Photo courtesy of Somenath Rudra
हिन्दी की दुर्दशा
कहते है उम्मीद पर दुनिया टिकी है, राखी जी कहती है मेरे करण – अर्जुन आएंगे, माँ कहती है इस बार मेरा बेटा अच्छे नंबरो से पास हो जाएगा। सच में ! क्या होगा माँ का सपना सच ? क्या लगेगी इस बार लाटरी के. बी. सी. की ? क्या होगी हिन्दी हमारी भाषाओं की तिलक (सर्वश्रेष्ठ) ? – भगवान ही जाने। हम हिन्दी भाषी भी जान सकते है ..... । भगवान ही जाने क्या कभी किसी को ताज नसीब होगा भी की नहीं ? पर हाँ, कोशिश जारी है, कोशिश जारी है हर उस बुझती साँस की अंतिम कोशिश तक जिसकी पहचान है हिन्दी भाषी हिंदुस्तानी की ।
जो सम्मान हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप मे मिलना चाहिए, उसकी उम्मीद लिए आज हर हिन्दी भाषी कहता है कि हिन्दी ही हमारी राष्ट्र भाषा है। यह हिन्दी की विडम्बना ही है कि विश्व की प्रथम श्रेणी की बोली और समझी जाने वाली भाषा को आज उसी के देश मे हीन भाव से देखा जाता है और विदेशी भाषा के उच्चारण मात्र से ही वाह - वाही लूट ली जाती है, आज उसे ही अधिक समृद्ध माना जाता है जो अधिक विदेशी भाषा बोलता है। पर यह नहीं भूलना चाहिय की चीनी भाषा चीन देश की मुख्य भाषा और राजभाषा है। यह संसार में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह चीन एवं पूर्वी एशिया के कुछ देशों में बोली जाती है। जब चीन अपनी भाषा के द्वारा समृद्ध हो सकता है, नाज कर सकता है तो हम क्यों विदेशी भाषा को इतना मोल दे रहे है। विश्व मे आज तक जो भी परिवर्तन, जो भी कुछ नया हुआ (अधिकतर) है उसके पीछे वहा की मातृ भाषा का ही सहयोग रहा है। मातृ भाषा जो ऊर्जा प्रदान कर सकती है वह कोई विदेशी भाषा नहीं कर सकती। भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने लिखा भी - ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।‘ दरअसल हमारी कमजोरी अपनों मे ही है हम आपस मे एक जुट नहीं है और इतिहास गवाह है कि विश्व के भू-पटल पर जो एक जुट नहीं रह सका है वह कभी न कभी दुसरो का गुलाम हो के रहा है चाहे वह गुलामी भूमिगत हो या फिर भाषागत ही क्यो ना हो, है तो आखिर गुलामी ही । और अगर हमे गुलामी पसंद है तो फिर क्या हर्ज है। गुलामी का अनुभव तो है हि हमारे पूर्वजो के पास, अब हम भी गुलामी का मजा चख ले तो क्या हर्ज है। हिन्दी दिवस के पावन अवसर पर हम चंद कार्यक्रम अवश्य मना लेते है पर हिन्दी के भविष्य के बारे मे दो - एक संकल्प तक नहीं ले पाते है। यहाँ तक कि हम अपना वक्तव्य भी विदेशी शब्दों का सहारा लेकर पेश कर देते है। पर यह गलती आप की नहीं हम सभी की है । हम आज इतना कमजोर होते जा रहे है कि अपनी भाषा को ही तोड़ते – मरोड़ते जा रहे हैं । दुनिया मे अनेक ऐसे परिवर्तन हुए है जिनकी किसी ने कल्पना तक नहीं की, तो क्या हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती ? बन सकती है और है भी क्योंकि हम हिन्दी भाषी मानते है – ‘हिन्दी हैं हम, वतन है, हिंदोस्ता हमारा, जय हिन्द ।