Basant 10 Feb 3013 | Page 7

Dk Nagaich Roshan

अतिथि रचना के अंतर्गत.. शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1

************************************

जब चाँद गगन पर उतरे तो, तुम प्रीत जगाने आ जाना,

जब गूँज उठें सन्नाटे तो, तुम गीत सुनाने आ जाना,

बिन नीर तड़पती मछली सा, जीवन, मरुधर सा तपता है,

तुम कल कल बहती झरने सी, ये प्यास बुझाने आ जाना..

इन नैनों की मादकता से, मदमस्त अगर हो जाऊं तो,

तब थाम मुझे तुम बाहों में, सीने से लगाने आ जाना,

ये प्रीत पुरातन सदियों की, कब टूट सकी है तोड़े से,

तुम तोड़ ज़माने के बंधन, ये रीत निभाने आ जाना.

न्योछावर जीवन प्रीतम पर, संताप नहीं है अब कोई,

अनमोल धरोहर, यादों से, अमृत बरसाने आ जाना.

तुम दूर सही तन से मेरे, पर दूर नहीं मन से इक पल,

जब प्राण तजे ये तन मेरा, तब दर्श दिखाने आ जाना .

अब पुष्प खिले कुछ उपवन में रुत आज बसंती हो जाए,

तुम रोशन कर इस पतझड़ को फिर से महकाने आ जाना.