Dk Nagaich Roshan
अतिथि रचना के अंतर्गत.. शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1
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जब चाँद गगन पर उतरे तो, तुम प्रीत जगाने आ जाना,
जब गूँज उठें सन्नाटे तो, तुम गीत सुनाने आ जाना,
बिन नीर तड़पती मछली सा, जीवन, मरुधर सा तपता है,
तुम कल कल बहती झरने सी, ये प्यास बुझाने आ जाना..
इन नैनों की मादकता से, मदमस्त अगर हो जाऊं तो,
तब थाम मुझे तुम बाहों में, सीने से लगाने आ जाना,
ये प्रीत पुरातन सदियों की, कब टूट सकी है तोड़े से,
तुम तोड़ ज़माने के बंधन, ये रीत निभाने आ जाना.
न्योछावर जीवन प्रीतम पर, संताप नहीं है अब कोई,
अनमोल धरोहर, यादों से, अमृत बरसाने आ जाना.
तुम दूर सही तन से मेरे, पर दूर नहीं मन से इक पल,
जब प्राण तजे ये तन मेरा, तब दर्श दिखाने आ जाना .
अब पुष्प खिले कुछ उपवन में रुत आज बसंती हो जाए,
तुम रोशन कर इस पतझड़ को फिर से महकाने आ जाना.