की थी । आम जनता को यह जानकारी ही नहीं है कि डॉ मुंजरे का राष्ट्रीय सवयंसरेवक संघ की सिापना में बहुत योगदान था । डॉ मुंजरे संघ के संसिापक केशव बलिराम हरेडगरेवार के राजनीतिक गुरु िरे । प्रश्न यह है कि आखिर डॉ मुंजरे को राष्ट्रीय सवयं सरेवक संघ के गठन की प्ररेरणा कैसरे मिली ? उत्र बहुत सपष्ट है । डॉ मुंजरे को यह प्ररेरणा इटली के विखयात राष्ट्रवादी नरेता बरेतनतो मुसोलिनी सरे मिली थी , जिनको वामपंथी लरेखकों नरे एक फासीवादी नरेता के रूप में प्रचारित करनरे में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी । वासतव में मुसोलिनी एक राष्ट्रवादी नरेता िरे , जो अपनरे दरेश की जनता को विदरेशी साजिश सरे मुकत रखना चाहतरे िरे । ततकालीन समय में इटली को विदरेशी शषकतयां अपना गुलाम बनानरे की कोशिश में जुटी हुई थी , जिसका मुसोलिनी नरे अपनी पुरजोर ताकत सरे विरोध किया । इसीलिए बाद में उनकी हतया करवा दी गयी थी । और फिर वामपंथियों नरे फांसीवाद को इस तरह सरे प्रचारित किया , जिससरे उसका मूल अर्थ ही गुम हो गया । वासतव में फांसीवाद का अर्थ प्रखर राष्ट्रवाद ही था । लरेतकन इसके अर्थ को बदल कर वामपंथियों नरे अपनरे हितों को सुरतक्त करनरे का कार्य किया । ततकालीन समय में डॉ हरेडगरेवार कांग्रेस के लिए काम कर रहरे िरे , लरेतकन कांग्रेस नरेताओं की चाल , चररत् और चरेहररे की असलियत समझनरे के बाद डॉ हरेडगरेवार नरे कांग्रेस को छोड़ दिया और फिर 1925 में राष्ट्रीय सवयं सरेवक संघ की सिापना की थी । डॉ हरेडगरेवार नरे 27 सितंबर , 1925 को राष्ट्रीय सवयंसरेवक संघ की सिापना की थी । हिंदू राष्ट्र की परिकलपना को साकार करनरे के लिए उनहोंनरे 1925 में
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