Basant 10 Feb 3013 | Page 6

शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1

दस दोहे “बहार के ”

ब्यूटी पार्लर रोज जा, सज धज रही अपार

सोचे खड़ा बसंत भी, क्या आऊँ इस बार

हीटर मस्त जला रहे, ऐ सी की फुंकार

सारे मौसम एक से, शर्दी जेठ बहार

वेलेंटाइन याद है, भूल गए त्यौहार

संस्कार रोते दिखे, सूखी जाय बहार

फटा जींस पहने खडा, सैयां बीच बजार

टॉप पहन सजनी खड़ी, बेकल होय बहार

महँगा फूल गुलाब औ, टेडी दें उपहार

झूठे इस इजहार से, खुश हो जाती नार

गजब सभ्यता पश्चिमी, बेशर्मी आधार

होता है अब राह पे, खुल्लमखुल्ला प्यार

नहीं रहा वो रूठना, झूठे सब मनुहार

सीधे सीधे नैन के, तिरछे तिरछे वार

शारद संस्कृति सभ्यता, शर्मिंदा करतार

नवयुग में क्यूँ आदमी, भूल गया आचार

चले एक सप्ताह तक, होता तब इकरार

नाटक जैसे ख़त्म हो, चार दिनों का प्यार

स्वप्न लोक में डोलते, आशिक प्रेमी यार

बिकने आतुर आशिकी, दिल का लगा बजार

संदीप तेल “दीप”